तिब्बत का इतिहास भाग -2

6) राजकुमारी वेन - चेन कुंग - चू अपने साथ 641 ई. में हान भाषा में लिखी कई पुस्तकें तिब्बत ले गई।

आधुनिक तिब्बती लिपि, विद्वान थोनमी संभोट ने गुप्तकालीन लिपि की सहायता से खोजी थी। इन परिस्थितियों में यदि " राजा तांग सभ्यता का प्रशंसक है" जैसे लेखकों ने दावा किया है , तो उसने तिब्बत में हान भाषा को अपनाया या चलाया क्यों नहीं ?

यह तांग सभ्यता के प्रति " प्रशंसा" का प्रतीक नहीं है। इसके उलट काफी लड़ाई के बाद आक्रामक तिब्बती सम्राट को खुश करने के लिए चीनी राजकुमारी वधू (दुल्हन) के रूप में सौंपी गई थी।


7) 641 से 710 ई. के बीच के 59 वर्षों के तिब्बती प्रतिहास को छोड़ गए। जिस दौरान ऐतिहासिक महत्व की कई घटनाएं हुई।

सम्राट सौंडत्सेन गैंपो के पोते मंगसांड सौंडत्सेन ( 649 से 676 ई. ) ,और  खरी - द - सौंडत्सेन (सन् 670 - 704 ई. तक ) और  क्रीद - त्सुंगत्सेन  अगत्सम  (704 -755 ई. तक ) राजा रहे, सभी नाबालिक थे और महान मंत्री के रूप में एक राज प्रतिनिधि उनके माध्यम से शासन करता रहा।


8) 665 ई. में गार ताड़स्तेन ने मंगसांड के राज प्रतिनिधि के रूप में काम करते हुए, 655 से 663 ई. तक 8 साल तू - यून - हून (चीन के आश्रित) राज्य के विरुद्ध  सैनिक अभियानों का संचालन किया और एक विजेता के रूप में उभरा।


9) 663 ई. में तिब्बतियों ने तू - यून - हून राज्य को पूरी तरह तहस नहस कर दिया और मैगा टोमन - खां की उपाधि वाले अशा राजा को कांगपो और म्यांग के राजकुमारों के स्तर पर तिब्बती साम्राज्य में स्वीकार किया।
तू कराशहाहर दरेम खोल

अशा के पतन के बाद तिब्बती सेनाओं ने 622 ई. में कशगर तथा 665 ई. खोतान की तरफ बढ़ते हुए तरीम घाटी (आज का पूर्वी तुर्किस्तान) के चीनी आधिपत्य वाले क्षेत्र पर हमला किया।

10) जो - मा - खील (ता - फे घाटी में ) एक चीनी रिलीफ (सहायता) सेना हराई गई और 670 ई. में तिब्बतियों ने बाकी बचे कुचे और कराशहाहर के किले जीत लिए।


11) 688 ई. में दरेम खोल में एक बड़ा फौजी किला बनाया गया और उसने अगले वर्ष ही  तू - यू - हन ने तिब्बती सम्राट खरी - द - सौंड़त्सेन के प्रति वफादारी की शपथ ली।


12) तरीम घाटी पर कब्जे के संबंध में ,सभी संबंधित दस्तावेजों का अध्ययन करने वाले क्रिस्टोफर ने निष्कर्ष दिया " तरीम घाटी पर तिब्बती विजय सुनियोजित ढंग से लागू की गई रणनीति, कूटनीति और अति खूंखार सेना का मिला जुला परिणाम है।


13) सम्राट काओ - त्संग ( 650-683 ई. ) ने पूर्वी तुर्किस्तान के चार गढ़ो पर फिर से कब्जे के लिए हसुच - जेन - कुई को 100,000 फौजियों की सेना का सेनापति नियुक्त किया ।
यह सेना ता - फेई - चुआन में हार गई और इस असफलता के लिए जनरल हसुन को पदाच्चयुत कर दिया गया।


14) इस प्रकार तिब्बत के मध्य एशिया में तिब्बती साम्राज्य की नीव रखी। उदाहरण के लिए पूर्व में तिब्बत हुंजा तक फैला था और शायद यह फैलाव स्वेट, फरगना और समरकंद तक था।


15) उत्तर तथा उत्तर - पूर्व में तिब्बत के उघुर्स और पश्चिमी तुर्की ( ताउ - किचू) तक पहुंचा जो वर्तमान में उज़्बेकिस्तान तक फैले क्षेत्र में स्थित है।


16) दक्षिण में तिब्बती आधिपत्य नेपाल के राज्य और भारत की तरफ हिमालय की पहाड़ी जनजातियों पर था और इधर तिब्बत का आधिपत्य ऊपरी बर्मा तक पहुंच गया था।


17) पलड़ा भारी होने के कारण तिब्बती पूर्वी में चीनियों के लिए कठिनाई का स्रोत थे।

617 ई. में सम्राट त्सुंग ने च्यांग का'ओ  को सेनापति बनाकर एक और चीनी सेना तिब्बतीयों के विरूद्ध भेजी, लेकिन सेनापति की बीच रास्ते में ही मृत्यु हो जाने से सेना वापस आ गई।

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