तिब्बत का इतिहास भाग -4

35) 750 ई. पिलावको का पुत्र  कोलोफेंग,  "सियाम " का राजा बना और उसने शासन के दौरान तिब्बत से कई संधियां हुई।

" इमोसन " जो कोलोफेंग के बाद सियाम  के राजा " बनों " ने, 778 ई. में तिब्बत से सहायता मांगी और,तिब्बती और सियामियों की सीमाएं " सझेचुन " में चीनियों के विरूद्ध मिलकर लड़ी।

8 साल तक वहीं ठहरने के बाद जब चीन और थाईलैण्ड के बीच शांति हुई तब तिब्बती सेना थाईलैण्ड से वापस लौटी।

36) कुछ ही साल बाद अरब के खलीफा " हारून अल राशीफ' ने तिब्बत के विरूद्ध चीन से अपनी सुविधा के लिए थोड़े समय के लिए समझौता किया।


37) " पेटेंश " के अनुसार तिब्बत के विस्तार को रोकने के लिए पूर्व मध्य युगीन दो बहुत शक्तिशाली सम्राटों के बीच संधि बहुत जरूरी थी, उन दो बहादुर पर्वतीय सम्राटों को राजनैतिक क्षमताओं और कुशलताओं का गवाह है।


38) " त्री  सौंड़त्सेन सागस्टन " ( 799 - 815 ई.) जिसे आमतौर पर "सनलेन " कहा जाता है कि शासन के दौरान तिब्बती सेना पश्चिम में अरबों की नाक में लगातार दम किए रही।

कुबी के अनुसार तिब्बतियों ने "ट्रांसोक्जेनिया " की राजधानी " समरकंद " पर भी कब्जा जमा लिया था। " हारून अल - राशीद " के दुसरे बेटे " अल - मा'मुन " ने तुर्किस्तान के तिब्बती राज्यपाल से समझौता किया।

राज्यपाल ने " अल - मा'मुन " को सोने तथा हीरे जवाहरात से बनी एक प्रतिमा दी, जिसे बाद में मक्का में काबा भेज दिया।


39) 49 वें राजा " राल्पाचेन " ने सत्ता हासिल करने के बाद " हरांग्जे त्सेंन " के नेतृत्व में चीन की सीमा की तरफ सेना भेजी। चीनी सेना के थक जाने के कारण 821 - 822 ई. में संधि हुई।

यह संधि सिर्फ तिब्बती ला के बौद्ध अनुयायियों तथा "हर्षागज " के नाम से विख्यात चीनी साधुओं की मध्यस्थता के कारण हो पाई।


40) इस संधि ने " सिच‌्आन " के पश्चिम भाग , पूर्वी तुर्किस्तान और व्यावहारिक रूप से सारे कांसू पर तिब्बती आधिपत्य की सुदृढ़ किया।

इस संधि ने " चिंग शुई "की 783 ई. को संधी के अनुसार स्थापित की गई सीमा रेखाओं की भी पुष्टि की।
" गुगू मेरू " नाम के प्रसिद्ध चीनी - तिब्बती सीमा क्षेत्र में एक पत्थर के स्तंभ द्वारा सीमांत प्रदेश की निशानी बनाई गई और इसी तरह के स्तंभ चीनी सम्राट के महल के सामने तथा ल्हासा में " जोखंग " के सामने भी बनाए गए थे।


41) इस द्विपक्षीय संधी ने " तंग - तिब्बत " खत्म कर दिया गया और उसके बाद दोनों देश शांतिपूर्वक रहे।


42) 842 ई. " में लंग दर्मा " ( 836 -  842 ई.) की हत्या के बाद " मध्य 9 वीं शताब्दी में तिब्बती राज्य का पतन देखा। " इससे तिब्बती इतिहास के प्रारंभिक अवधि का अंत हुआ। जिसे तिब्बती धार्मिक राजाओं का युग या " चोग्याल युग " कहा जाता है।

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