प्रफुल्ल चाकी भाग - 3

  "किंग्जफोर्ड " की हत्या

प्रफुल्ल और अरविंदो घोष के भी काफी करीब थे। अरविंदो घोष, वारिंद्र कुमार घोष के बड़े भाई थे।


" जुगांतर संगठन " के क्रांतिकारी ने जब जज "किंग्जफोर्ड " की हत्या का निश्चय किया (यह निर्णय अरविंदो घोष, चारु घोष और सुबोध मल्लिक ने लिया था ) तब प्रफुल्ल चाकी को ये काम अरविंदो घोष ने सौंपा।


लेकिन हेमंतचंद्र दास कानूनगो, की सलाह पर प्रफुल्ल चाकी को एक सहयोगी के रुप में खुदीराम से हेमंतचंद्र बोस के निवास स्थान " मानिकतल्ला " से मिलवाया गया और "किंग्जफोर्ड " की हत्या का काम सौंपा गया।


इस दिन से पहले प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम एक दूसरे से कभी नहीं मिले थे। इन दोनों के अंतिम समय तक एक दूसरे के असली नाम तक नहीं पता थे। प्रफुल्ल चाकी को , खुदीराम का नाम " दुर्गादास सेन" और खुदीराम को, प्रफुल्ल चाकी का नाम " दिनेश चंद्र रे " बताया गया था। 

प्रफुल्ल, "किंग्जफोर्ड " को मारकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे।


30 अप्रैल, 1908 की रात साढ़े आठ बजे "किंग्जफोर्ड " की बग्गी पर बम फेंकने गये (जिसमें "किंग्जफोर्ड " की जगह पी. केनेडी की धर्मपत्नी और उनकी बेटी थे और उनकी मृत्यु हो गई।)


 खुदीराम बम फेंकने के बाद बैनी स्टेशन की ओर भाग निकले और प्रफुल्ल समस्तीपुर स्टेशन की ओर अंधेरे में लाइनों पर दौड़ लगा दी। 


योजना के अनुसार उन दोनों को समस्तीपुर से मोकामा घाट के लिए गाड़ी पकड़नी थी, लेकिन वो जानते थे की वहां पुलिस होगी। इसीलिए वे गाड़ी आने से कुछ देर पहले ही स्टेशन पहुंचना चाहते थे। 

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