सूफ़ी अम्बा प्रसाद भाग - 1

भगत सिंह के के द्वारा फरवरी, 1928 में लिखे शहीदों के जीवन परिचय के अनुसार -

 सूफी अम्बा प्रसाद जी का जन्म 1858 में मुरादाबाद में हुआ था। इनका दाहिना हाथ जन्म से ही कटा हुआ था।



सूफी जी हंसी में कहा करते थे - सन् 1857 में हमनें अंग्रजों के विरुद्ध मुकदमा किया और हाथ कट गया और मृत्यु हो गई। फिर पुनर्जन्म हुआ लेकिन, हाथ कटे का कटा आ गया।

शिक्षा

अम्बा प्रसाद जी ने मुरादाबाद, जालंधर और बरेली आदि कई शहरों में शिक्षा प्राप्त की। एफ. ए. पास करने बाद इन्होंने वकालत पढ़ी और वे उर्दू के लेखक भी थे। 

 क्रान्तिकारी जीवन 

सन् 1890 में इन्होंने मुरादाबाद से जाम्युल इलूक नामक उर्दू साप्ताहिक पत्र निकाला। अम्बा प्रसाद जी हास्य रस के प्रसिद्ध लेखक थे। वे हिंदू - जेड एकता के कट्टर पक्षपाती थे और शासकों की कड़ी आलोचना किया करते थे। 

सन् 1897 में इन्हें राजद्रोह के अपराध में डेढ़ साल की जेल भी हुई। जब 1899 में छूटकर आये, तब यू. पी. के छोटे राज्यों पर अंग्रेज हस्तक्षेप कर रहे थे। 

अम्बा प्रसाद जी पर झूठा दोषारोपण का अभियोग चलाया गया और उसकी सारी जायदाद सरकार द्वारा जब्त कर ली गई।

अम्बा प्रसाद जी जेल में बीमार पड़े। तब उन्हें औषधि नहीं दी जाती थी, यहां तक कि पानी जैसी महत्त्वपूर्ण जरूरत का भी सही प्रबंध नहीं था।

जेलर आता और हंसता हुआ प्रश्न करता," सूफी तुम अभी तक जिन्दा हो?" 

1906 के अंत में वे जेल से छूटे।


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