चंद्रशेखर तिवारी " आज़ाद " भाग - 9
चंद्रशेखर का जवाब, गांधी जी के लेख पर !
चंद्रशेखर आजाद गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे और कहते थे कि हम दोनों का रास्ता भले ही अलग हो पर मंजिल एक है। देश को स्वतंत्र कराना।
22 - 23 दिसम्बर 1929 को इर्विन ट्रेन डकैती को आजाद और उसके साथियों ने अंजाम दिया।
इस डकैती के बाद गांधी जी ने अपने साप्ताहिक पत्र " यंग इंडिया " में एक लेख बम पार्टी (cult of the bomb) पर लिखा था। जिसमें उन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में बहुत कुछ भला बुरा कहा था और उनको बुजदिल , गुमराह आदि कहा था।
गांधी जी के बम पार्टी (cult of the bomb) का जवाब क्रांतिकारियों ने (Philosophy of the bomb) से दिया।
लाहौर में वार्षिक कांग्रेस सेशन में 26 जनवरी ,1930 के दिन पूरे भारत में स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। दल ने उसी दिन गांधी जी के बॉम पार्टी का जवाब बॉम दर्शन से देने का निश्चय किया।
26 जनवरी को प्रमुख नगरों में सुबह लोगों के घरों में एक पर्चा पाया गया , जिसका शीर्षक था - " (Philosophy of the bomb) "
उस पर्चे में गांधी जी के लेख का पूरी तरह उत्तर दिया गया था कि गांधी जी अपने अहिंसा के रास्ते की सराहना करते है लेकिन उनका क्रान्तिकारियों का दोष निकालना निरर्थक है। जो युवक बिना किसी स्वार्थ के देश के लिए अपनी जान गवां देते है।
" अहिंसा के नाम पर समझौतावादी नीति को ठोकर मार दीजिए। हमारी संस्कृति और गौरव का कोई अर्थ उस समय तक नहीं होगा ,जब तक अहिंसा के नाम पर विदेशी दासता के सामने सिर झुकाए रहेंगे।
क्रान्ति चिरंजीवी हो।'
यह पर्चा पंडित जी (आजाद) के कहने पर भगवतीचरण ने लिखा और आजाद ने कानपुर में इसको छपवाया। इसकी एक कापी गांधी जी को भी भेजी गई। गांधी जी ने " यंग इंडिया" में इसकी प्रशंसा भी की और माना की अपने पिछले लेख में उन्होंने क्रान्तिकारियों के प्रति न्याय नहीं किया था।
दूसरे लेख में भी हिंसा के रास्ते को बुरा बताते हुए भी क्रान्तिकारियों की वीरता की तारीफ की उनको पूरा भरोसा है अहिंसा कि तीन वर्षों में देश को आजाद करवा लेंगे।
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