खुदीराम बोस भाग - 5

गिरफ्तारी

1 मई, 1908 को खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया और 2 मई, 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर के जिलाधीश "वुडमैन " की अदालत में पेश किया गया। खुदीराम ने पूछने पर साफ कहा कि बग्गी पर बम मैने फेंका था।

फांसी

खुदीराम के बचाव के लिए उपेंद्रसेन नामक बंगाली वकील थे,जो कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले अखबार " बंगाली " के मुजफ्फरपुर के संपादक थे। 


अदालत ने खुदीराम की फांसी 6 अगस्त ,1908 को तय कि , पर बाद में इसे 11 अगस्त ,1908 कर दिया गया। 


 "एच. डबल्यू. कॉनडर्फ " अपर सत्र न्यायाधीश ने खुदीराम को फांसी की सजा बरकरार रखी।


खुदीराम को 11 अगस्त ,1908 को सुबह 6 बजे फांसी दी जानी थी लेकिन कारागार के जेलर के मन में खुदीराम के प्रति श्रद्धा और प्रेम जाग रहा था, इसलिए रात्रि में ही (10 अगस्त की रात) चार रसीले आम लाकर उसे भेंट में दिए। 


खुदीराम की फांसी के समय सरकार ने दो व्यक्तियों को अनुमति दी थी, उपेंद्रनाथ सेन और क्षेत्रनाथ बनर्जी। 


फांसी के तख्ते पर जानें से पहले खुदीराम ने कहा

           ," हांसी हांसी चडबो फांसी ,

                देखबे जगत बासी।

                          एक बार बिदाय दे मां , 

                               आमि धूरे आसी।"


फांसी से पहले खुदीराम ने मंदिर से चरणामृत लाने की इच्छा को कहा और उसे ग्रहण किया। वह भगवत गीता को हाथ में लेकर फांसी पर चढ़ गये। 

 दारोगा " नंदलाल बनर्जी" की हत्या

दारोगा " नंदलाल बनर्जी" ही वे व्यक्ति था जिसने खुदीराम को पकड़वाया था। इसकी सुरक्षा का प्रबंध भी अंग्रेजी सरकार ने किया क्योंकि पूरी बंगाली कौम उसे अपना दुश्मन मानने लगी थी।


 9 नवम्बर ,1908 को नंदलाल अपने एक रिश्तेदार के यहां 100/2 सर्पन्टाइन लेन कलकत्ता में रुके हुए थे। शाम 7 बजे, वह एक पत्र डाकखाने में पोस्ट करने के लिए घर से बाहर निकला, उसी समय किसी ने उनके ऊपर दो गोली चला दी ।


गोली चलाने वाले व्यक्ति नाम श्रीशचंद्र पाल उर्फ नरेन था। इस काम में रानेंद्रनाथ गांगुली, श्रीशचंद्र पाल के सहयोगी थे।

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