खुदीराम बोस भाग - 2

खुदीराम का पहला आरोप

सन् 1906 में फरवरी महीने में , मिदनापुर जेल के अहाते में कृषि व बच्चों का मेला लगा था। सत्येंद्रनाथ बोस के कहने पर खुदीराम " गुप्त समिति " के प्रचार के लिए, अंग्रेज सरकार के खिलाफ़ " वन्दे मातरम् " नामक पर्चा छपवाया और खुदीराम को पर्चे को बांटने का काम सौंपा गया। 

मेले में जितने लोग आते खुदीराम दौड़कर सभी को पर्चा पकड़ा देते। 


मेले के आखिरी दिन मजिस्ट्रेट डी. वेस्टन समापन समारोह में शामिल हुए। उन्हें मेले में आयोजकों को प्रमाण पत्र और पुरस्कार बांटने आये। खुदीराम ने अनजाने में अध्यापक रामचरण सेन को भी पर्चा दे दिया। 


रामचरण सेन ने खुदीराम को सरकार विरोधी पर्चा बांटने से मना किया। लेकिन खुदीराम ने उनकी बात नहीं मानी। तब रामचरण ने पुलिस बुलायी खुदीराम को पकड़ने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा खुदीराम ने अंग्रेज़ सिपाही को जोरदार घुसा मारा और वह जमीन पर गिर गया। 


सत्येंद्रनाथ एक सरकारी कर्मचारी थे। उन्होंने जाकर खुदीराम को बचाने की कोशिश की पर पुलिस ने उनकी बात पर भरोसा नहीं किया। इतने में खुदीराम वहां से भाग निकले।


इसके बाद मजिस्ट्रेट डी. वेस्टन ने सत्येंद्रनाथ को 1 अप्रैल ,1906 को सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया।


बाद में खुदीराम ने आत्मसमर्पण करने का विचार किया। तब समिति ने नेता हेमचंद्र दास ने उन्हें अंग्रजों की यातना के बारे में बहुत बड़ा चढ़ा कर बताया ,क्योंकि उस समय खुदीराम केवल 16 वर्ष के थे और सभी को डर था कि अंग्रजों की मार से वो समिती के बारे में सब कुछ बता देंगे। 


आत्मसमर्पण के बाद धारा 121,124 के अनुसार राजद्रोह और सम्राट के विरुद्ध बगावत का मुकदमा चलाया गया, प्रथम अपराध " राजद्रोह" के लिए काला पानी की सजा थी, और दूसरे अपराध " सम्राट के विरुद्ध बगावत " के लिए फांसी की सजा थी। 


खुदीराम के बचाव पक्ष के तीन गवाह थे, पुरनचंद्र सेन, गोपाल चंद्र बनर्जी और रासबिहारी बोस और उनके खिलाफ़ गवाह थे रामचरण सेन। 

खुदीराम के बचाव के लिए दो वकील आए , के. बी. दत्ता और प्यारेलाल घोष। 


सरकार चाहती थी की सत्येंद्र नाथ खुदीराम के विरुद्ध गवाही दे पर उन्होंने खुदीराम के पक्ष में गवाही दी। जिसके कारण 13 अप्रैल ,1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया। 


सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार डी. आई. जी. दिनांक 12.9.1908 आई. बी. 16/1908 के सन्दर्भ से प्राप्त सूचना के आधार पर जनवरी 1908 में डी. आई. जी. ( क्राइम) ने एक प्राइवेट जासूस अब्दुल रहमान की न्युक्ति विभाग में की थी। यह सत्येंद्र नाथ का अच्छा दोस्त था। 


वह क्रांतिकारी समिति को तलवार , लाठी और पत्ता चलाना भी सिखा चुका था। उसे सभी " उस्ताद " भी कहते थे। 


सत्येंद्र नाथ अब्दुल पर बहुत भरोसा करते थे, पर वह पुलिस का जासूस बन गया और समिती की सारी जानकारी और योजनाएं पुलिस को जाकर बता दी।

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