चंद्रशेखर तिवारी " आज़ाद " भाग - 8
चंद्रशेखर आजाद का शव नहीं देना चाहती थी अंग्रेज सरकार!
चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी ,1931 के दिन इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में आजाद शहीद हुए थे।
जब आखिरी गोली चंद्रशेखर आज़ाद ने अपनी कनपटी पर रख कर चला दी, तब उनका शव जमीन पर गिर गया। लेकिन डर के मारे कोई भी सिपाही आजाद के पास नहीं जाना चाहता था।
क्योंकि उन्हें लगता था कि आजाद कोई चाल चल रहे है। उन सिपाहियों ने आजाद के शव पर कई गोलियां चलायी। आजाद के शरीर का ऐसा कोई ऐसा हिस्सा नहीं था जिसपर गोली ना लगी हो।
पण्डित शिवविनायक मिश्र ने बताया है कि ," पंडित जी (आजाद) जब शहीद हो गए, तब रात को एक व्यक्ति मिश्र के घर आया ,जिसे कमला नेहरू जी ने आजाद के शहीद होने का समाचार लेकर भेजा था और शव को लेने के लिए इलाहाबाद बुलाया था।
मिश्र जी ने स्टेशन से एक तार मजिस्ट्रेट (इलाहाबाद) को भेजा। जिसमें लिखा था कि मैं चंद्रशेखर आज़ाद का संबंधी हूं। लाश को डिस्ट्रॉय न किया जाए। मिश्र जी इलाहाबाद पहुंच कर , सीधे मजिस्ट्रेट के बंगले पर पहुंचा। मजिस्ट्रेट ने उन्हें सुप्रिटेंडेंट के पास भेजा दिया ।
सुप्रिटेंडेंट ने कहा लाश जला दी गई। मिश्र जी ने उनसे कहा कि अभी - अभी लॉरी में आजाद की लाश को जाते देखा, इतनी जल्दी लाश कैसे जलायी जा सकती है।
तब उसने दारागंज पुलिस थाने को एक पत्र लिख कर दिया की " लाश त्रिवेणी पर जलायी जायेगी , मुझे (मिश्र) आजाद के संबंधी के नाते उनकी अंतयोष्टि क्रिया करने दी जाय।
उसके बाद मिश्र जी वहां से पद्मकांत मालवीय जी की कार में दारागंज थाने गए। फिर वहां से पत्र पढ़कर दरोगा जी मिश्र जी के साथ त्रिवेणी गए। वहां अंतयोष्टि का कोई इंतजाम नहीं था। तभी एक आदमी साइकिल से आया और कहा कि आजाद की लाश को रसूलाबाद गंगा के किनारे जलायी जाएगी।
जब तब मिश्र जी वहां पहुंचे चिता में आग लग चुकी थी। सुप्रिटेंडेंट का पत्र दिखाने पर उन्होंने हमें शव लेने की आज्ञा दी।
मिश्र जी और पद्मकांत जी ने आग बुझायी और आजाद का शव फिर दोबारा अच्छी तरह से अंतिम संस्कार किया गया और फ़िर उनकी अस्थियों को इकट्ठा करके जुलुस निकाला गया।
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