खुदीराम बोस भाग - 4

डी. एच. किंग्जफोर्ट 

कलकत्ता में "डी. एच. किंग्जफोर्ट" चीफ प्रेजेंसी मजिस्ट्रेट था। उसका कार्यकाल 1904 से 1908 कलकत्ता में रहा। वह स्वभाव से क्रूर था। वह क्रांतिकारियों को कड़ी से कड़ी सजा देता था। 




बंगाल में विभाजन के समय जब लोग आंदोलन कर रहे थे जितने भी मुकदमें उसकी अदालत में आते थे, वह भारतीयों को कड़ी सजा देता था।

किंग्जफोर्ट कलकत्ता में छपने वाले समाचार पत्रों (युगांतर ,वन्दे मातरम् , सन्ध्या और शक्ति) के पत्रकारों और कर्मचारियों से चिढ़ता था क्योंकि वो सरकार के विरोध में लिखते थे। 

वंदे मातरम् के मुख्य संपादक " अरविंदो घोष" को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। 


26 अगस्त ,1907 को विपिनचंद्र पाल को किंग्जफोर्ट की अदालत में अरविंदो घोष के खिलाफ गवाही देने के लिए बुलाया गया ,जिससे उन्होंने मना दिया और फोर्ट ने विपिनचंद्र को दो महीने की सजा दे दी।

जिस गवाह को पुलिस ने अपनी ओर से बुलाया था ,फोर्ट ने उसे भी दो महीने की सजा दे दी। 

इससे अदालत में भगदड़ मच गई और वंदे मातरम् के नारे लगने लगे। जज ने लाठी चार्ज का आदेश दिया। "नेशनल स्कूल " के एक 15 वर्षीय छात्र सुनील सेन ने एक पुलिसकर्मी को घूंसा मारा इससे डर कर फोर्ट ने इस छात्र को 15 बेंत मारने की सजा सुनाई।

क्रांतिकारियों ने सजा के तौर पर किंग्जफोर्ट को मारने की योजना बनाई।

किताब में बम 

पहली बार में क्रांतिकारियों ने 1200 पृष्ठों की एक पुस्तक के बीच में से, 600 पृष्ठ काटे और उसके बीच में बम रख दिया। इसके बाद इसे किंग्जफोर्ट के नाम पर पार्सल डाक द्वारा भेज दिया गया। क्रांतिकारियों ने सोचा था कि जैसे ही किंग्जफोर्ट इसे खोलेगा,बम फट जायेगा और उसकी मृत्यु हो जायेगी। 


किंग्जफोर्ट को पार्सल मिला, पर उसने उसे खोला नहीं और लाइब्रेरी में रख दिया ,बाद में उसके एक कर्मचारी ने इसे खोला और बुरी तरह से घायल हो गया।

 बग्गी पर बम फेंकना

सत्येंद्रनाथ ने खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को इस काम के लिए चुना। इन दोनों का परिचय एक दुसरे से खुदीराम (दुर्गादास ) और प्रफुल्ल चाकी (दिनेशचंद्र) के नाम से कराया गया। इन्हें एक दुसरे के असली नाम नहीं बताएं गए थे। 

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी अप्रैल ,1908 में मुजफ्फरपुर पहुंचे। दोनों किंग्जफोर्ट की दिनचर्या पर नज़र रखने लगे। 

किंग्जफोर्ट " विक्टोरिया बग्गी" में अपनी पत्नि के साथ यूरोपियन क्लब जाता था। 


दोनों ने 30 अप्रैल, 1908 के दिन बग्गी में बम रखने का निश्चय किया और क्लब के बाहर इंतजार करने लगे। बग्गी के क्लब से वापस जाते ही खुदीराम ने बग्गी पर बम फेंक दिया और वहां से भाग निकले। 



बाद में पता लगा कि बग्गी में किंग्जफोर्ट नहीं था बल्कि किसी अन्य अंग्रेज़ अफसर की पत्नि और बेटी थी। 

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