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Showing posts from July, 2020

परशुराम जी के पिता की हत्या किसने और क्यों की ?

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एक बार ऋषि   जमदग्नि  और  रेणुका  के सभी पुत्र बाहर गए थे। उसी समय अनूप देश के राजा  कार्तवीर्य अर्जुन  वहां आ गए। ऋषि पत्नि  रेणुका  ने उनका आतिथ्य सत्कार किया। इतने आतिथ्य सत्कार के बाद भी राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने इसका मान नहीं रखा और युद्ध के मद में चूर होकर उन्होंने आश्रम की गाय होमधेनु के बछड़े का अपहरण कर लिया। जब परशुराम जी आश्रम में आये तब उनके पिता (जमदग्नि) ने उन्हें सारी बातें बता दी।  इससे वे बड़े ही क्रोध में  सहस्त्र‌अर्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन)  के पास गये और युद्ध में सहस्त्र‌अर्जुन के हजारों हाथों को काट डाला। इससे  सहस्त्र‌अर्जुन  के पुत्रों को बहुत क्रोध आया और एक दिन जब परशुराम जी आश्रय में नहीं थे। तब  सहस्त्र‌अर्जुन  के पुत्रों ने परशुराम जी के पिता  जमदग्नि  की हत्या कर दी। जब परशुराम जी वहां आए तब अपने पिता को मृत शरीर को पाकर वे बहुत दुखी हुए और विलाप करने लगे। उन्होंने अपने पिता की सभी अंतिम विधियां की और संपूर्ण क्षत्रियों का संहार करने की प्रतिज्ञा ली। फिर परशुराम जी ने  ...

परशुराम ने अपनी माता का वध करके , उन्हें जीवित कैसे किया?

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रेणुका राजा प्रसेनजित  की पुत्री और  महर्षि जमदग्नि  की पत्नी थी। इनके पांच पुत्र रुक्मवान, सुषेणु, वसु , विश्वावसु और परशुराम थे। एक दिन जब परशुराम और उनके सभी भाई फल लेने और रेणुका स्नान करने गई थी। तब जिस समय वो स्नान कर के आश्रम लौट रही थी उन्होंने  राजा चित्ररथ  को नदी में नौका विहार करते देखा। राजा को देख ऋषि पत्नी के हृदय में विकार उत्पन्न हो गया और वह वहां से उसी मनोदशा में आश्रम लौट आईं। आश्रम में  महर्षि जमदग्नि  ने जब पत्नी की यह दशा देखी तो उन्हें सब ज्ञात हो गया। जिसकी वजह से ऋषि बेहद क्रोधित हो गए।  महर्षि जमदग्नि  ने पहले अपने पुत्र रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु से उनकी माता के वध का आदेश दिया।  लेकिन मां से मोहवश उनके किसी भी पुत्र ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर ऋषि ने अपने चारों पुत्रों को विवेक विचार खो देने का श्राप दिया। लेकिन जब ऋषि ने  परशुराम  से कहा तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया और फरसे से अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया।  परशुराम  से प्रसन्न होकर उन्होंने ,उनसे मनचाहा वर मांगन...

कबूतर की रक्षा के लिए अपना मांस दान देने वाले राजा !

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एक बार इन्द्र देव  और  अग्नि देव  ने राजा उशीनर  की परीक्षा लेने की सोची। इसके बाद  इन्द्र देव  ने बाज़ का और  अग्नि देव  ने कबूतर का रूप धारण किया और वे यज्ञशाला में राजा उशीनर के पास पहुंचे। तब बाज़ के डर से कबूतर राजा की गोद में जाकर बैठ गए। तब बाज़ ने राजा से कहा, "मैं भूख से मर रहा हूँ और ये कबूतर मेरा आहार है। आप इसे मुझे देकर मुझे खुश करें।" राजा ने कहा, "यह कबूतर तुमसे बहुत डरा हुआ है और अपनी प्राण रक्षा के लिए मेरी शरण में आया है। इसलिए मैं इसकी प्राणों की रक्षा अवश्य करूँगा। बाज़ ने कहा, "यदि आप कबूतर की रक्षा करना चाहते हैं तो कबूतर के बराबर अपना मांस का काटकर तराजू में रखिये.जब वह भार में कबूतर के बराबर हो जाय तो, वही मुझे दे दीजिये।" फिर राजा  उशीनर ने  तराजू के एक पलड़े में कबूतर को रखा और दूसरे पलड़े में अपना मांस काटकर रखा पर कबूतर राजा के मांस के टुकड़ों से भारी पड़ा। राजा ने ऐसे ही कई बार अपना मांस काटकर पलड़े में रखा लेकिन फिर भी कबूतर का भार अधिक था। फिर राजा स्वयं ही तराजु पर बैठ गए। यह देखकर बाज़ ने राजा से कहा - मै...

महाभारत की कुछ अनसुनी बातें ! भाग - 2

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9)  शांतनु  और  सत्यवती  का एक  चित्रांगद  था नाम का पुुत्र था जिसकी मृत्यु  चित्रांगद नाम के गंधर्व  के हाथों से हुई थी। 10) द्रौपदी का जन्म के समय जब नामकरण हुआ तब उनका नाम " कृष्णा " रखा गया था। 11) महाभारत युद्ध के 36 सालों बाद हुई थी श्री कृष्ण की मृत्यु हुई। 12) वेदव्यास एक पदवी थी नाम नहीं। वेदव्यास का नाम  कृष्णद्वैपायन था। 13)  कृष्णद्वैपायन  से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28 वें वेदव्यास थे। उनका नाम  कृष्णद्वैपायन  इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे। 14) महाभारत युद्ध में कुल 36 प्रकार के व्यूह की रचना हुई थी। जिनमें से सबसे प्रसिद्ध है चक्र व्यूह।

महाभारत की कुछ अनसुनी बातें ! भाग - 1

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1) शांतनु  जिस बूढ़े इंसान को छू देते थे वो फिर से जवान और सुखी हो जाता था। 2)   भीष्म (देवव्रत)  को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। वो जब तक मरना ना चाहे ,वो जीवित रह सकते थे। 3)  भीष्म पितामह  का असली नाम  देवव्रत  था। 4)   वशिष्ठ मुनि  के पास एक गाय थी। जो कामधेनु गाय कि पुत्री थी, यदि कोई मनुष्य इसका दूध पी ले तो वह 10,000 वर्ष तक जीवित और जवान रहता था। 5)  भीष्म  अपने पूर्व जन्म में   द्यौ  नामक वसु थे। उन्होंने वशिष्ठ मुनि की गाय चुराई थी इसी कारण वशिष्ठ मुनि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था। 6)  गांधारी  के गर्भ धारण करने के ,2 वर्ष बाद तक भी उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई और उनका गर्भपात हो गया। फिर व्यास जी के परामर्श से उनके गर्भ से लोहे जैसा गोल पिंड निकला। जिसके  ऊपर पानी का छिड़काव किया गया। जिससे वो 101 टुकड़ों में विभाजित हो गया। फिर घी से भरे घड़ों में हर टुकड़ों को अलग - अलग रख दिया गया और 2 वर्ष के लिए उस छोड़ दिया गया। सबसे पहले उनमें...

एक पुत्र को जन्म देने वाले राजा युवनाश्व !

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राजा युवनाश्व का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। उन्होंने एक हजार अश्वमेध यज्ञ किए थे। एक दिन अपने सभी कार्यों को अपने मंत्रियों पर छोड़ कर युवनाश्व वन में निवास करने के लिए चले गए। एक बार महर्षि भृगु के पुत्र  ने  युवनाश्व  से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया। यज्ञ के समय व्रत के कारण राजा ने जल ग्रहण नहीं किया, जिससे रात के समय राजा को बहुत प्यास लगी। तब  युवनाश्व  ने आश्रम के भीतर जाकर पानी मांगा, लेकिन सब लोग रात्रि के जागरण से थककर गहरी नींद में सो रहे थे। किसी ने उनकी आवाज नहीं सुनी। वहीं पर महर्षि ने मंत्रपूत (पुत्र प्राप्ति के लिए मंत्रों से उच्चारण करके) जल का एक बड़ा कलश रखा था। उसे देखकर  युवनाश्व  ने जल्दी में, उसी पानी को पीकर अपनी प्यास बुझायी और कलश को वहीं छोड़ दिया।  जब सभी ऋषि नींद से जागे तो उन्होंने खाली कलश को देखा और आपस में बात करने लगे कि कलश का पानी किसने पिया ?  यह बातें सुनकर राजा  युवनाश्व  ने सारी बातें सच - सच सबको बता दी। सब जानकर ऋषि ने राजा से कहा कि ," यह पानी मैंने आपको एक बलवान और पराक्रमी पु...

च्यवन ऋषि वृद्ध से युवा कैसे हुए ?

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एक दिन   सुकन्या स्नान करके अपने आश्रम में खड़ी थी। उसी समय उसे अश्विनी कुमारों ने देखा। अश्विनी कुमार, सुकन्या के पास गए और उससे पूछा ," कि तुम किसकी पुत्री और किसकी पत्नि हो ? " तब सुकन्या ने कहा ," मैं राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या हूं और च्यवन ऋषि  से मेरा विवाह हुआ है। " अश्विनी कुमारों ने सुकन्या से कहा ," हम देवताओं के वैद्य है हम तुम्हारे पति को युवा और रूपवान कर सकते है। तुम ये बात अपने पति को बताओ। सुकन्या ने जाकर सारी बातें अपने पति को बतायी, च्यवन ऋषि भी मान गए। तब अश्विनी कुमारों ने ऋषि को नदी में प्रवेश करने को कहा और उनके साथ अश्विनी कुमारों ने भी नदी में डुबकी लगाई। जब तीनों बाहर निकले तब सभी बहुत ही रूपवान और एक समान ही लग रहे थे। उन सभी ने कहा कि , " हम सभी एक जैसे ही है तुम किसी को भी चुन को,लेकिन सुकन्या ने अपने पति को पहचान लिया और उन्हें ही चुना।"

एक राजकुमारी का,एक वृद्ध ऋषि से विवाह क्यूं हुआ ?

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महर्षि भृगु  के पुत्र का नाम   च्यवन  था। च्यवन ऋषि  बहुत समय तक एक पेड़ के नीचे ,एक ही स्थान पर " वीरासन " में बैठे रहे। इसी कारण उनका शरीर तृण और लताओं से ढ़क गया और उनके ऊपर चींटियों ने मिट्टी से अपना घर बना लिया।  च्यवन ऋषि   बांबी (मिट्टी से बना चींटियों का घर) के रूप में दिखाई देने लगे। वे चारों ओर से केवल मिट्टी का पिंड जान पड़ते थे। एक बार  राजा शर्याति  यहां अपनी चार हजार रानियों और एक पुत्री के साथ आये, जिसका नाम सुकन्या  था।  सुकन्या " च्यवन ऋषि " के बांबी के पास पहुंची। उसने उस बांबी के छेद में से चमकती हुई,  च्यवन ऋषि  की आंखों को देखा और कौतूहलवश उसने कांटे को छेद में डाल दिया। जिसके कारण च्यवन ऋषि  की आंखे फूट गई।  जिससे च्यवन ऋषि  बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने शक्ति से  शर्याति  की सेना के मल  - मूत्र बंद कर दिये। ये सब देखकर राजा ने कहा कि,  " यहां एक वृद्ध महात्मा च्यवन ऋषि तपस्या में लीन थे जरूर किसी ने कोई गलती की है, तभी सैनिकों को ऐसा कष्ट हो रहा है। जिसने भी ऐसा क...

महाभारत युद्ध में किसने भाग नहीं लिया था ?

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महाभारत युद्ध में बहुत से रथी और महारथियों ने भाग लिया था लेकिन रुक्मी और बलराम दो ऐसे योद्धा थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था। बलराम जी - बलराम " श्री कृष्ण " के बड़े भाई थे। उन्होंने  दुर्योधन  और भीम  को गदा चलाने का प्रशिक्षण दिया था।  बलराम  जी श्री कृष्ण के विरूद्ध युद्ध नहीं लड़ना चाहते थे और वे ये भी जानते थे कि पांडवों का पक्ष धर्म का है। इसलिए उन्होंने कौरवों और पांडवो में से किसी भी पक्ष के साथ युद्ध करना सही नहीं समझा और वे तीर्थ यात्रा पर चले गए। रुक्मी -  रुक्मी श्री कृष्ण की पत्नी  रुक्मिणी  के बड़े भाई थे। वे इस युद्ध में भाग लेना चाहते थे और इसी उद्देश्य से वह पांडव पक्ष की ओर गए ।  पांडवों के पास जाकर रुक्मी ने कहा कि अर्जुन  यदि तुम्हें युद्ध करने से डर लगता है तो मुझे अपने पक्ष में लो मैं तुम्हें इस युद्ध में विजय दिला दूंगा। तब अर्जुन  ने कहा कि जब केशव (कृष्ण) मेरे साथ है और हमारा पक्ष धर्म का है तो मुझे युद्ध का भय क्यूं होगा। हमें तुम्हारे सहायता की आवश्यकता नहीं है। फिर रुक्मी  कौरव पक...

कुबेर ने आजीवन स्त्री रूप में रहने का श्राप यक्ष को क्यूं दिया ?

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एक बार जब यक्षराज कुबेर  घूमते - घूमते   स्थूणाकर्ण के  स्थान पर पहुंचे । लेकिन जब  स्थूणाकर्ण  अपने स्त्री रूप के कारण,  कुबेर  के स्वागत के लिए बाहर नहीं आए। तब  कुबेर  के पूछने पर,  कुबेर  के अनुचरों ने उन्हें बताया कि किसी कारण से  स्थूणाकर्ण  ने पांचाल नरेश द्रुपद  की पुत्री को अपना पुरूषत्व देकर उसका स्त्रीत्व ले लिया है और लज्जा के कारण ही वह आपके सामने नहीं आ रहा है। यह सुनकर  कुबेर  ने क्रोध में आकर  स्थूणाकर्ण  को श्राप दिया कि - " अब यह जीवन भर इसी तरह स्त्री रूप में रहेगा।" तब दूसरे यक्षों ने  स्थूणाकर्ण  की ओर से प्रार्थना की कि इस श्राप का कोई समय निश्चित कर दे। तब कुबेर ने कहा कि - "जब  शिखंडी  युद्ध में मारा जाएगा तब  स्थूणाकर्ण  को अपना स्वरूप प्राप्त हो जाएगा।" ऐसा कहकर  कुबेर  सभी यक्षों के साथ "  अल्कापुरी  " को चले गए। इन सब के बातों के बाद " शिखंडी "   स्थूणाकर्ण  के पास अपना स्त्री रूप वापस लेने पहुंची। त...

किसने शिखंडी को पुरुषत्व उधार दिया ?

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पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री  शिखंडी  विवाह के बाद  कांपिल्य  में आकर रही। वहाँ  शिखंडी की  पत्नि को, शिखंडी के स्त्री होने की बात पता चली।  शिखंडी की  पत्नि ने अपने सखियों के द्वारा अपने पिता तक यह बात पहुंचाई। शिखंडी  के ससुर ने द्रुपद के पास एक दूत भेजा। दूत ने द्रुपद से कहा कि आपने हमें धोखा दिया है। सब कुछ पता चलने के बाद  हिरण्यवर्मा ने  पाँचाल पर आक्रमण करने का विचार किया,  लेकिन द्रुपद ने दूत के द्वारा  हिरण्यवर्मा  को युद्ध का विचार छोड़ने के लिए मना लिया।  इन सभी बातों को जानकर  शिखंडी  बहुत दुखी हुए और अपने प्राण त्यागने के विचार से वन में चले गए। जिस वन में  शिखंडी  गया था। उस वन की रक्षा  स्थुलावर्ण  नाम का यक्ष करता था। वहाँ उस यक्ष का एक भवन भी बना हुआ था। शिखंडी  जब उस यक्ष से मिला तब उस यक्ष ने  शिखंडी  से कहा कि मैं तुम्हारी मनोकामना पूरी करूँगा। इस पर  शिखंडी ने  सारी बात बतायी और कहां की तुम मुझे एक सुंदर पुरुष बना दो। तब यक्ष ने कह...

महाभारत में किस स्त्री का विवाह दूसरी स्त्री से हुआ था ?

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पांचाल देश के राजा द्रुपद  की पत्नि को कोई संतान नहीं थी।  द्रुपद  ने भगवान शिव  की तपस्या करके  शिव जी  को प्रसन्न किया। तब  शिव जी  ने उन्हें वरदान दिया कि  " तुम्हें एक ऐसी कन्या उत्पन्न होगी जो बाद में पुरुष हो जायेगा।" समय आने पर  द्रुपद  की पत्नि को एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई। लेकिन राजा  द्रुपद ने  किसी को भी कन्या के उत्पन्न होने की बात नहीं बताई ,लोगों में यह बात फैलाई गई की राजा के यहां पुत्र ने जन्म लिया है। इस कन्या का नाम शिखंडी  रखा गया। शिखंडी  ने द्रोणाचार्य की शिष्य रही। एक बार राजा द्रुपद की पत्नि ने उनसे कहा कि  शिव जी  के कहने के अनुसार हमारी कन्या बाद में पुरुष हो जाएगी ,तो हमें इसका विवाह भी करना चाहिए। अपनी पत्नि की बात मानकर  द्रुपद  ने अपनी कन्या  शिखंडी  का विवाह  दशार्ण  देश के राजा हिरण्यवर्मा  की पुत्री से कर दिया।  राजा  हिरण्यवर्मा  को शिखंडी के स्त्री होने का पता नहीं था अनजाने में उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह एक स्त्री स...

भीष्म ने अपने ही गुरु से युद्ध क्यूं किया ?

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काशी नरेश की पुत्री अंबा  जब  शल्य नरेश  के पास पहुंची तो  शल्य नरेश  ने  अंबा  के साथ विवाह करने से मना कर दिया और कहा कि , क्यूंकि  भीष्म  ने तुम्हे सभी राजाओं से युद्ध में जीता है। इसलिए तुम्हें नियम के अनुसार  भीष्म  से ही विवाह करना चाहिए। इतने अपमान के बाद  अंबा "  हस्तिनापुर " लौट आई और सारी बात  भीष्म  को बताई और खुद से  भीष्म  को विवाह करने को कहा।  लेकिन  भीष्म  ने यह कह कर मना कर दिया कि मैं आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए वचनबद्ध हूं। यह सुनकर अंबा बहुत दुखी हो गई और वहां से भी चली गई।  इसके बाद वह तपस्वियों के आश्रम में पहुंची जहां अंबा की भेट उसके नाना  होत्रवाहन  से हुई। अंबा ने उन्हें सारी बात बताई। तब  होत्रवाहन  जी ने अंबा को परशुराम  जी से सहायता मांगने को कहा क्योंकि वे भीष्म के गुरु थे।  संयोगवश वहां परशुराम जी के शिष्य अकृतवर्ण आ गए और उन्होंने बताया कि कल सुबह  परशुराम  जी आश्रम में पधारेंगे। परशुराम ...

किसने भीष्म के वध की इच्छा से दो जन्म लिए थे ?

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अम्बा ने दो जन्म लिए थे भीष्म का संहार करने की इच्छा से। अम्बा काशी नरेश की कन्या थी जो शल्य नरेश से विवाह करना चाहती थी पर भीष्म के द्वारा अम्बा और उनकी दो बहनों का हरण किया गया। जिसके कारण हस्तिनापुर से वापस शल्य नरेश के पास जाने पर शल्य नरेश ने अम्बा को स्वीकार नहीं किया। जिस कारण अम्बा भीष्म से बहुत ही क्रोधित हो गई और उनकी मृत्यु की कामना से घोर तप किया । जिसके बाद अपनी तपों बल से अम्बा ने, वत्सदेश की कन्या के रूप में जन्म लिया और कुछ वर्षों के बाद वह फिर से अपनी इच्छा पूर्ति के लिए तपस्या करने के लिए चली गई। फिर अम्बा ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की और शिव जी ने जब अम्बा को दर्शन दिये " तब उन्होंने अम्बा को भीष्म को मारने का वरदान दिया। " तब अम्बा ने भगवान शंकर से कहा - " कि मैं तो स्त्री हूं मैं कैसे भीष्म का वध कर सकती हूं।" तब भगवान शंकर ने कहा - " तू अपने आने वाले जन्म में द्रुपद की कन्या के रूप में जन्म लेगी ,परंतु कुछ समय के पश्चात तू पुरुष हो जाएगी और तुझे इन सभी बातों का पूर्ण ज्ञान होगा। " इसके बाद अम्बा ने वहीं एक चित...

महाभारत : अंबा कौन थी ?

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काशी नरेश  की तीन पुत्रियां थीं। जिनका नाम  अंबा, अंबिका और अंबालिका  था। जिनमें  अंबा  सबसे बड़ी पुत्री थी। अंबा, अंबिका और अंबालिका  को  भीष्म  उनके स्वयंवर सभा से, युद्ध करके जीतकर अपने भाई और हस्तिनापुर के राजा  विचित्रविर्य  से विवाह कराने के लिए ले गए थे।  लेकिन हस्तिनापुर पहुंचकर जब  अंबा  ने बताया कि वह  शल्य नरेश  से प्रेम करती है और उन्हें पति रूप में स्वीकार का चुकी है तो माता  सत्यवती  और सभी बड़ों से अनुमति लेकर  भीष्म  ने  अंबा  को  शल्य नरेश  के पास भेज दिया। परंतु  शल्य नरेश  ने  अंबा  से विवाह करने से इंकार कर दिया और कहा कि  भीष्म  तुम्हें मुझसे युद्ध में जीतकर ले गए है इसलिए मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता हूं। इसके बाद बहुत ही दुःखी होकर अंबा वहां से चली गई।

महाभारत युद्ध में पांडव पक्ष से कौन से योद्धाओं ने भाग लिया ?

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पांडवों के पक्ष के कुछ प्रमुख रथी और महारथियों का वर्णन - 1) पांचों पांडव युधिष्ठिर , भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव । 2) द्रौपदी के पांचों पुत्र -  प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतरकीर्ति, शतानिक,श्रुतकर्मा । 3) महाराज विराट और उनके पुत्र उत्तर -  महाराज विराट अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के पिता और उत्तरा थे। 4) अभिमन्यु  - ये अर्जुन और श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा के पुत्र थे। 5) युधामन्यु और सात्यकि सात्यकि एक यादव योद्धा थे। 6) द्रुपद, धृष्टद्युम्न और शिखंडी - द्रुपद द्रौपदी के पिता और पांचाल देश के राजा थे , धृष्टद्युम्न और शिखंडी उनके पुत्र थे। 7) धृष्टद्युम्न का पुत्र क्षत्रधर्मा - धृष्टद्युम्न द्रौपदी के भाई थे। 8) शिशुपाल का पुत्र और चेदिराज धृष्टकेतु। 9) क्षत्रदेव , जयंत, अमितौजा, सत्यजीत, अज़ और भी पांडवों के ही पक्ष में थे। 10) केकय देश के पांच सहोदर राजकुमार कौशिक, सुकुमार, नील, सर्यदत्त, शंख और मदिराच्श्र । 11)चीत्रायुध,चेकितान‌्,सत्यधृति,व्याप्रदत्त , महाराज वार्दॄक्षेमि और चन्द्रसेन। 12) सेनाबिंदु या क्रोधहन्ता नाम का योद्धा तो श्री कृष्ण...

महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष से कौन से योद्धाओं ने भाग लिया ?

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भीष्म ने दुर्योधन से कहा कि तुम्हारे पक्ष में करोड़ों और अरबों रथी और महारथी है। उनमें से कुछ प्रमुख है उनके नाम मैं तुम्हें बताता हूं - 1) दुर्योधन और उनके 100 भाई जो गदा, प्रास और बाल - तलवार को चलाने निपुर्ण थे। 2) भीष्म - जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और वह हर तरह अस्त्र शस्त्र, दिव्यास्त्र , व्यूह रचना आदि में पारंगत थे। 3) कृतवर्मा - यह भोजराज हृदिक के पुत्र थे। 4) महाराज शल्य - ये महाराज पांडु की दूसरी पत्नी माद्री के भाई थे और उन्होंने कहा था कि में अपने भांजे नकुल और सहदेव को छोड़कर बाकी सभी से युद्ध करूंगा। 4)  जयद्रथ - यह सिंधु देश के राजा और दुर्योधन की बहन दुश्शाला के पति थे। 5) राजा सुदक्षिण जो कंबोजन के राजा थे। 6) राजा नील जो माहिष्मतीपुरी के राजा थे। 7) विन्द और अनुविन्द जो अवन्ति के राजा थे। 8) त्रिगर्त देश के पांच भाई जिनमें से एक का नाम  "सत्यरथ" था। 9) दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण और दुशासन का पुत्र। 10) राजा " दण्डधार " । 11) कौशल्य और वृहद्वल । 12) पांडवो और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य। 13) कृपाचार्य जो ...

चिन और भारत संबंध कितना पुराना है ?

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चीन  के साथ भारत  के संपर्क लगभग  तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व  से शुरू हुआ।  कौटिल्य  के " अर्थशास्त्र " में  चीन  के रेशमी वस्त्र का वर्णन मिलता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि  चीन  का नाम वहां के  चिन् वंश  (221 ई. पू. - 320 ई. पू) के आधार पर पड़ा है।  तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व  में उत्तर - पश्चिम  चीन  में इस नाम का एक छोटा राज्य था। महाभारत  के " द्रोण पर्व " में चीन के नाम का उल्लेख मिलता है।   "यवना चीन - कम्बोजा दारूणा म्लेच्छजातय: । सकृदग्रहा कुलत्थाश्च हूणा पारसिकै सह ।।"

चीन और भारत में व्यापार कब शुरू हुआ ?

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🏵️ईसा के बहुत पहले से ही भारत और चीन के बीच जल और थल दोनों ही मार्गों से व्यापारिक संबंध थे। 🏵️पहली शताब्दी ईसवी के चीनी ग्रंथ से पता चलता है कि चीन का ची हुआंग - चे (काञ्ची) के साथ समुद्री मार्ग से व्यापार होता था। 🏵️पहली से छठवीं ईसवी  के बीच  चीनी सम्राट  ने  हुआंग -चे  के शासक के पास बहुमूल्य उपहार भेजे और उससे एक  दूतमंडल चीन भेजने को कहा। 🏵️इस बात से पता चलता है कि ईसा पूर्व कि द्वितीय अथवा पहली शताब्दियों में  भारत  और  चीन  के बीच समुद्री मार्ग से विधिवत सम्पर्क स्थापित हो चुका था।

चीन ने भारत पर अवैध कब्जे का आरोप कब लगाया ?

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❇️अगस्त 1986  में चीन ने  भारत  पर ही सीमा उलंघन का आरोप लगाया ,जिसका  भारत  सरकार को खंडन करना पड़ा। ❇️6  अगस्त  1986  को भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि चीन ने भारतीय क्षेत्र   सुमदुरोंग - चू घाटी  में एक   हेलीपैड  का निर्माण किया गया है। ❇️18 दिसंबर ,1986  को   राजीव गांधी  ने यह आश्वाशन दिया कि चीन को सीमा क्षेत्र के बारे मैं मेरे कोई रियायत नहीं दी जाएगी। ❇️20 फरवरी 1987  को भारत   ने  अरुणाचल प्रदेश  को भारतीय संघ का  24  वां राज्य  घोषित किया,तो  21 फरवरी,1987  को चीनी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा भारत की इस कार्यवाही ने चीन की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का गंभीर उलंघन किया गया है। दूसरी तरफ भारत ने इस विरोध को भारत के घरेलू मामले में हस्तक्षेप की संज्ञा दी। ❇️सातवें दौर की वार्ता में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश  सचिव ए. पी. वेंकटेश्वर  और चीन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व वहां के ...

तिब्बत का इतिहास भाग -4

35) 750 ई. पिलावको का पुत्र  कोलोफेंग,  "सियाम " का राजा बना और उसने शासन के दौरान तिब्बत से कई संधियां हुई। " इमोसन " जो कोलोफेंग के बाद सियाम   के राजा " बनों " ने, 778 ई. में तिब्बत से सहायता मांगी और,तिब्बती और सियामियों की सीमाएं " सझेचुन " में चीनियों के विरूद्ध मिलकर लड़ी। 8 साल तक वहीं ठहरने के बाद जब चीन और थाईलैण्ड के बीच शांति हुई तब तिब्बती सेना थाईलैण्ड से वापस लौटी। 36) कुछ ही साल बाद अरब के खलीफा " हारून अल राशीफ' ने तिब्बत के विरूद्ध चीन से अपनी सुविधा के लिए थोड़े समय के लिए समझौता किया। 37) " पेटेंश " के अनुसार तिब्बत के विस्तार को रोकने के लिए पूर्व मध्य युगीन दो बहुत शक्तिशाली सम्राटों के बीच संधि बहुत जरूरी थी, उन दो बहादुर पर्वतीय सम्राटों को राजनैतिक क्षमताओं और कुशलताओं का गवाह है। 38) " त्री  सौंड़त्सेन सागस्टन " ( 799 - 815 ई.) जिसे आमतौर पर "सनलेन " कहा जाता है कि शासन के दौरान तिब्बती सेना पश्चिम में अरबों की नाक में लगातार दम किए रही। कुबी के अनुसार तिब्बतियों ने "ट...

तिब्बत का इतिहास भाग -3

18) 676 ई. तिब्बतियों ने तिब्बत वापस लौटते समय लूट के माल सहित " शान - ताऊ " पर चढ़ाई कर दी।  चीनी सम्राट ने फौरन आदेश देकर प्रधानमंत्री " ल्यू - जेन - कुई " को " ताओं - हो " सैनिकों और एक और कमांडर " ली - यू " के साथ " लियांग - चाऊ "," मी - कुंग " और " तान - लिंग " शहरों पर धावा बोल दिया। 19) बदले में " ली चींग - युआन " नामक एक नए जनरल ने " लांगजी " में तिब्बतयों पर आक्रमण करके उन्हें हरा दिया। वह " कोकोनोर " की तरफ बढ़ा,लेकिन यहां सेनाएं हार गई और उसे पीछे हटना पड़ा। 20) 710 ई. में तिब्बत के 36 वें राजा " वी - सौंड़त्सेन " को चीनी राजकुमारी " चिन - चेंग कुंग चू "  सौंपी दी गई ताकि इस सदभावना से चीन और तिब्बत की आपसी दुश्मनी खत्म हो जाये। चीन से बाहर आकर एक " बारगी " राजकुमारी खुश नहीं थी और फरार होना चाहती थी। उसकी इस योजना की सूचना " शी - ताशी " दासों के एक मंत्री द्वारा चीनी सम्राट को दे दी गई। चीनी सम्राट ने उसी समय उसे अपने और देश के हित...

तिब्बत का इतिहास भाग -2

6) राजकुमारी  वेन - चेन कुंग - चू  अपने साथ 641 ई.  में हान  भाषा में  लिखी कई पुस्तकें तिब्बत ले गई। आधुनिक तिब्बती लिपि, विद्वान  थोनमी संभोट  ने गुप्तकालीन लिपि की सहायता से खोजी थी। इन परिस्थितियों में यदि " राजा तांग सभ्यता का प्रशंसक है" जैसे लेखकों ने दावा किया है , तो उसने तिब्बत में हान  भाषा  को अपनाया या चलाया क्यों नहीं ? यह तांग सभ्यता  के प्रति " प्रशंसा" का प्रतीक नहीं है। इसके उलट काफी लड़ाई के बाद आक्रामक तिब्बती सम्राट को खुश करने के लिए चीनी राजकुमारी वधू (दुल्हन) के रूप में सौंपी गई थी। 7)  641 से 710 ई . के बीच के 59 वर्षों के तिब्बती प्रतिहास को छोड़ गए। जिस दौरान ऐतिहासिक महत्व की कई घटनाएं हुई। सम्राट  सौंडत्सेन गैंपो  के पोते  मंगसांड   सौंडत्सेन  ( 649 से 676 ई. ) ,और   खरी - द -   सौंडत्सेन  (सन् 670 - 704 ई. तक ) और   क्रीद -  त्सुंगत्सेन  अगत्सम     (704 -755 ई. तक ) राजा रहे, सभी नाबालिक थे और महान मंत्री के रू...

तिब्बत का इतिहास भाग-1

तिब्बत का इतिहास 127 ई . से 842 ई. तक  1) चीन का यह कहना है कि " तिब्बत चीन का एक अभिन्न हिस्सा है " इस बात को उचित ठहराने के लिए रचा गया था , बीजिंग रिव्यू ,  ग्रंथ 26, अंक 24 ,13 जून सन् 1983  में तोड़ मरोड़ कर और अधूरे रूप में छपा था। लाब्संग  तथा  जिन यून  नामक शोधकर्ताओं ने अस्पष्ट तौर पर  सौड़त्सेन गैम्पो  को मान्यता दी ,लेकिन यह उन्होंने नहीं माना कि यह तिब्बत का  23 वा  राजा था।  तिब्बत का पहला राजा  न्यीतरी त्सेंपो  , जिसका अर्थ है " सिंहासन पर गर्दन वाला राजा गिना जाता है। जो  127 ई . पू. सिंहासन पर बैठा था। 2) यही से वर्तमान राजकीय तिब्बती कैलेण्डर का " भूटान वर्ष  " गिना जाता है। राजा ने  याबुलाखंड  नाम से प्रसिद्ध पहला किला बनवाया। 3) उस लेख में तिब्बती इतिहास के  831  महत्वपूर्ण साल सिर्फ इसलिए छोड़ दिए गए थे कि उन वर्षों का चीनी साम्राज्य या उसने दावों से कुछ लेना देना नहीं है। रिव्यू का कहना है कि लेखकों ने " तिब्बत के इतिहास को सुनियोजित ढंग से बिगाड़ा है। " सौंड...

चीनी दूतावास के बाहर, भेड़ों के साथ अटल बिहारी ने प्रदर्शन क्यों किया ?

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चीन   ने भारत सरकार को एक चिठ्ठी लिखकर आरोप लगाया कि भारतीय सैनिकों ने उसकी  800 भेड़ें  और  59 याक  चुराए हैं। भारत सरकार ने इस बात से इंकार कर दिया। जनसंघ के नेता और साल  1965  में सांसद रहे  अटल बिहारी वाजपेयी  ने  800 भेड़ों  का इंतजाम किया और फिर उन्होंने भेड़ों को नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास के सामने लाकर खड़ा कर दिया और इन भेड़ों के साथ एक तख्ती भी थी। जिस पर लिखा था कि , " मुझे खा लो, लेकिन दुनिया बचा लो ” इस बात से चीन बहुत ही आगबबूला हो गया। चीन ने उस समय के  लाल बहादुर शास्त्री  सरकार को एक पत्र लिखा। चीन ने कहा कि ," वाजपेयी का यह विरोध चीन का अपमान है। "  उसने आरोप लगाया कि यह सब  लाल बहादुर शास्त्री  सरकार की शह पर हो रहा है।

चीनियों और तिब्बतियों के बीच 1912 में क्या समझौता हुआ ?

चीनियों और तिब्बतियों के बीच 14 दिसंबर 1912 का समझौता चीनियों और तिब्बतियों में लड़ाई के कारण चीनियों के प्रतिनिधि एवं तिब्बतियों के प्रतिनिधि एक दूसरे को संतुष्ट करने के मकसद से नेपाली प्रतिनिधियों के साक्षी में उनके कार्यकाल में मिले। विवादास्पद तथ्यों पर प्रतिनिधियों ने वार्ता की ,और इस तरह के निर्णय किए - 1) सबसे पहले " याब्शी हाउस " में जमा किए गए शस्त्रों की गणना करके देखना की इसकी संख्या ठीक है या नहीं। इसके बाद " याब्शी हाउस " में रखें इन शस्त्रों को इनके बाद भी जमा किए जाने वाले शस्त्रों को तिब्बतियों को सौंप देना। तिब्बती प्रौंग गन ,नई बनी फाइव शोर्ट मैगजीन युशांग गन , नू जाऊं या मार्टिन हेनरी गन जिसपर तिब्बती चिन्ह अंकित है ,तोप , बिना बोल्ट वाली छोटी बड़ी बंदूके बारूद और कारतूस जो चीनियों के पास है "शो" भंडार - कक्ष में रखें जायेंगे। भंडार - कक्ष पर चीनी, तिब्बती और नेपाली प्रतिनिधियों  द्वारा सील बंदी की जाएगी। नेपालियों के द्वारा इसकी रक्षा तब तक की जाएगी जब तक चीनी  "त्रोमो की सीमा " (चुंबी घाटी) पर नहीं कर लेते।...