पांडवों को उनके हत्या के षड्यंत्र की सूचना विदुर ने कैसे दी ?

जब पांडव अपनी माता कुंती के साथ सभी बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद लेकर वारणावत जाने लगे। तब कई भाषाओं के ज्ञाता विदुर जी ने सांकेतिक भाषा में युधिष्ठिर को वारणावत में पांडवों कि हत्या के षड्यंत्र के बारे में बताया था। जो इस प्रकार है -

" नितिज्ञ पुरुष को शत्रु का मनोभाव समझकर उससे अपनी रक्षा करनी चाहिए। एक ऐसा अस्त्र है, जो कि लोहे का तो नहीं है , परंतु शरीर को नष्ट कर सकता है।
यदि शत्रु के इस दाव को कोई समझ ले तो वह मृत्यु से बच सकता है। आग घास फूस और सारे जंगल को जला डालती है, परंतु बिल में रहने वाले जीव उससे अपनी रक्षा कर लेते है। यही जीवित रहने का उपाय है।
अंधे को रास्ता और दिशाओं का ज्ञान नहीं होता। बिना धैर्य के समझदारी नहीं आती। "

अर्थ - शत्रुओं ने तुम्हारे लिए एक ऐसा महल तैयार किया है जो आग से जलने वाले पदार्थो से बना है।
उससे बचने के लिए तुम एक सुरंग तैयार करा लेना।



" शत्रुओं के दिए हुए बिना लोहे के हथियार को जो स्वीकार करता है वह स्याही के बिल में घुस कर आग से बच जाता।
घूमने फिरने से रास्ते का ज्ञान हो जाता है। नक्षत्रों से दिशा का पता चल जाता है। जिसकी पांचों इन्द्रियां वश में है, उनका शत्रु उसकी कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकता। "

अर्थ - दिशा आदि का ज्ञान पहले से ही कर लेना ताकि रात में भटकना ना पड़े।
उस सुरंग से यदि तुम बाहर निकल जाओगे तो आग में जलने से बच जाओगे।
अगर तुम पांचों भाई एकमत रहोगे तो शत्रु तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकेंगे।

 यह घटना फाल्गुन शुक्ल अष्टमी , रोहिणी नक्षत्र की है।

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