ब्रह्मास्त्र और बाकी दिव्यास्त्र किन मंत्रो से बुलाएं जाते थे ? भाग -2
4) श्रीपशुपतास्त्र मंत्र -
"ॐ श्लीं पशु हुं फट् ।"
5) श्रीपशुपतास्त्र प्रकट मंत्र -
"ॐ नमो पशुपतास्त्र ! स्मरण मात्रेण प्रकटय - प्रकटय
शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, मम सर्व शत्रुंसैन्यं विध्वंसय -
विध्वंसय, मारय - मारय हुं फट् ।"
शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, मम सर्व शत्रुंसैन्यं विध्वंसय -
विध्वंसय, मारय - मारय हुं फट् ।"
6) श्रीयमास्त्र प्रकट मंत्र -
" ॐ नमो यमदेवताय नमः। स्मरण मात्रेण प्रकटय - प्रकटय । अमुकं शीघ्रं मृत्युं हुं फट् ।"
7) श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र -
" ॐ नमो भगवते सुदर्शनाय हो हो सुदर्शन दुष्ट दायर -
दायर दुरितं हन - हन पापं दह - दह, रोगं मर्दय - मर्दय , आरोग्य कुरू - कुरू , ॐ ॐ ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं
फट फट दह - दह हन - हन भीषय - भीषय स्वाहा "
दायर दुरितं हन - हन पापं दह - दह, रोगं मर्दय - मर्दय , आरोग्य कुरू - कुरू , ॐ ॐ ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं
फट फट दह - दह हन - हन भीषय - भीषय स्वाहा "
8) श्रीसुदर्शनचक्रास्त्र प्रकट मंत्र -
ॐ नमो सुदर्शनचक्राय , महाचक्राय , शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, प्रकटय - प्रकटय , मम शत्रुं काटय - काटय ,
मारय - मारय, ज्वालय - ज्वालय , विध्वंसय -
विध्वंसय, छेदय - छेदय , मम सर्वत्र रक्षय - रक्षय
हुं फट् ।"
मारय - मारय, ज्वालय - ज्वालय , विध्वंसय -
विध्वंसय, छेदय - छेदय , मम सर्वत्र रक्षय - रक्षय
हुं फट् ।"
9) श्रीनारायणास्त्र मंत्र -
"हरि: ओम नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय
विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं वा अजीर्णं पंचविषूचिकां हन - हन एकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशक - नाशक चतुरशीतिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान हन - हन सर्वदोषान् भंजय - भंजय तत्सर्वं नाशय - नाशय
शोषण - शोषण आकर्षय - आकर्षय शत्रुन - शत्रुन
मारय - मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय - विद्वेषय
स्तम्भय - स्तम्भय निवारय - निवारय विघ्नैर्हन - विघ्नैर्हन दह - दह मथ - मथ विध्वंसय -
विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्या
परविद्यां छेदय - छेदय भेदय - भेदय चतु:शीतानि
विस्फोटय - विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिघव्याघ्र
द्विपदचतुष्पद - पद - ब्रहमी ब्रह्मान्दिवि भूव्यन्तरिक्षे
अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वन् हन - हन विद्युनमेघनदी - पर्वताटवी - सर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वंश कुरु - कुरु हरि: ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठ: ठं ठं ठ: नमः "
विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं वा अजीर्णं पंचविषूचिकां हन - हन एकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशक - नाशक चतुरशीतिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान हन - हन सर्वदोषान् भंजय - भंजय तत्सर्वं नाशय - नाशय
शोषण - शोषण आकर्षय - आकर्षय शत्रुन - शत्रुन
मारय - मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय - विद्वेषय
स्तम्भय - स्तम्भय निवारय - निवारय विघ्नैर्हन - विघ्नैर्हन दह - दह मथ - मथ विध्वंसय -
विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्या
परविद्यां छेदय - छेदय भेदय - भेदय चतु:शीतानि
विस्फोटय - विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिघव्याघ्र
द्विपदचतुष्पद - पद - ब्रहमी ब्रह्मान्दिवि भूव्यन्तरिक्षे
अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वन् हन - हन विद्युनमेघनदी - पर्वताटवी - सर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वंश कुरु - कुरु हरि: ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठ: ठं ठं ठ: नमः "

Bda bhyank mantr h🙂🙂🙏🙏
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