महाभारत में कौन अपने पिता की सन्तान नहीं थे ? भाग - 1

1) द्रौपदी और धृष्टद्युम्न

पांचाल नरेश द्रुपद एक ऐसी सन्तान चाहते थे जो द्रोणाचार्य को मार सके। इस इच्छा की पूर्ति कौन कर सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर तलाश  में द्रुपद घूमते - घूमते  गंगा तट के कल्मावी के नगर पहुंचे।

वहां याज और उपयाज नाम के दो ब्राह्मण भाई रहते थे।
द्रुपद, उपयाज के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। फिर "एक वर्ष " तक उनकी सेवा की और उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ की प्रार्थना की।



तब उपयाज ने उन्हें अपने बड़े भाई याज के पास जाने को कहा और याज ने यज्ञ किया और उस यज्ञ की अग्नि से -

 " पहले धृष्टद्युम्न और फिर कृष्णा ( द्रौपदी ) नाम की कन्या उत्पन्न हुई। "

2) धृतराष्ट्र ,पांडु और विदुर 

महाराज शांतनु की पत्नी सत्यवती के दो पुत्र थे। चित्रांगद और विचित्रवीर्य

विचित्रवीर्य का विवाह काशी नरेश की कन्याओं अम्बिका और अंबालिका से हुआ था।

विचित्रवीर्य को कोई सन्तान होने से पहले ही वो क्षय रोग के कारण स्वर्ग सिधार गए।

तब उनकी माता सत्यवती ने अपने पुत्र व्यास को बुलवाया और सारी बात समझाकर, वंश रक्षा की बात कही।



तब व्यास जी से अम्बिका को धृतराष्ट्र , अंबालिका को पांडु  और अंबालिका के कहने पर उनकी एक दासी भी व्यास जी के पास गई, उस दासी से विदुर जी की उत्पत्ति हुई।

3) दुर्योधन, सभी कौरव और दुश्शाला 

गांधारी धृतराष्ट्र की पत्नी थी।

एक बार महर्षि व्यास, " हस्तिनापुर " में आए। गांधारी ने महर्षि व्यास की खूब सेवा की , तब उन्होंने गांधारी से खुश होकर उन्हें वर मांगने को कहा - तब गांधारी ने उनसे अपने पति जैसे बलवान 100 पुत्र होने का वर मांगा।


उसके बाद जब गांधारी गर्भवती हुई तब 2 वर्ष बाद तक  उनका गर्भ उनके पेट में ही रुका रहा। 

गांधारी ने इन सब से घबराकर गर्भ को गिरा दिया।गांधारी के पेट से लोहे के गोले के समान एक मांस का पिण्ड निकला। "

व्यास जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब देख लिया और वहाँ पहुंच गए। व्यास जी ने गांधारी को ऐसा करने से रोका। फिर व्यास जी ने गांधारी को उस पिंड पर ठंडा पानी छिड़कने को कहा। उस पिंड पर जल छिड़कने पर उस पिंड के 101 टुकड़े हो गए।

व्यास जी के आज्ञानुसार उन सभी टुकड़ों को घी से भरे कुंडो में रख देने को कहा और आज्ञा दी कि इसे 2 वर्ष बाद ही खोलना।

समय आने पर उन्हीं मांस के पिंडो में से दुर्योधन और फिर हर दिन बाकी सब कौरव पैदा हुए।

100 टुकड़ों में से जो एक अधिक टुकड़ा था उससे एक कन्या पैदा हुई जिसका नाम दुश्शाला था।

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