गंगा जी ने क्यों मार डाला,अपने सात पुत्रों को ?
महाराज शांतनु ने जब गंगा को देखा तो उनसे विवाह की इच्छा जताई।
"तब गंगा ने कहा कि मैं चाहे जो भी करूं आप मुझे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे ? तभी मैं आपसे विवाह करूंगी।"
शांतनु ने शर्त स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह हो गया।
जब गंगा और महाराज शांतनु की पहली संतान हुई तब गंगा ने " मैं तेरी प्रसन्नता का कार्य करती हूं " ऐसा कहकर उसे गंगा की धार में डाल दिया।
शांतनु को यह बात बहुत बुरी लगी, पर शर्त की बात सोचकर वह कुछ नहीं बोलते थे।
इसी प्रकार उनके सात पुत्र हुए और सातों को इसी तरह गंगा ने गंगा की धार में डुबो दिया।
जब आठवां पुत्र हुआ तब भी गंगा जी उसको लेकर गंगा तट की ओर चली।
तभी शांतनु ने क्रोध में आकर कहा कि ऐसी कौन सी माता है जो अपने पुत्र की हत्या करती है। क्यों तुम इन बच्चों को मार रही हो ?
तब गंगा जी ने कहा - " मेरे ये पुत्र अष्ट वसु है और वशिष्ठ मुनि के श्राप से इन्हे मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ गया। मैंने उन्हें तुरंत मुक्त करने की प्रतिज्ञा ली थी। इसीलिए मैंने ऐसा किया "
अब वे श्राप से मुक्त हो गए। अब मैं जा रही हूं। यह पुत्र वसुओं का अष्टमांश है।
यह आपका आठवां पुत्र है। इतना कहकर गंगा जी अन्तर्ध्यान हो गई।
कुछ वर्षों बाद एक दिन शांतनु गंगा किनारे टहल रहे थे। तब उन्होंने देखा कि एक बालक ने अपने बाणों से गंगा जी के प्रवाह को रोक दिया।
यह देखकर शांतनु बहुत ही आश्चर्य चकित हुए। उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो ?
तभी वहां गंगा जी आई और उन्होंने बताया कि ये आपका आठवां पुत्र देवव्रत है।
फिर देवव्रत को शांतनु को सौंप के,वे वहां से चली गई।
"तब गंगा ने कहा कि मैं चाहे जो भी करूं आप मुझे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे ? तभी मैं आपसे विवाह करूंगी।"
शांतनु ने शर्त स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह हो गया।
जब गंगा और महाराज शांतनु की पहली संतान हुई तब गंगा ने " मैं तेरी प्रसन्नता का कार्य करती हूं " ऐसा कहकर उसे गंगा की धार में डाल दिया।
शांतनु को यह बात बहुत बुरी लगी, पर शर्त की बात सोचकर वह कुछ नहीं बोलते थे।
इसी प्रकार उनके सात पुत्र हुए और सातों को इसी तरह गंगा ने गंगा की धार में डुबो दिया।
जब आठवां पुत्र हुआ तब भी गंगा जी उसको लेकर गंगा तट की ओर चली।
तभी शांतनु ने क्रोध में आकर कहा कि ऐसी कौन सी माता है जो अपने पुत्र की हत्या करती है। क्यों तुम इन बच्चों को मार रही हो ?
तब गंगा जी ने कहा - " मेरे ये पुत्र अष्ट वसु है और वशिष्ठ मुनि के श्राप से इन्हे मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ गया। मैंने उन्हें तुरंत मुक्त करने की प्रतिज्ञा ली थी। इसीलिए मैंने ऐसा किया "
अब वे श्राप से मुक्त हो गए। अब मैं जा रही हूं। यह पुत्र वसुओं का अष्टमांश है।
यह आपका आठवां पुत्र है। इतना कहकर गंगा जी अन्तर्ध्यान हो गई।
कुछ वर्षों बाद एक दिन शांतनु गंगा किनारे टहल रहे थे। तब उन्होंने देखा कि एक बालक ने अपने बाणों से गंगा जी के प्रवाह को रोक दिया।
यह देखकर शांतनु बहुत ही आश्चर्य चकित हुए। उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो ?
तभी वहां गंगा जी आई और उन्होंने बताया कि ये आपका आठवां पुत्र देवव्रत है।
फिर देवव्रत को शांतनु को सौंप के,वे वहां से चली गई।


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