भीष्म का नाम ,भीष्म कैसे पड़ा ?

एक दिन राजश्री शांतनु यमुना नदी के किनारे वन में विचरण कर रहे थे। वहां शांतनु ने एक सुंदर कन्या की देखा। राजा ने उस कन्या से पूछा - कि तुम कौन हो ?


कन्या ने कहा - मैं निषाद कन्या हूं और पिता की आज्ञा से नाव चलाने आई हूं, मेरा नाम सत्यवती है।

तब राजा शांतनु ने सत्यवती से विवाह की इच्छा प्रकट की और उनके पिता से बात की। 

सत्यवती के पिता ने राजा से विवाह के लिए एक शर्त रखी।

निषादराज ने कहा - कि
" आपका और सत्यवती का पुत्र ही आगे चलकर राजा बनेगा ,यदि आप यह वचन देंगे तो ही मै आपके साथ अपनी पुत्री का विवाह करूंगा।"



राजा ने उनकी शर्त को अस्वीकार कर दिया और हस्तिनापुर लौट आए। लेकिन सत्यवती को भुला नहीं पाये और चिंतित रहने लगे।

एक दिन देवव्रत (देवव्रत, भीष्म का असली नाम है) ने अपने पिता शांतनु से उनकी चिंंता का कारण पूछा, परंतु उनके पिता ने कुछ नहीं बताया।


फिर देवव्रत ने मंत्रियों के माध्यम से पूरी बात का पता लगाया और बड़े बूढ़े क्षत्रियों को साथ लेकर सत्यवती के पिता के पास गए और वहां जाकर देवव्रत को सारी बात पता चली।
फिर उन्होंने सत्यवती के पिता से कहा कि मैं वचन देता हूं कि आपकी पुत्री की संतान ही राजा बनेगा।

फिर सत्यवती के पिता से कहा कि " आप तो इस राज्य की इच्छा नहीं रखते है पर आपकी संतान को यह इच्छा अवश्य होगी।



तब देवव्रत ने प्रतिज्ञा कि ,की मैं आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा और कभी विवाह भी नहीं करूंगा।

 देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उन्हें भीष्म कहा जाने लगा।

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