महाभारत के अनुसार, भीष्म का जन्म, किस श्राप के कारण हुआ ?

वशिष्ठ मुनि का श्राप

एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ वन में आए। एक वसु , पत्नी की दृष्टि ,समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली नंदिनी गाय पर पड़ी। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया।




द्यौ ने अपनी पत्नी से कहा - यह नंदिनी नामक गाय वशिष्ठ मुनि की है। यदि कोई मनुष्य इसका दूध पी ले तो वह 10,000 वर्ष तक जीवित और जवान रहता है।

द्यौ की पत्नी ने कहा - कि मुझे यह गाय अपनी सखी के लिए चाहिए। आप इस गाय का हरण (अपहरण) कर लीजिए।

द्यौ ने अपने भाइयों के साथ मिलकर, वशिष्ठ मुनि के आश्रम में न होने पर, नंदिनी गाय का अपहरण कर लिया।


जब वशिष्ठ मुनि आश्रम में आए तो उन्होंने नंदिनी को नहीं पाया। फिर वशिष्ठ मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि वसुओ ने उनकी गाय का हरण किया है।

यह जानकर वशिष्ठ मुनि ने वसुओ को श्राप दिया कि -

" वसुओ ने मेरी गाय हर ली है। इसीलिए मनुष्य योनि में उनका जन्म होगा। "

जब यह बात वसुओ को पता चली तो वे नंदिनी गाय को वापस ले आए और वशिष्ठ मुनि से क्षमा मांगी। 

तब वशिष्ठ मुनि ने कहा - कि
 " और सभी तो 1 - 1 वर्ष में मनुष्य योनि से मुक्त हो जाएंगे परंतु द्यौ नामक वसु लंबे समय के लिए मृत्यु लोक में रहेगा।

द्यौ मृत्यु लोक में संतान उत्पन्न नहीं करेगा और अपने पिता कि प्रसन्नता के लिए स्त्री समागम का भी त्याग कर देगा। "


वशिष्ठ मुनि की बात सुनकर सभी वसु गंगा जी के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। सभी वसुओ ने उनसे प्रार्थना की , कि आप ( गंगा ) हमें जन्म लेते ही अपने जल में फेंक देना।


इसे गंगा जी ने स्वीकार कर लिया और ऐसा ही किया। यह आठवां पुत्र वहीं द्यौ नाम का वसु है। यह चिरकाल तक मनुष्य योनि में रहेगा और इतना कहकर गंगा जी अंतर्ध्यान हो गई।

वशिष्ठ मुनि 

महाभारत के अनुसार वशिष्ठ मुनि वरुण के पुत्र थे। मेरु पर्वत के पास ही उनका आश्रम था। वे वहीं तपस्या करते थे। कामधेनु ( गाय ) की पुत्री नंदिनी भी वही रहती थी।

वशिष्ठ मुनि ने 8 वसुओ को श्राप दिया था जो बाद में शांतनु और गंगा जी के पुत्रों के रूप में जन्मे। जिनमें 8 वें वसु भीष्म थे।

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