महाभारत की रचना व्यास जी ने अपने मन में की, लिखित तौर पर नहीं!

 महर्षि व्यास जी ने महाभारत की रचना अपने मन में की थी ,लिखित तौर पर नहीं।

व्यास जी ने ब्रम्हा जी की पूजा अर्चना की और जब ब्रम्हा जी उनके पास आए तो उन्होंने उनका आदर सत्कार किया।



फिर उनसे कहा - कि मैंने मन में एक महाकाव्य की रचना की है परन्तु समझ में नहीं आता कि मैं इसे लिखूं कैसे ?

तब ब्रम्हा जी ने, व्यास जी को गणेश जी का नाम सुझाया। 
उसके बाद व्यास जी ने गणेश जी की स्तुति करके उन्हें बुलाया।



गणेश जी के आने पर व्यास जी ने
 गणेश जी से कहा -  कि मैंने एक काव्य रचना की है और मेरा अनुरोध है कि आप इसको लिखे।

 तब गणेश जी ने उत्तर दिया -  कि मैं इसको लिखूंगा , परंतु आप बोलते वक्त एक क्षण भी नहीं रुकेंगे।

 यह सुनकर व्यास जी ने कहा - कि ठीक है पर आपको
मेरे सभी श्लोकों का अर्थ समझकर लिखना पड़ेगा और गणेश जी मान गए।

तब व्यास जी कुछ मुश्किल श्लोकों की रचना की ,जब तक गणेश जी उन श्लोकों का अर्थ समझते तब तक व्यास जी कई श्लोकों की रचना कर लेते।

इस प्रकार व्यास जी  के बोले हुआ श्लोकों को गणेश जी ने लिखा था।



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