पांडवो की मृत्यु से पहले उनका अंतिम संस्कार क्यों हुआ ?

दुर्योधन ने पुरोचन से कहा कि तुम वारणावत (लाक्षाग्रहसन ,सर्जरस (राल) और लकड़ी आदि से भवन बनाओ। उसकी दीवारों पर घी, तेल, चर्बी और लाख मिली हुई मिट्टी का लेप कर देना। जिससे उस भवन में आग आसानी से लग जाए।

पांडव अपनी मां कुंती के साथ वारणावत चले गए। वहां जाकर सभी 1 साल तक वहां रहे। फिर विदुर जी की आज्ञा अनुसार वो सभी आधी रात को उस भवन में आग लगाकर सुरंग के रास्ते वहां से निकलकर वन में चले गए।



जब कुंती पांडवो के साथ वारणावत में थी। तब वहां एक भीलनी अपने पांच पुत्रों के साथ भोजन मांगने आई। वे सभी नशे मी धुत्त थे। जिसके कारण वे भोजन करके भवन में ही सो गए और आग लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

इस आग में भवन का निर्माण करवाने वाले पुरोचन की भी मृत्यु हो गई।

जब यह समाचार हस्तिनापुर पहुंचा,तब धृतराष्ट्र ने कौरवों को आज्ञा दी कि तुम सब वारणावत जाकर
पांडव और उनकी मां का अन्तयोष्टि संस्कार विधिपूर्वक करों।

भीलनी और उसके पांच पुत्रों को ही कौरवों ने कुंती और युधिष्ठिर,भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव का शव समझ लिया और उसी का अन्तयोष्टि संस्कार कर दिया।

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