राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 8
बिस्मिल जी की मृत्यु के बाद
19 दिसम्बर 1927 ई. सोमवार (पौष कृष्ण 11 संवत् 1984 वि.) को 6.30 बजे प्रात: काल फांसी पर लटका दिया गया।फांसी के बाद बिस्मिल जी का पार्थिव शरीर उनके पिता ने गोरखपुर कारागार के अधीक्षक को एक प्रार्थना पत्र लिखकर निवेदन किया कि बिस्मिल जी का शव उनके परिवारजनों को सौंप दिया जाए। वे अपने बेटे का शव गृह जनपद शाहजहांपुर ले जाकर पूरे विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार करना चाहते है।
जेल अधिकारी ने बिस्मिल जी के पिता से कहा कि यदि वे वादा करे कि बिस्मिल जी के शव का जुलूस नहीं निकाला जाएगा , तो ही उन्हें उनके पुत्र का शव दिया जाएगा।
बिस्मिल जी के पिता ने कहा कि यदि शव का जुलूस निकालने की उनकी कोई इच्छा नहीं है लेकिन अगर श्रद्धालु जनता जुलूस निकालने की जिद्द करें तो वह जनता के उत्साह को रोक नहीं सकते हैं।
काफ़ी बहस के बाद बिस्मिल जी का शव उनके पिता को सौंपा गया। जैसे ही शव जेल द्वार पर पहुंचा जनता ने " ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश हो " " भारत माता की जय " नारे गूंज उठे।
जनता ने राम प्रसाद जी के शव का जुलुस निकाला। एक टिकटी बनाई गई और उसी पर शव को लिटा कर जुलुस निकाला गया। इस जुलुस में बहुत भीड़ थी।
जब शव बिस्मिल जी के घर के पास पहुंचा , तब उनकी माता मूलमति ने कहा, " शव को सीधा खड़ा कर दो " और ऐसा ही किया गया। फिर उनकी माता ने भाषण दिया और कहा कि मेरा एक और बेटा है मैं इसे भी देश पर कुर्बान करने को तैयार हूं। यदि मेरे और भी पुत्र होते तो उन्हें भी देश को सौंप देती।

Comments
Post a Comment