राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 6

मुकदमें के फैसले का दिन

6 अप्रैल 1927 का दिन , सभी क्रांतिकारियों ने एक दुसरे को फूल मालाएं पहनायी और इत्र लगाया।

बिस्मिल जी ने " वन्दे मातरम् " का नारा लगाया और बाकी ने " भारत माता की जय "।

सभी के हाथ में हथकड़ी और पांव में बेड़ियां थी। चलते - चलते बिस्मिल जी ने कहा -

"अपना खून अपने ही हाथों से बहाना है हमें। 

मादरे हिंद को सर भेंट चढ़ाना है हमें । "

गाना गाते - गाते वे सभी लॉरी तक पहुंचे। लखनऊ जेल से रिंग थियेटर तक सभी गीत गाते रहे। 

लॉरी से उतरने के बाद उन्होंने फिर गाना शुरू किया -

" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है।

रहबरे राहें मुहबत रह न जाना राह में।

लज्जते ' सहरानेवर्दी दूर - ए - मंजिल में है।

आज मकतब में यह कातिल कह रहा है बार बार क्या तमन्ना - ए - शहादत भी किसी के दिल में है।

अब न अगले बलबले हैं और न अरमानों की भीड़।

सिर्फ मिट जाने की हशरत अब दिले - बिस्मिल में है।

वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां।

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।

ऐ शहीदे - मुल्कों - मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार।

अब तेरी हिम्मत की चर्चा गैर की महफिल में है।"


अंग्रेज जज हैमिल्टन की कार ने रिंग थियेटर में बिस्मिल जी, ठाकुर रोशन सिंह और श्री राजेन्द्र लाहिड़ी को 120 (ख) 121 (क) के अपराध में आजन्म कालापानी और दफा 396 (हत्या सहित डकैती) के अपराध में सजाए मौत सुनायी।




अशफाक उल्ला खान को भी काकोरी काण्ड के लिए ही फांसी की सजा सुनाई गई थी। 

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