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Showing posts from June, 2020

तिब्बत - चीन की संधि कब हुई?

  तिब्बत - चीन संधि सन् 821 से 823 ईसवी तिब्बत के राजा , दैवीय प्रतिनिधि ख्री रालपाचेन  और   चीन के राजा हवांग ते  (जो आपस में चाचा भतीजा भी है।) अपने शासित प्रदेशों के संबंध के बारे में विचार विमर्श कर एक महत्वपूर्ण संधि पर समझौते को पारित करने का निर्णय लेते है। भविष्य में आने वाली पीढ़ियां इस समझौते को सदैव याद रखे और उत्सव की तरह मानते रहे। इसलिए इस समझौते को पत्थरों पर अंकित करवा दिया गया। संधियां - 1) तिब्बती राजा  ख्री रालपाचेन  और चीन के राजा हवांग ते ने तिब्बत और चीन के दोनों राष्ट्र ,एक दूसरे की उन्हीं सीमाओं को मानेंगे जो प्राचीन काल से मान्य है। 2) पूर्व दिशा का सारा क्षेत्र जिधर चीन है चीन का रहेगा और पश्चिम दिशा का सारा क्षेत्र तिब्बत का रहेगा। दोनों राष्ट्रों की सीमाओं पर कभी आक्रमण नहीं होगा। 3) कभी कोई युद्ध नहीं होगा और कोई भी एक दूसरे की भूमि पर कब्जा नहीं करेगा। 4) यदि दोनों के सीमाओं के भीतर किसी संदिग्द्ध व्यक्ति को पाया जाएगा तो उसे तुरंत गिरफ्तार करके पूछताछ की कारवाही की जाएगी। जिसमें दोनों पक्षों के अधिकारी उपस्थित हों...

संसार की सबसे पुरानी रोटी !

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दुनिया में सबसे पहले कहीं भी खेती होने के जो प्रमाण मिले है वो  साढ़े नौ हजार साल  से ज्यादा पुराना नहीं है। इसे   1000 साल  में पहले भी मान ले , तो भी यही कहना होगा कि ये रोटियां खेती शुरू होने से कम से कम 4000 साल  पहले पकी थी। संसार की सबसे पुरानी सभ्यता तुर्की, सीरिया ,जॉर्डन और इजरायल के अर्धचंद्राकार इलाके में दर्ज की गई है जहां सबसे पहले खेती होने के प्रमाण मिलते है। जिन चूल्हों में  साढ़े  चौदह हजार साल  ( इंसानी पीढ़ियों के अनुसार बात करे तो लगभग 7 सौ पीढ़ी )  पुरानी जली हुई रोटियों के  24  अवशेष  के पाए गए है। वह " जॉर्डन " कि   शुबैका - 1 साइट  में स्थित है। यह जमीन में खुदा हुआ,  पाषाणकालीन चूल्हा या तंदूर  है जिसमें रोटियां पकाते हुए लोग किसी इंसानी हमले, प्राकृतिक आपदा या जानवर के डर से इन्हें आधा पका ही छोड़ कर भाग गए होंगे। कार्बन डेटिंग के जरिए इनकी उम्र निकाली गई थी। यह इलाका  नटूफियन सभ्यता  से जोड़कर देखा जाता है जिसका समय  सा...

ब्रह्मास्त्र और बाकी दिव्यास्त्र किन मंत्रो से बुलाएं जाते थे ? भाग -2

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4) श्रीपशुपतास्त्र मंत्र - "ॐ श्लीं पशु हुं फट् ।" 5) श्रीपशुपतास्त्र प्रकट मंत्र - "ॐ नमो पशुपतास्त्र ! स्मरण मात्रेण  प्रकटय - प्रकटय शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, मम सर्व शत्रुंसैन्यं  विध्वंसय - विध्वंसय, मारय - मारय हुं फट् ।" 6) श्रीयमास्त्र प्रकट मंत्र - " ॐ नमो यमदेवताय नमः। स्मरण मात्रेण प्रकटय - प्रकटय । अमुकं शीघ्रं मृत्युं हुं फट् ।" 7) श्रीसुदर्शन चक्र मंत्र - " ॐ नमो भगवते सुदर्शनाय हो हो सुदर्शन दुष्ट दायर - दायर दुरितं  हन - हन  पापं   दह - दह,  रोगं    मर्दय  - मर्दय , आरोग्य  कुरू - कुरू , ॐ ॐ ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रूं ह्रूं फट फट दह - दह   हन - हन भीषय - भीषय स्वाहा " 8) श्रीसुदर्शनचक्रास्त्र प्रकट मंत्र - ॐ नमो सुदर्शनचक्राय , महाचक्राय , शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, प्रकटय - प्रकटय , मम शत्रुं काटय - काटय , मारय - मारय, ज्वालय - ज्वालय , विध्वंसय - विध्वंसय, छेदय - छेदय , मम सर्वत्र  रक्षय - रक्षय हुं फट् ।" 9) श्रीनारायणास्त्र मंत्र  - "हरि:...

ब्रह्मास्त्र और बाकी दिव्यास्त्र किन मंत्रो से बुलाएं जाते थे ? भाग -1

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सतयुग अस्त्रों का युग था। इन्हीं दिव्यास्त्रों के बल पर महायुद्ध का निर्णय होता था। अर्जुन ने श्री  कृष्ण  के मार्गदर्शन से पशुपतास्त्र और स्वर्ग से 15 दिव्यास्त्रों का प्रयोग, उपसंहार, आवृत्ति , प्रायश्चित और प्रतिघात इन पांचों विधियों सहित प्राप्त किया था। जिससे पांडवो को विजयश्री प्राप्त हुई थी।  अर्जुन  के अलावा भीष्म पितामह, अश्वत्थामा, रावण, मेघनाथ , कर्ण, द्रोणाचार्य  आदि कई दिव्यास्त्रों के ज्ञाता माने जाते थे। इन दिव्यास्त्रों का गलत ढंग से या अहंकार से इसका अनुष्ठान किया जाए तो ये फायदे के जगह नुकसान हो सकता है और मृत्यु भी। इन  दिव्यास्त्रों में से कुछ इस प्रकार है - 1) श्रीब्रह्मास्त्र प्रकट मंत्र - " ॐ नमो ब्रह्माय नमः। स्मरण - मात्रेण प्रकटय - प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ, मम सर्व शत्रुं नाशय - नाशय , शत्रु सैन्यं नाशय - नाशय , घातय - घातय , मारय - मारय हुं फट् ।" 2) श्रीआग्नेयास्त्र प्रकट मंत्र - " ॐ नमो अग्निदेवाय नमः । शीघ्रं आगच्छ - आगच्छ मम शत्रुं ज्वालय - ज्वालय , नाशय - नाशय हुं फट् ।" 3) श्रीअघोर...

पांडवों को उनके हत्या के षड्यंत्र की सूचना विदुर ने कैसे दी ?

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जब पांडव अपनी माता कुंती  के साथ सभी बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद लेकर वारणावत  जाने लगे। तब कई भाषाओं के ज्ञाता  विदुर जी  ने सांकेतिक भाषा में  युधिष्ठिर  को  वारणावत  में पांडवों कि हत्या के षड्यंत्र के बारे में बताया था। जो इस प्रकार है - " नितिज्ञ पुरुष को शत्रु का मनोभाव समझकर उससे अपनी रक्षा करनी चाहिए। एक ऐसा अस्त्र है, जो कि लोहे का तो नहीं है , परंतु शरीर को नष्ट कर सकता है। यदि शत्रु के इस दाव को कोई समझ ले तो वह मृत्यु से बच सकता है। आग घास फूस और सारे जंगल को जला डालती है, परंतु बिल में रहने वाले जीव उससे अपनी रक्षा कर लेते है। यही जीवित रहने का उपाय है। अंधे को रास्ता और दिशाओं का ज्ञान नहीं होता। बिना धैर्य के समझदारी नहीं आती। " अर्थ - शत्रुओं ने तुम्हारे लिए एक ऐसा महल तैयार किया है जो आग से जलने वाले पदार्थो से बना है। उससे बचने के लिए तुम एक सुरंग तैयार करा लेना। " शत्रुओं के दिए हुए बिना लोहे के हथियार को जो स्वीकार करता है वह स्याही के बिल में घुस कर आग से बच जाता। घूमने फिरने से रास्ते का ज्ञान हो जाता है। नक्षत्र...

पांडवो की मृत्यु से पहले उनका अंतिम संस्कार क्यों हुआ ?

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दुर्योधन  ने  पुरोचन  से कहा कि तुम  वारणावत ( लाक्षाग्रह )  सन ,सर्जरस (राल) और लकड़ी आदि से भवन बनाओ। उसकी दीवारों पर घी, तेल, चर्बी और लाख मिली हुई मिट्टी का लेप कर देना। जिससे उस भवन में आग आसानी से लग जाए। पांडव अपनी मां कुंती के साथ   वारणावत  चले गए। वहां जाकर सभी 1 साल तक वहां रहे। फिर  विदुर जी  की आज्ञा अनुसार वो सभी आधी रात को उस भवन में आग लगाकर सुरंग के रास्ते वहां से निकलकर वन में चले गए। जब  कुंती पांडवो  के साथ   वारणावत  में थी। तब वहां एक भीलनी अपने पांच पुत्रों के साथ भोजन मांगने आई। वे सभी नशे मी धुत्त थे। जिसके कारण वे भोजन करके भवन में ही सो गए और आग लगने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। इस आग में भवन का निर्माण करवाने वाले  पुरोचन  की भी मृत्यु हो गई। जब यह समाचार  हस्तिनापुर  पहुंचा,तब  धृतराष्ट्र  ने कौरवों को आज्ञा दी कि तुम सब  वारणावत  जाकर पांडव और उनकी मां का अन्तयोष्टि संस्कार विधिपूर्वक करों। भीलनी और उसके पांच पुत्रों को ही कौरवों ने कुंती और य...

भीम को 10,000 हाथियों का बल कैसे मिला ?

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एक बार दुर्योधन  ने  "  प्रणामकोटि "  नाम के स्थान पर, गंगा के किनारे बहुत सारे तम्बू लगवाए और सभी खाने पीने की चीजों की व्यवस्था की। इस जगह का नाम रखा  उदकक्रिडन। वहां पांडव और कौरव खेल खेल रहे थे। यही पर  दुर्योधन  ने धोखे से   भीम  को खाने में जहर मिलाकर खिला दिया और जब भीम बेहोश हो गए। तब दुर्योधन  ने लताओं की रस्सियों से बांध कर गंगा जी में फेक दिया। भीमसेन (भीम )  इसी अवस्था में  नागलोक  पहुंच गए। वहां  भीम  को कई विषैले नागों ने डसा जिससे विष का प्रभाव कम हो गया। जिससे  भीम  होश में आ गए। इन बातों जानकारी जब  वासुकी  नाग तक पहुंची। तब  वासुकी  और  आर्यक  , भीम  के पास आए।  आर्यक  नाग भीम के नाना के नाना थे। आर्यक  के आग्रह पर  वासुकी  नाग  भीमसेन  को एक कुंड  का रस पीने को कहा और बताया कि - " इन कुंडो का रस पीने से उन्हें हजारों हाथियों का बल मिल जायेगा। भीम ऐसे  8 कुंड  का रस पी गए। " ...

बाण लगने के 58 दिनों बाद तक जीवित क्यों रहें, भीष्म पितामह ?

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अर्जुन  के बाण लगने के बाद  भीष्म पितामह  बाणों कि शय्या पर  58 दिन तक रहें। भीष्म पितामह  को जब अर्जुन  ने बाण मारा तब उसके बाद , उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे। क्योंकि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था।   भीष्म पितामह  ने युधिष्ठिर से कहा कि - " इस समय चंद्रमास के अनुसार माघ का महीना है। इसका यह शुक्ल पक्ष चल रहा है। जिसका एक भाग बीत चुका है और तीन भाग बाकी है। " जिस समय उन्हें बाण लगा उस समय  सूर्य दक्षिणायन  था उन्हें पता था कि  सूर्य दक्षिणायन  होने पर यदि प्राण त्यागा जाए,तो सतगती प्राप्त नहीं होती। इसलिए उन्होंने सूर्य के उत्तरायण  होने की प्रतीक्षा की और जब  सूर्य उत्तरायण  हुआ तब ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे।

महाभारत से, भीष्म पितामह की कुछ खास बातें !

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1)  भीष्म (देवव्रत)  को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। वो जब तक मरना ना चाहे ,वो जीवित रह सकते थे। 2) भीष्म  पितामह का जन्म के बाद  नाम देवव्रत रखा गया था। 3)  भीष्म  अपने पूर्व जन्म में  द्यौ  नामक वसु थे। उन्होंने  वशिष्ठ मुनि  की गाय चुराई थी इसी कारण वशिष्ठ मुनि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था। 4)  भीष्म पितामह  की माता का नाम  गंगा  और पिता का नाम  शांतनु  था। 5) भीष्म ने आजीवन विवाह ना करने और ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा ली थी। 6)  भीष्म  ने अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं ही श्री कृष्ण और अर्जुन को बताया था। 7)  भीष्म  युद्ध शुरू होने के नौ दिनों तक लड़ते रहे और दसवें दिन अर्जुन ने  शिखंडी  को आगे करके बाण चलाया। 8)  शिखंडी  पूर्व जन्म में  काशी नरेश  की पुत्री अंबा थी यह बात भीष्म जानते थे इसलिए  शिखंडी  के ऊपर भीष्म ने बाण नहीं चलाया और  अर्जुन  द्वारा उनकी हार हुई। 9)  भीष्म पितामह ...

महाभारत में 18 अंक का रहस्य !

1)  महाभारत  का युद्ध 18 दिनों तक चला था। 2)  श्री कृष्ण  ने अर्जुन को " गीता का उपदेश " दिया था जिसके 18 अध्याय है। 3) कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल  18 अक्षोहिनी सेना  थी, जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी। 4)  महाभारत  के युद्ध के बाद कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों के तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। 5)  महाभारत  पुस्तक को भी 18 पर्वो में बांटा गया है।

श्रीमद्भगवत गीता में कुल कितने अध्याय है ?

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श्रीमद्भगवत गीता में कुल 18 अध्याय है जिनके नाम इस प्रकार है - 1) अर्जुनविषादयोग            (2) सांख्ययोग      (3) कर्मयोग                (4) ज्ञानकर्मसंन्यासयोग  (5) कर्मसंन्यासयोग         (6) आत्मसंयमयोग    (7) ज्ञानविज्ञानयोग                   (8) अक्षरब्रह्मयोग  (9) राजविद्याराजगुह्ययोग        (10) विभूतियोग    (11) विश्वरूपदर्शनयोग             (12) भक्तियोग  (13) क्षेत्र - क्षेत्रज्ञविभागयोग (14) गुणत्रयविभागयोग  (15) पुरुषोत्तमयोग (16) दैवासुरसम्पद्विभागयोग (17) श्रद्धात्रयविभागयोग और (18) मोक्षसंन्यासयोग ।

महाभारत के कितने पर्व है ?

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महाभारत ग्रंथ ‍की रचना के कुल 18 पर्व है। इसकी मानसिक रचना वेदव्यास जी ने की थी और इसे गणेश जी ने लिखा था। 1) आदि पर्व      2) सभा पर्व 3) वन पर्व         4) विराट पर्व 5) उद्योग पर्व     6) भीष्म पर्व 7) द्रोण पर्व     8) अश्वमेधिक पर्व 9) महाप्रस्थानिक पर्व  10) सौप्तिक पर्व 11) स्त्री पर्व     12) शांति पर्व 13) अनुशासन पर्व   14) मौसल पर्व  15) कर्ण पर्व   16) शल्य पर्व 17)  स्वर्गारोहण पर्व तथा 18) आश्रम्वासिक पर्व ।

महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण के कितने नाम है ?

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महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण ने अर्जुन से प्रसन्न होकर उन्हें स्वयं अपने नामो का वर्णन किया था जो इस प्रकार है - 1) नारायण        2) वसुदेव 3) विष्णु          4) दामोदर 5) पृश्रिगर्भ       6) केशव 7) हषी            8) हषीकेश 9) श्याम        10) हरि 11) श्रितधामा   12) गोविन्द 13) शिपिविस्ट    14) अज 15) सत्य          16) सात्त्वत 17) अच्युत      18) अधोक्षज 19) घृतार्चि        20)  त्रिधातु 21) वृषाकपि     22) अनादि 23) अनंत     24) अमध्य 25) शुचिश्रवा      26) एकश्रृंग 27) त्रिककुट्        28) हिरण्यगर्भ 29) विरञ्चि     30) सामदेव 31) धर्मज

धृतराष्ट्र की मां की मृत्यु कैसे हुई ?

महाराज  पाण्डु  की दादी  सत्यवती  पांडु की मृत्यु से बहुत दुःखी थी। तब उनके पुत्र  महर्षि व्यास  ने  सत्यवती  से विनती कि की माता जी सुख के दिन बीत गए है अब बहुत बुरे दिन आ रहे है। धर्म ,कर्म और सदाचार लुप्त हो जाएंगे। कौरवों के अन्याय से बहुत बड़ी बर्बादी होगी। अपने आंखों वंश का नाश होते देखने से अच्छा है कि आप चले जाइए और योगिनी बनकर योग करो। माता सत्यवती  ने उनकी बात मान कर, अंबिका  और  अंबालिका   को इसकी सूचना दी और भीष्म  कि अनुमति लेकर वन में  चली गई। वन में घोर तपस्या करके सत्यवती, अंबिका और अंबालिका ने देह त्याग दिया।   धृतराष्ट्र की मां अंबिका,पांडु की मां अंबालिका और   धृतराष्ट्र और पाण्डु की दादी सत्यवती थी।

महाभारत में, भीष्म ने राजकुमारियों का हरण क्यों किया ?

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काशी नरेश  की तीन कन्याएं थी। उनका नाम  अम्बा, अंबिका  और  अंबालिका था। काशी नरेश  ने अपनी तीनों कन्याओं का स्वयंवर रचाया, परंतु  हस्तिनापुर  आमंत्रण नहीं भिजवाया। इस बात से क्रोधित होकर  भीष्म  माता  सत्यवती  की आज्ञा लेकर काशी के स्वयंवर सभा में गए।  परंतु  भीष्म  को वहां देखकर सभी उनका और उनकी विवाह न करने की प्रतिज्ञा का मजाक बनाने लगे। तब  भीष्म  ने कहा कि -  काशी नरेश  मैं आपकी तीनों कन्याओं को  हस्तिनापुर  के महाराज  विचित्रवीर्य  से विवाह के लिए ले जा रहा हूं। यदि इस सभा में उपस्थित किसी को भी इससे कोई आपत्ती है तो, वो मुझे युद्ध में हराकर राजकुमारियों को ले जाएं। लेकिन भीष्म से कोई भी जीत नहीं पाया और वो  काशी नरेश  की कन्याओं को लेकर  हस्तिनापुर  पहुंचे। तब काशी नरेश  की बड़ी कन्या  अम्बा  ने माता सत्यवती   और  भीष्म  से कहा कि मैं  शल्य नरेश  को अपना पति मान चुकी हूं और स्वयंवर...

महाभारत में,बूढ़े होने का श्राप किसको मिला था ?

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शुक्राचार्य का ययाति को श्राप एक बार  दैत्य गुरु  कि पुत्री   देवयानी  अपनी दासियों और   वृषपर्वा  कि पुत्री   शर्मिष्ठा  (जो कि उसकी दासी थी) के साथ वन में विहार के लिए गई थी। दुर्भाग्यवश  देवयानी  कुएं में गिर गई। तब   राजा ययाति  ने  देवयानी  को कुएं से बाहर निकाला। देवयानी  राजा पर मोहित हो गई और उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा। तब राजा ने कहा कि मै क्षत्रिय हूं। आपके पिता मेरे साथ आपका विवाह करने के लिए राजी नहीं होंगे। तब " देवयानी "  ययाति  को अपने पिता के पास ले गई और पूरी बात बताई। सब कुछ जानकर  देवयानी  के पिता ने कहा कि मैं अपनी कन्या  देवयानी  को उनकी सभी दासियों और शर्मिष्ठा  के साथ तुम्हे सौंपता हूं। लेकिन मेरी चेतावनी है कि तुम (ययाति)  शर्मिष्ठा को कभी मेरी पुत्री का स्थान मत देना। कुछ वर्ष बाद  देवयानी  गर्भवती हुई ,तब राजा ने शर्मिष्ठा के आग्रह पर उनसे भी विवाह कर लिया। राजा से  देवयानी  को दो और  शर्मिष्ठा  को तीन ...

महाभारत में किसको क्या श्राप मिला ? - भाग 2

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3) ऋषि किंदम का पांडु को श्राप एक बार महाराज पांडु  वन में शिकार के लिए गए। वहां एक हिरन और हिरनी मैथुन कर रहे थे। इसी अवस्था में  पांडु  ने उन पर बाण चलाया। घायल अवस्था में हिरन ने कहा - मैं ऋषि किंदम हुं। मुझे ऋषि के रूप संभोग करने में शर्म आ रही थी इसीलिए मैं और मेरी पत्नी इस रूप में है। जिस अवस्था में आप ने हमें बाण मारा है उस तरह तो कोई अपने शत्रु को भी नहीं मारता। मैं किंदम आपको श्राप देता हुं कि - " जब भी आप अपनी पत्नी के साथ सहवास करेगें, तब उसी अवस्था में आपकी मृत्यु हो जाएगी और आपकी वह पत्नी सती हो जाएगी। " 4) महर्षि मैत्रेय जी का दुर्योधन को श्राप एक बार जब  मैत्रेय जी  हस्तिनापुर आये। तब उन्होंने  धृतराष्ट्र  से कहा कि पांडवो के साथ युद्ध का विचार छोड़ दो और सभी मिलकर रहो। जिस समय  मैत्रेय जी  ऐसा कह रहे थे उस समय  दुर्योधन  अपने पैर से ज़मीन कुरेेेदने लगा और अपने हाथ से ,अपनी जांघ पर ताल ठोकने लगा। दुर्योधन  के ऐसे व्यवहार से क्रोधित होकर  मैत्रेय जी  ने उसे श्राप...

महाभारत में किसको क्या श्राप मिला ? - भाग 1

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महाभारत के अनुसार परीक्षित से लेकर श्री कृष्ण तक सभी को मिले श्राप - 1)  श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप  एक बार  राजा परीक्षित  शिकार करने जंगल में गए और एक हिरन का पीछा करते हुए बहुत दूर निकल गए। वे 60 वर्ष के हो चुके थे इसीलिए वह काफी थक गए और उन्हें भूख और प्यास लग गई। वहां उन्होंने   ऋषि शमिक  को देखा। ऋषि शमिक  ने मौन (कुछ न बोलने का व्रत) धारण किया था। राजा ने कई बार उनसे प्रश्न किया परंतु मौन व्रत के कारण उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। तब उन्होंने   एक मरा हुआ सांप  अपने धनुष से उठाकर उनके गले में डाल दिया और वहां से चले गए। जब  ऋषि शमिक  के पुत्र   श्रृंगी  को यह पता चला तो   उन्होंने  राजा परीक्षित  को श्राप दिया कि - " जिसने मेरे निरपराध पिता के कंधे पर मरा हुआ सांप डाल दिया,उस दुष्ट को तक्षक नाग क्रोध करके अपने विष से सात दिन के भीतर ही जला देगा। " 2) गांधारी का श्री कृष्ण को श्राप  युद्ध समाप्त होने के बाद   गांधारी  जब कुरुक्षेत्...

महाभारत में कौन अपने पिता की सन्तान नहीं थे ? भाग - 2

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4) युधिष्ठिर ,भीम और अर्जुन महाराज पाण्डु की पहली पत्नी कुंती थी। जिनके तीन पुत्र युधिष्ठिर ,भीम और अर्जुन थे। कुंती  जब छोटी थी तब उन्होंने   दुर्वासा ऋषि  की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न होकर ऋषि ने  कुंती  को एक मंत्र दिया और कहा कि तुम यह मंत्र बोलकर जिस देवता को बुलाओगी वह आ जाएंगे। कुंती  ने यह बात   पांडु  को बताई और पांडु की आज्ञा से उन्होंने  धर्मराज (यमराज)  को बुलाया। कुंती  और  धर्मराज  के संयोग से   युधिष्ठिर  का जन्म हुआ। इसी प्रकार मंत्र के उपयोग से  वायु देव से भीमसेन  और  इन्द्र देव से  अर्जुन  का जन्म हुआ। 5) नकुल और सहदेव  महाराज पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री थी। जिनके दो पुत्र नकुल और सहदेव थे। महाराज पाण्डु  के कहने पर  कुंती  ने  दुर्वासा ऋषि  द्वारा दिया हुआ मंत्र  माद्री  को बताया।  जिसका प्रयोग करके  माद्री  ने  अश्विनी कुमारों  का आवाह्न...

महाभारत में कौन अपने पिता की सन्तान नहीं थे ? भाग - 1

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1 ) द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पांचाल  नरेश द्रुपद  एक ऐसी सन्तान चाहते थे जो   द्रोणाचार्य  को मार सके। इस इच्छा की पूर्ति कौन कर सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर तलाश  में  द्रुपद  घूमते - घूमते  गंगा तट के   कल्मावी  के नगर पहुंचे। वहां   याज और उपयाज  नाम के दो ब्राह्मण भाई रहते थे। द्रुपद,  उपयाज  के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। फिर "एक वर्ष " तक उनकी सेवा की और उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ की प्रार्थना की। तब  उपयाज  ने उन्हें अपने बड़े भाई  याज  के पास जाने को कहा और  याज  ने यज्ञ किया और उस यज्ञ की अग्नि से -  " पहले धृष्टद्युम्न और फिर कृष्णा ( द्रौपदी ) नाम की कन्या उत्पन्न हुई। " 2) धृतराष्ट्र ,पांडु और विदुर  महाराज शांतनु की पत्नी सत्यवती के दो पुत्र थे।  चित्रांगद और विचित्रवीर्य । विचित्रवीर्य  का विवाह काशी नरेश की कन्याओं  अम्बिका और अंबालिका  से हुआ था। विचित्रवीर्य  क...

महाभारत में,दुर्योधन का जन्म, गर्भ धारण के चार सालों बाद क्यों हुआ ?

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एक बार   महर्षि व्यास , " हस्तिनापुर " में आए।  गांधारी  ने महर्षि व्यास की खूब सेवा की ,तब उन्होंने  गांधारी  से खुश होकर उन्हें वर मांगने को कहा - तब  गांधारी  ने उनसे अपने पति जैसे बलवान 100 पुत्र होने का वर मांगा। उसके बाद जब  गांधारी  गर्भवती हुई तब  2 वर्ष  बाद तक उनका गर्भ उनके पेट में ही रुका रहा। इस बीच में  कुंती  के गर्भ से  युधिष्ठिर  का जन्म हो चुका था। गांधारी  इन सब से घबरा गई और  धृतराष्ट्र  को बिना बताए ही गर्भ को गिरा दिया। गांधारी  के पेट से लोहे के गोले के समान एक मांस पिण्ड निकला। व्यास जी  अपनी योगदृष्टि से यह सब जानकर वहां पहुंच गए और  गांधारी  को ऐसा करने से रोका। फिर उन्होंने  गांधारी  से कहा कि तुम कुण्ड बनवाओं और उन्हें घी से भर दो और सुरक्षित स्थान पर इनको रखने की व्यवस्था भी कर दो। फिर  व्यास जी  ने  गांधारी  को उस पिंड पर ठंडा पानी छिड़कने को कहा। उस पिंड पर जल छिड़कने पर उस...

महाभारत में ,दुर्योधन को त्यागने की सलाह किसने और क्यों दी ?

दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंगने लगा। उसका शब्द सुनकर गधे, गीदड़, गिद्ध और कौवे भी चिल्लाने लगे। आंधी चलने लगी, कई स्थानों पर आग लग गई। इन सभी लक्षणों से डरकर   धृतराष्ट्र  ने ब्राह्मण,भीष्म, विदूर और कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुषों को बुलवाया। उस सभा में  ब्राह्मण और विदूर जी ने  कहा कि - महाराज आपके पुत्र (दुर्योधन) के जन्म से जो अपसगुन हो रहे है। उससे तो मालूम होता है कि आपका यह पुत्र कुलनाशक होगा। इसलिए इसे त्याग देने में ही शान्ति है। यदि आप अपने कुल और सारे जगत का मंगल चाहते है तो आप अपने इस पुत्र को त्याग दीजिए। परंतु धृतराष्ट्र ने ऐसा नहीं किया।

महाभारत के अनुसार, भीष्म का जन्म, किस श्राप के कारण हुआ ?

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वशिष्ठ मुनि का श्राप एक बार  पृथु  आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ वन में आए। एक वसु , पत्नी की दृष्टि ,समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली   नंदिनी गाय  पर पड़ी। उसने उसे अपने  पति   द्यौ  नामक वसु को दिखाया। द्यौ  ने अपनी पत्नी से कहा - यह  नंदिनी  नामक गाय   वशिष्ठ मुनि  की है। यदि कोई मनुष्य इसका दूध पी ले तो वह   10,000 वर्ष  तक जीवित और जवान रहता है। द्यौ  की पत्नी ने कहा - कि मुझे यह गाय अपनी सखी के लिए चाहिए। आप इस गाय का हरण (अपहरण)  कर लीजिए। द्यौ  ने अपने भाइयों के साथ मिलकर,  वशिष्ठ मुनि  के आश्रम में न होने पर,  नंदिनी गाय  का अपहरण कर लिया। जब  वशिष्ठ मुनि  आश्रम में आए तो उन्होंने  नंदिनी  को नहीं पाया। फिर वशिष्ठ मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि वसुओ ने उनकी गाय का हरण किया है। यह जानकर  वशिष्ठ मुनि  ने वसुओ को श्राप दिया कि - " वसुओ ने मेरी गाय हर ली है। इसीलिए मनुष्य योनि म...

गंगा जी ने क्यों मार डाला,अपने सात पुत्रों को ?

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महाराज शांतनु  ने जब  गंगा  को देखा तो उनसे विवाह की इच्छा जताई। "तब गंगा ने कहा कि मैं चाहे जो भी करूं आप मुझे कभी कोई प्रश्न नहीं पूछेंगे ? तभी मैं आपसे विवाह करूंगी।" शांतनु  ने शर्त स्वीकार कर ली और दोनों का विवाह हो गया। जब  गंगा  और  महाराज शांतनु  की पहली संतान हुई तब  गंगा  ने " मैं तेरी प्रसन्नता का कार्य करती हूं " ऐसा कहकर उसे गंगा की धार में डाल दिया। शांतनु  को यह बात बहुत बुरी लगी, पर शर्त की बात सोचकर वह कुछ नहीं बोलते थे। इसी प्रकार उनके सात पुत्र हुए और सातों को इसी तरह  गंगा  ने गंगा की धार में डुबो दिया। जब आठवां पुत्र हुआ तब भी  गंगा जी  उसको लेकर गंगा तट की ओर चली। तभी  शांतनु  ने क्रोध में आकर कहा कि ऐसी कौन सी माता है जो अपने पुत्र की हत्या करती है। क्यों तुम इन बच्चों को मार रही हो ? तब गंगा जी ने कहा - " मेरे ये पुत्र अष्ट वसु है और वशिष्ठ मुनि के श्राप से इन्हे मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ गया। मैंने उन्हें तुरंत...

पुरुवंश का संपूर्ण वर्णन भाग - 3

39 ) परीक्षित -  इनकी पत्नी का नाम  सुयशा  और पुत्र का नाम  भीमसेन था । 40) भीमसेन - इनकी पत्नी का नाम  कुमारी  और उनके पुत्र का नाम  प्रतिश्वा  था। 41) प्रतिश्वा -  प्रतिश्वा के पुत्र का नाम  प्रतीक  था। 42) प्रतीक - इनकी पत्नी का नाम  सुनंदा  जिनसे तीन पुत्र  देवापी ,शांतनु  और  बाह्रीप थे। देवापी बचपन में ही तपस्या करने चले गए, तब शांतनु राजा बने। 43) शांतनु - महाराज  शांतनु  के दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी का नाम  गंगा  और उनके पुत्र का नाम  देवव्रत (भीष्म)  था। दूसरी पत्नी का नाम  सत्यवती  था। उनके दो पुत्र थे।  विचित्र वीर्य  और चित्रांगद । चित्रांगद बचपन में ही एक गंधर्व से युद्ध में मारे गए। 44) विचित्रविर्य - विचित्रविर्य की दो पत्नियां थी  अम्बिका   और  अंबालिका । उनके कोई भी संतान होने से पहले  विचित्रविर्य  की मृत्यु हो गई ,तब  सत्यवती  ने " व्यास जी " का स्मरण किया और उ...

पुरुवंश का संपूर्ण वर्णन भाग - 2

23 ) अहीर - इनकी पत्नी का नाम  सुदेवा  और उनके पुत्र का नाम  ऋक्ष  था। 24) ऋक्ष - इनकी पत्नी का नाम  ज्वाला  और उनके पुत्र का नाम  मतिंनार  था। 25) मतिंनार - इनकी पत्नी का नाम  सरस्वती और  उनके पुत्र का नाम  तंसु  था 26) तंसु - इनकी पत्नी का नाम  कलिंगी  और उनके पुत्र का नाम  ईलिन  था। 27) ईलिन - इनकी पत्नी का नाम  रथंतरी था। जिन से दुष्यंत और  दुष्यंत  के अलावा चार और पुत्र थे। 28) दुष्यंत - इनकी पत्नी का नाम  शकुंतला  और उनके पुत्र का नाम  भरत  था।  29) भरत - इनकी पत्नी का नाम  सुनंदा  और उनके पुत्र का नाम  भूमन्यु  था। 30) भूमन्यु - इनकी पत्नी का नाम  विजया  और उनके पुत्र का नाम  सुहोत्र  था 31) सुहोत्र - इनकी पत्नी का नाम  सुवर्णा और  उनके पुत्र का नाम  हस्ती  था। उन्होंने ही हस्तिनापुर बसाया। 32) हस्ती  - इनकी पत्नी का नाम  यशोधरा  और उनके पुत्र का नाम...

पुरुवंश का संपूर्ण वर्णन भाग - 1

पुरू वंश का वर्णन 1) दक्ष से अदिति   2) अदिति के पुत्र विवश्वान 3) विवश्वान के पुत्र मनु   4) मनु के पुत्र  इला 5) इला के पुत्र  पुरुरवा   6) पुरुरवा के पुत्र आयु 7)आयु के पुत्र नहूष   8) नहूष के पुत्र ययाति 9) ययाति - ययाति की दो पत्नियां थी -  देवयानी  और  शर्मिष्ठा । देवयानी  के दो पुत्र थे - यदु और तुर्वसु। शर्मिष्ठा  के तीन पुत्र थे - द्रुहमृ, अनु और पुरू। 10) पुरू - पुरू की पत्नी का नाम  कौशल्या  और उनके पुत्र का नाम  जनमेजय  था। 11) जनमेजय - जनमेजय की पत्नी का नाम अनंता  और उनके पुत्र का नाम  प्रचिंवान‌्  था। 12 ) प्रचिंवान‌् - प्रचिंवान‌् की पत्नी का नाम  अश्वमकी  और उनके पुत्र का नाम  संयाति  था। 13) संयाति - संयाति की पत्नी का नाम बारांगी  और उनके पुत्र का नाम  अहंयाति  था। 14) अहंयाति - अहंयाति की पत्नी का नाम भानुमती  और उनके पुत्र का नाम  सर्वभौम  था। 15) सर्वभौम -  सर्वभौम...