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Showing posts from 2023

किरणदेवी

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वो रानी जिसने अकबर को घुटनों पर ला दिया रानी किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या थी। उनका विवाह बीकानेर के नरेश के भाई महाराजा पृथ्वीराज से हुआ था। जिनकी कविता ने राजा प्रताप में पुनः राजपुती का जोश ला दिया था और फ़िर उन्होंने किसी हाल में अकबर से संधि की बातचीत नहीं की। जब किरणदेवी और पृथ्वीराज का विवाह हुआ, उसके बाद वे दिल्ली चले गए। दिल्ली में अकबर स्त्रियों को अपनी वासना का शिकार बनाने के लिए ही एक मेले का आयोजन करवाता था। अपनी वासना की तृप्ति के लिए ही अकबर हर साल दिल्ली में नौसेरा का मेला लगवाता था। राजपूतों की और दिल्ली की अन्य स्त्रियां इस मेले में जाया करती थी। पुरुषों का इस मेले में जाना माना था।  अकबर स्त्री भेष में मेले में घुमा करता था और जिस स्त्री पर अकबर मुग्ध हो जाता था उसे अकबर के राजमहल में ले जाया जाता था। अकबर की नज़रे बहुत दिनों से किरणदेवी पर लगी हुई थी। एक दिन किरणदेवी मेले में मिनाबाजार की सजावट देखने के लिए नौसेरा के मेले में गई थी।  उसी समय उन्हें धोखे से जनाने महल में पहुंचा दिया गया। वहां अकबर ने किरणदेवी को घेर लिया और अपनी...

जानवरों से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

* ऊँट के दूध से दही नहीं जमता। * गोल्ड फिश अपनी आँख कभी भी बंद नहीं करती है। * एक झींगे का दिल उसके सिर में होता है  * अगर मकड़ी को जलाया जायेगा तो वह बारूद की तरह फट जायेगी। * एक मुर्गा इंसानों से ज्यादा रंगो का अनुभव कर सकता है। वो ज्यादा रंगो को पहचान सकता है।  * सी लॉयन इंसानों के अलावा दूसरा जीवधारी है, जो मलत्याग की इच्छा को नियंत्रण कर सकता है। * तेंदुआ रात के अंधेरे में भी अच्छी तरह देख सकता है। * एक हिप्पोपोटैमस अपना मुँह 180° तक खोल सकता है। * मकड़ी 17 महीनों तक बिना कुछ खाए पिए रह सकती है। * डॉल्फिन मछली हमेशा अपनी सिर्फ एक आँख ही बंद कर के सोती है।  * ऊँट एक बार में एक बार में 100 लीटर पानी पी सकता है।  * शुतुमुर्ग के अंडे का वजन दो से तीन किलो होता है। * एक बिल्ली के कान में 32 मांसपेशियां होती है। * एक बिल्ली एक दिन में लगभग 18 घंटे सोती है।  * एक मगरमच्छ लगभग 100 सालों से भी ज्यादा समय तक जीवित रह सकता है। * जिराफ की जीभ 21 इंच तक लंबी होती है जिससे वो अपने कान साफ कर सकता है।  * दुनिया में साँप के काटने से ज्यादा मधुमक्खी के काटने से लोग मरत...

अच्छनकुमारी

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  पृथ्वीराज चौहान की वीरांगना पत्नी  अच्छनकुमारी चंद्रावती के राजा जैतसिंह परमार की पुत्री थी। वे पृथ्वीराज चौहान से विवाह करना चाहती थी। अच्छनकुमारी बहुत सुंदर और वीरांगना थी। उनके पिता ने कहा कि यदि पृथ्वीराज चौहान ने विवाह से इंकार कर दिया ,तो मैं (अच्छनकुमारी) कभी विवाह नहीं करूंगी।  गुजरात के राजा भीमदेव बहुत शक्तिशाली था। भीमदेव ने अच्छनकुमारी के साथ विवाह का प्रस्ताव लेकर अपने मंत्री अमरसिंह को चंद्रावती भेजा लेकिन अच्छनकुमारी के पिता ने भीमदेव का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। विवाह प्रस्ताव को इंकार करने से भीमदेव ने क्रोध में चंद्रावती पर आक्रमण कर दिया। चंद्रावती एक छोटी सी रियासत थी,जैतसिंह ने अजमेर के राजा सोमेश्वरदेव चौहान से मदद मांगी।  उसी समय मुहम्मद गोरी ने पांचाल पर आक्रमण किया था। एक ही समय दो तरफ से आक्रमण होने के कारण पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर देव एक बड़ी सेना लेकर जैतसिंह की मदद के लिए गए और प्रधान सेनापति के साथ सेना को गोरी से लड़ने के लिए भेज दिया। अभी सोमेश्वर देव चंद्रावती पहुंचे नहीं थे कि पृथ्वीराज को अच्छनकुमारी का पत्र मिला, जिसमें ...

रानीबाई

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अपने पति की मृत्यु के बाद जौहर करने वाली  महाराजा दाहिर की राजधानी आलोर नगर में थी। उनके पुत्र का नाम जयसिंह था और इन्हीं की पत्नी का नाम रानीबाई था।  सन् 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम ने बगदाद के खलीफा का आदेश पाकर हिन्दुस्तान पर हमला कर  किया। देवल को उजाड़ कर उसने वीरान कर दिया, मंदिरों की पवित्रता नष्ट कर दी। उसके बाद कासिम नैरन पहुंचा और एक बहुत बड़ा बेड़ा तैयार करवा कर, उसने सिंध नदी पार करने की योजना बनायी। राजा दाहिर ने उसका सामना करने के लिए सेना तैयार की। उसकी राजधानी आलोर नगर में थी, लेकिन वह रावार के दुर्ग से हमला करना सही समझते थे। वह अपने पुत्र जयसिंह और उसकी पत्नी रानीबाई को लेकर रावार के किले में चले गये। दाहिर और उसके ठाकुरों ने युद्ध किया। जयसिंह भी हाथी से उतर कर युद्ध करने लगा,  लेकिन शाम होते - होते वह मारा गया। जब रानी को पति की मृत्यु का समाचार मिला, तब 15000 सैनिकों को लेकर रानी ने यवनों पर हमला कर दिया और भयानक युद्ध होने लगा, लेकिन रानी ज्यादा देर तक अरबों के सामने न ठहर सकी। अरबों ने किले पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद रानीबाई ने बाकी महिलाओं क...

ताराबाई

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  जो मेरे राज्य को मुक्त कराएगा मैं उसी से विवाह करूंगी , टोंक एक रियासत थी। पहले वहां राव सुरतान (सुरनाथ) का आधिपत्य था। वे तोड़ातनक (तक्षशिला) राज्य के राजा थे। 16 वीं सदी में यवनों के अत्याचार के कारण उन्हें प्रदेश छोड़ देना पड़ा। लैला नामक एक सरदार ने धोखे से राव सुरतान का राज्य छीन लिया। इसके बाद राव सुरतान मेवाड़ के राजा की शरण में गए।  ये अरावली पर्वत की तलहटी में  बिदनौर नामक  एक छोटा सा प्रदेश बसाकर रहने लगे। राव सुरतान की इकलौती संतान का नाम ताराबाई था।  इनकी मां का देहांत बहुत पहले हो चुका था। ताराबाई ने घुड़सवारी, तलवारबाजी, भाला मारना आदि सिख लिया था।  ताराबाई का विवाह  राव सुरतान ने राजपूतों की बड़ी सेना तैयार की और फ़िर अफगानों से मुठभेड़ हुई। ताराबाई ने बड़ी वीरता से अफगानों का सामना किया। लेकिन अफगानों की जीत हुई।  इस समय चितौड़ के सिंहासन पर राणा रायमल बैठे थे। उनके दो पुत्र थे जयमल और पृथ्वीराज। जयमल ने राव सुरनाथ से कहलवाया कि मैं तारा से विवाह करना चाहता हूं। तारा ने जवाब दिया कि मैं उसी से विवाह करूंगी जो टोंक से अफगानों को न...

वीरमती

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एक ऐसी वीर स्त्री जिसने अपने होने वाले पति को अपने हाथों से मार दिया, क्योंकि उसने मातृभूमि से गद्दारी की थी  देवगिरि के राजा रामदेव थे और इनकी पुत्री का नाम गौरी था। वीरमती के माता पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। जिसके बाद रामदेव ने ही वीरमती का पालन पोषण अपनी सन्तान की तरह किया था। वीरमती और गौरी में आपस में बहुत प्रेम था। रामदेव ने वीरमती की सगाई कृष्णराव से कर दी। अलाउद्दीन ने देवगिरि पर आक्रमण कर दिया ,रामदेव के साथ कृष्णराव भी सेना सहित युद्ध के लिए गए, बहुत भयंकर युद्ध हुआ। अलाउद्दीन अपनी एक चाल के तहद युद्ध क्षेत्र से भाग गया और फ़िर कृष्णराव ने कहा कि अभी जाकर देखता हूं। कृष्णराव धोखेबाज निकला और अलाउद्दीन से जाकर मिल गया। कृष्णराव ने उसे सेना के सभी भेद बता दिये। कृष्णराव की जानकारी के बिना ही वीरमती भी मर्दाने भेष में इस युद्ध में उपस्थित थी। जब कृष्णराव अल्लाउद्दीन के पिछे गया तो वीरमती भी छुपकर उसके पिछे चली गई। जब अलाउद्दीन और कृष्णराव आपस में बातें कर रहे थे ,तब वीरमती ने उनकी सारी बातें सुन ली। कृष्णराव की गद्दारी का पता चलते ही, वीरमती ने कृष्णराव को तलवार भोंक दी...

मयणल्ल देवी

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सातवीं सदी में चालुक्यों की सत्ता सारे दक्षिण भारत पर स्थापित हो गई थी। पुलकेशी द्वितीय और महाराजा हर्षवर्धन में भारत का सम्राट पद पाने की होड़ मची हुई थी। चालुक्य राजा भीम (प्रथम), गुजरात के राजा थे। वह अपनी पत्नी महारानी उदयमती को बहुत प्रेम करते थे। उदयमती और भीम (प्रथम) के पुत्र का नाम कर्ण था। जिसका शासन काल 1065 से 1094 ई. तक था। कर्ण की मातृभक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि लोग महाभारत के कर्ण का स्मरण कर उसे अभिनव कर्ण कहा करते थे।  क र्ण सन् 1065 ई. में गद्दी पर बैठे। मयणल्ल देवी चंद्रपुर के राजा की पुत्री थी। वह चालुक्य नरेश की वीरता पर मुग्ध थी। राजा बहुत सुंदर भी थे। राजकन्या ने प्रतिज्ञा कर ली,कि मैं कर्ण से ही विवाह करूंगी, नहीं तो आजीवन कुंवारी रहूंगी।  मयणल्ल साधारण सी दिखती थी, उनके पिता इनके विवाह के लिए चिंतित रहा करते थे।  एक बार कर्ण की राजसभा में एक चित्रकार ने कदम्बराज जयकेशी की पुत्री का चित्र दिखाया और कहा कि इसका नाम मयणल्ल है। उस चित्रकार ने कहा "यह आप के साथ विवाह करना चाहती है,इन्होंने आपके लिए एक हाथी भेजा है।" राजा मंत्रियों के साथ हाथी देखने के लिए...

भगवती

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औरंगजेब के सूबेदार मिर्जा से अपनी इज्जत बचाने के लिए, प्राण त्यागने वाली भगवती औरंगजेब का शासन काल अपने अत्याचारों के लिए जाना जाता है। बिहार के एक जिले का शासक मिर्जा नाव पर बैठकर गंगा जी में घूम रहा था। उस समय मुस्लिम शासकों के घूमने का मतलब था, प्रजा को लूटना, सुन्दर औरतों का अपहरण करना और धार्मिक स्थानों को नष्ट करना। मिर्जा एक वृद्ध आदमी था, उसकी कई बेगमें थी, वह बहुत कामी था। उस समय गंगा नदी में एक स्त्री स्नान करते देखा। जब मिर्जा के सेवकों ने वहां स्नान करने वालों से पूछकर कि तो पता चला कि "वह गांव के ठाकुर होरिलसिंह की बहन भगवती हैं।" होरिलसिंह को बुलाया गया,मिर्जा ने कहा कि मैं आपको 5000 अशर्फियां दूंगा और आपकी जागीर भी बढ़ा दी जाएगी। इसके बदले आप अपनी बहन का विवाह मुझसे कर दे।  होरिलसिंह ने इस विवाह से साफ इंकार कर दिया, जिसके कारण क्रोध में उसे बंदी बना लिया गया। जब यह समाचार होरिलसिंह के घर पर गया, तब भगवती मिर्जा के पास गई और कहा कि मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूं और उसके भाई को रिहा कर दिया गया। भागवती ने कहा मैं नाव से सफर करने से डरती हूं, आप एक खूबसूरत प...

रानी प्रभावती

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एक ऐसी रानी जिन्होंने एक यवन राजा से युद्ध किया और अपनी सूझ बूझ से उसे मौत के घाट भी उतार दिया सती प्रभावती गुन्नौर के राजा की पत्नी थी। वह बहुत ही सुंदर और गुणवान थी। रानी की सुंदरता के चर्चे सुनकर यवन के राजा ने गुन्नौर पर हमला कर दिया। रानी बड़ी वीरता से लड़ी। बहुत से राजपूत और यवन सैनिक मारे गए। जब थोड़ी सी सेना बच गई, तब रानी गुन्नौर किले से नर्मदा किले में चली गयी। गुन्नौर पर यवनों का आधिपत्य स्थापित हो गया। यवन सेना ने रानी का पीछा किया लेकिन रानी ने फाटक बंद करवा दिया। दरवाजे के बाहर अपने सेना के साथ खड़े यवन राजा ने रानी को पत्र लिखकर उन्हें भिजवाया। उस पत्र में लिखा था ' तुम आत्मसमर्पण कर दो और मुझसे विवाह कर लो। मैं तुम्हारा राज्य लौटा दूंगा और तुम्हारे दास की तरह रहूंगा।' रानी ने कूटनीति की दृष्टि से उस पत्र का उत्तर भेजा, जिसमें लिखा था "मैं विवाह करने के लिए तैयार हूं, लेकिन विवाह में पहनने के लायक पोशाक आपके पास नहीं है, मैं दुल्हे के पहनने के योग्य कपड़े आपको भेजती हूं, आप उसी को पहनकर अन्दर आए।"  यह पत्र पढ़कर यवन राजा बहुत खुश हुआ। दूसरे दिन रानी ने ...

फूलमती (फुलदेवी)

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औरंगजेब के अत्याचार से आतंकित एक आम स्त्री  देवल गाँव में एक विधवा वृद्ध स्त्री की एक मात्र कन्या फूलमती थी। वह पुरन्दर नाम के युवक से प्रेम करती थी। दोनों गाँव की पाठशाला में एक साथ पढ़ते थे। फूलमती की माँ ने पुरन्दर के साथ फूलमती का विवाह पक्का कर दिया।  एक बार औरंगजेब ने फूलमती को देखा और फूलमती पर मोहित हो गया।औरंगजेब ने अपने सैनिकों को गाँव भेजकर,फूलमती का अपहरण करा लिया। औरंगजेब के पास आने के बाद फूलमती का नाम बदलकर फूलजानी बेगम कर दिया और उससे जबरदस्ती विवाह कर लिया। कोई रास्ता न देखकर फूलमती ने पुरन्दर को एक पत्र लिखा और एक विश्वास पात्र दासी के द्वारा उसे पुरन्दर तक पहुंचा दिया। पत्र पढ़कर पुरन्दर फूलमती से मिलने महल में आया।  जब औरंगजेब को पता चला कि पुरन्दर महल में है,तो उसने सैनिकों को उसे बंदी बना कर लाने की आज्ञा दी। पुरन्दर जब औरंगजेब के सामने लाया गया,तब उसका शरीर तीरों से छल्ली था। औरंगजेब ने पुरन्दर से अपने आगे झुकने को कहा, लेकिन पुरन्दर ने इंकार कर दिया। इसके बाद पुरन्दर को औरंगजेब ने मृत्युदंड दे दिया। जब यह ख़बर फूलमती तक पहुंची तब, फूलमती औरंगजेब के...

चारुमति

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औरंजेब की बुरी नजर से बचाने के लिए राजपूत स्त्री का संघर्ष   रुपनगर (वर्तमान में किशनगढ़) के राजा रूपसिंह की एक पुत्री जिसका नाम चारुमति था। वह बहुत सुंदर और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। वह गीता पाठ करती थी और अपने हाथ का बनाया हुआ खाना खाती थी। चारुमति की सुंदरता की ख़बर जब औरंगज़ेब तक पहुंची तो उसके मन में चारुमति से विवाह की इच्छा हुई। औरंगज़ेब ने चारुमति के भाई मानसिंह से कहा कि "मैं तुम्हारी बहन से शादी करना चाहता हूं।"  चारुमति के भाई इस विवाह के लिए सहमत नहीं थे लेकिन औरंगजेब से युद्ध करने की उनकी क्षमता नहीं थी। कोई भी राजा औरंगजेब से युद्ध के लिए सहायता नहीं करेगा, यहीं बात सोचकर मजबूरी में चारुमति के भाई इस विवाह के लिए सहमत हो गए। जब यह ख़बर चारुमति तक पहुंची तब उन्हें इतना सदमा लगा कि वे बेहोश हो गई। जब चारुमति को होश आया तो उन्होंने शादी करने से इन्कार कर दिया। तब उनके चाचा रामसिंह ने सलाह दी, कि तुम महाराणा राजसिंह को एक पत्र लिखो। चारुमति ने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखा और मदद मांगी। चारुमति का पत्र मिलते ही महाराणा राजसिंह ने अपने सेनापति, मंत्री, पत्नी और वृद...

नीर कुमारी

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  विवाह के मंडप से अपने पति को युद्ध भूमि में भेजने वाली वीर स्त्री  मारवाड़ नरेश अजीत सिंह के पौत्र रामसिंह और अजीतसिंह के दूसरे पुत्र भक्तसिंह में राज्य को लेकर बहुत भयानक युद्ध हुआ। रामसिंह उस समय मारवाड़ के शासक थे, इसीलिए भक्तसिंह ने उनके विरुद्ध राजद्रोह कर दिया, ताकि उन्हें हराकर मारवाड़ पर अधिकार कर सके। कुछ सरदार राजा रामसिंह की ओर थे और कुछ सरदारों ने  भक्तसिंह  का साथ दिया। मेहोत्री सरदार राजा के पक्ष में था। मेहोत्री का पुत्र नीर के सरदार की पुत्री नीर कुमारी से विवाह के लिए गया था। जहां विवाह पूर्ण भी नहीं हुआ था कि मंडप में ही आकर राजदूत ने उन्हें युद्ध की जानकारी दी। विवाह की विधियां पुरी करके, नीर कुमारी को मंडप में ही छोड़कर ,विवाह मंडप से  दूल्हे के वेष में ही  युद्ध भूमि पर चलें गए और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गये । नीर कुमारी जब ससुराल आयी। तब उन्हें अपने पति का मृत शरीर सामने मिला। जिसके  साथ नीरकुमारी भी अपने पति की चिता पर बैठकर सती हो गई। 

कूका विद्रोह क्या है ?

फरवरी 1928 में दिल्ली से प्रकाशित ' महारथी ' में कूका विद्रोह के इतिहास की जानकारी देने वाले भगत सिंह का यह लेख बी. एस. सिंधु नाम से छपा था। सिक्खों में एक उपसंप्रदाय है जो " नामधारी " या कूका कहलाता है। इसके संस्थापक श्री गुरू रामसिंह जी थे। अंग्रेज़ों द्वारा गायों की बूचड़खाने में हत्या करने के विरोध में सन् 1871 - 72 में पंजाब में कूका विद्रोह हुआ।  11 जनवरी के एक ‌पत्र में डिप्टी कमिश्नर लुधियाना मिस्टर कॉवन ने  कूका विद्रोह के बाद पटियाला के रूड़ गाँव में पहुंचे और जंगल में छिप गए । कुछ घंटों के बाद शिवपुर के नाजिम ने फिर से धावाबोल दिया, थके होने के कारण कूके ज्यादा देर तक संघर्ष नहीं कर पाए और 68 लोग पकड़ लिए गए। उनमें दो औरतें थी जो पटियाला राज को दे दी गई। इसी बात को विद्रोह कहा गया।  अगले दिन मलेर कोटला में तोप लायी गई और 49 कूका विद्रोहियों को बारी - बारी करके तोप से बांधकर उड़ा दिया गया और पचासवां एक 13 साल का लड़का बिशन सिंह कूका था। डिप्टी कमिश्नर ने उससे कहा की रामसिंह का साथ छोड़ दे , तुझे माफ कर दिया जाएगा , लेकिन बच्चे ने गुस्से में उछलकर उसकी दाढ़ी ...

दक्षिण अफ्रीका 17 वीं सदी की दास व्यापार

डच व्यापारी 17 वीं सदी में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे, जल्द ही दास व्यापार शुरू हो गया। लोगों को बंधक बनाकर जंजीरों से बांधकर दास बाजारों में बेचा जाने लगा।  1834 में दास प्रथा के अंत के समय अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर स्थित केप में निजी स्वामित्व में दासों की संख्या 36,774 से थी।  1824 में " केप " आने वाले एक यात्री ने वहां होने वाली नीलामी का आंखों देखा हाल बताया - " यह मालूम होने पर की पशुओं, कृषि उत्पादों की नीलामी होने वाली है। हमनें अपनी गाड़ी नए बैल खरीदने के लिए रोक ली। नीलामी के माल में एक स्त्री - दास और उसके तीन बच्चे भी थे। किसानों ने पशुओं के समान ही उन्हें परखा और उन्हे अलग - अलग खरीददारों को बेच दिया गया। मां ने चिंता वेदना और आंसू भरी आंखों से बच्चों की तरफ देखा और दुखी बच्चे मां से लिपट गए। लेकिन वहां मौजूद दर्शकों के चेहरे हस्ते हुए और असंवेदनशील थे। " 

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से जुड़ी कुछ बातें !

1) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड 13 अप्रैल, 1919 के दिन हुआ था। इस समय भगत सिंह 11 साल,7 महीने और 16 दिन के थे।  2) पंजाब के गेट्टिसबर्ग के अभिलेख से पता चलता है कि - पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में लगभग दो हजार हिंदू, सिख और मुसलमान मौजूद थे। जनरल डायर के कहने पर इन सभी को गोलियों से भून दिया गया था।  3) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड के समय कुल 1650 गोलियां चलायी गई थी , जिसमें से एक भी गोली खाली नहीं गई। गोलियां लगभग 10 मिनट तक चली। (4) इस हत्याकांड में 10,000 से भी ज्यादा लोगों की हत्या हुयी थी, लेकिन अंग्रेजों ने केवल 1650 गोलियां चलाने की बात मानी थी।

प्लासी का युद्ध

(१) सिराजुदौला ने भी बंगाल के पिछले नवाबों की तरह ही अपनी शर्ते कंपनी के लिए कायम रखी। लेकिन कंपनी भी अपनी बात पर अड़ी रही। तब सिराजुदौला ने अपने 30,000 हजार सैनिकों के साथ कासिम बाजार में स्थित अंग्रेजों की फैक्ट्री पर हमला कर दिया। (२) नवाब की फौज ने कंपनी के अफसरों को गिरफ्तार कर लिया और गोदाम पर ताला डाल दिया। अंग्रेजों के हथियार छीन लिए और उनके जहाजों को कब्जे में ले लिया। (३) इसके बाद नवाब ने अंग्रेजों के कलकत्ता स्थित किले पर कब्जा कर लिया। 1757 में  रॉबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला के बीच प्लासी का युद्ध हुआ।  (४) सिराजुदौला के सेनापति मीर जाफर ने नवाब की गद्दी के लालच में गद्दारी की, जिसकी वजह से ये युद्ध अंग्रेजों ने जीत लिया।  आगे चलकर मीर जाफर ने कम्पनी का विरोध किया ,तब मीर काशिम को नवाब बना दिया।

काला पानी की सजा किस किस को मिली ? ✔️

सबसे पहले जो राजनैतिक कैदी 1909 में भारत से अंडमान जेल गए थे - (1) श्री हेमंत दास  (जीवन पर्यन्त) (2) श्री वीरेन्द्र घोष  (फांसी का दण्ड माफ करके जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (3) श्री उल्लासकर दत्त  (फांसी का दण्ड माफ करके जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (4) श्री हृषीकेश कांजीलाल  (10 वर्ष द्वीपांतरण) (5) श्री इंद्रभूषण राय (10 वर्ष द्वीपांतरण) (6) श्री विभूतिभूषण सरकार  (10 वर्ष द्वीपांतरण) (7) श्री अविनाश चंद्र भट्टाचार्य (7 वर्ष द्वीपांतरण) 6 सप्ताह बाद दुसरा दल जो की बीमार था भेजा गया , उसमें - (1) श्री उपेंद्र नाथ बैनर्जी  (जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (2) श्री सुधीर कुमार सरकार   (7 वर्ष द्वीपांतरण) अपील करने के कारण अभियुक्तों का पुनर्विचार हुआ और वीरेंद्रचंद्र सेन को 7 वर्ष द्वीपांतरण हुआ और वे अकेले जेल गए थे। (1) श्री गणेश दामोदर सावरकर भी (जीवन पर्यन्त द्वीपांतरण) (2) श्री अश्विनी कुमार बोस (7 वर्ष द्वीपांतरण) (3) श्री ब्रिजेश कुमार दत्त   (3 वर्ष द्वीपांतरण) (4) श्री सतीश चन्द्र चटर्जी (3 वर्ष द्वीपांतरण) (5) श्री नंदगोपाल...

प्लासी का नाम प्लासी कैसे पड़ा ?

प्लासी का असली नाम " पलाशी" था जिसे अंग्रेजों ने बिगाड़ कर प्लासी कर दिया। इस जगह को पलाशी यहां पाए जाने वाले पलाश के फूलों के कारण कहा जाता था।  पलाश के लाल फूलों से गुलाल बनाया जाता है जिसका इस्तेमाल होली में किया जाता है। प्लासी का युद्ध अंग्रजों की पहली बड़ी जीत थी। इसके बाद सिराजुदौला की हत्या कर दी गई और मीर जाफर को नवाब बना दिया गया।

रामायण काल का आग्नेयास्त्र !

 आग्नेयास्त्र - रामायणकालीन परिभाषा तोपों को "शतघ्नी " यानी सैकड़ों व्यक्तियों का नाश करने वाली कहते थे, इसका उल्लेख अनेक श्लोकों में आया था। " शतघ्नी "  लोहे की होती थी। सुन्दरकाण्ड में "शतघ्नी " का आकार वृक्ष के तने जैसा बताया गया है। 

काला पानी जेल कैसी थी ?

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ब्लॉक नंबर      प्र. ल. को.की.सं.            कुल जोड़ ------------------------------------------------------------- 1                             35                      105 2                             35                      105 3                             52                      156 4      ...

नालन्दा से जुड़ी कुछ बातें !

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1) चीनी यात्री ,जो काफी लंबे समय तक भारत में रहा था। उसके लेखों से पता चलता है कि जिसके अनुसार नालंदा में 8 बड़े - बड़े शालागृह (halls) थे। वहां 3000 से भी अधिक लोग रहते थे।    1) नालंदा लगभग ढाई हजार साल से भी पहले का माना जाता है। जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के समय में यह नाम काफी प्रचलित था। 2) संस्कृत में नाल भिस अर्थात कमल की जड़ को कहते है। 3) एक चीनी हुअन तंग ने न + अखं + द (= लगातार दान) की उत्पत्ति दी है। 4) एक चीनी यात्री ने लिखा था कि इस स्थान को 500 सौदागरों ने दशकोटी सुवर्ण मुद्रा से मोल लेकर भगवान बुद्ध को भेंट कर दिया था। 5) यहां के राजा ने नालंदा को 100 गांव दिये थे। 6) यहां के 200 निवासी ,विद्यार्थियों के लिए प्रतिदिन नियम से चावल, दूध और माखन लाया करते थे।

डचों का भारत में आगमन

(१) 17 वीं शताब्दी के शूरुआत तक डच भी भारत में व्यापार के उद्देश्य से आए। कुछ ही समय बाद फ्रांसिसी व्यापारी भी भारत आए। सभी कंपनियां एक जैसी चीजें ही खरीदना चाहती थी।  (२) यूरोप के बाजारों में भारत के बने बारीक सूती वस्त्र, रेशम ,कालीमिर्च, दालचीनी, लौंग और इलायची की बहुत मांग थी। यूरोपियन कंपनियों के बीच इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भारतीय बाजार में इनकी कीमतें बढ़ने लगी और इससे मिलने वाला मुनाफा घटने लगा।  (३) अब इन व्यापारिक कंपनियों को अपना मुनाफा बनाए रखने के लिए,17 वीं और 18 वीं सदी में जब भी मौका मिलता कोई भी कंपनी किसी दूसरे के जहाजों को डूबा देते थे या रूकावटे डाल देते थे।  (४) 18 वीं सदी के उत्तरार्ध तक अंग्रेज राजनैतिक ताकत के रूप में उभरने लगे।  (५) अंग्रेज पहले छोटी सी व्यापारिक कंपनी के रूप में भारत आए । (६) औरंगजेब के बाद कोई भी मुगल शासक इतना ताकतवर तो नहीं था, लेकिन एक प्रतिक के रूप में मुगल बादशाहों का महत्व बना हुआ था। (७) 1857 में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरु हो गया तो विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फ़र को ही अपना नेता मान लिया।  (८) जब विद्...

बक्सर का युद्ध किसके बीच हुआ

 1764 में बक्सर का युद्ध मीर काशिम और अंग्रेजों के बीच हुआ, जो अंग्रेजों ने जीता।  इसके बाद मीर काशिम को हटाकर मीर जाफर (मृत्यु 1765) को नवाब बना दिया। लेकिन अब नवाब को 5 लाख रुपए कम्पनी को देने होते थे।

बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी

(१) पहली इंग्लिश फैक्ट्री 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कम्पनी के व्यापारी यही से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस जमाने में "फैक्टर" कहा जाता था। (२) इस फैक्ट्री में वेयरहाउस था जहां निर्यात होने वाली चीजें को जमा किया जाता था। यहीं पर उनके दफ्तर थे। जिनमें कम्पनी के अफसर बैठते थे।  (३) जैसे - जैसे व्यापार फैला कम्पनी ने सौदागरों और व्यापारियों को फैक्ट्री के आस पास आकर बसने के लिए प्रेरित किया।  (४) 1696 तक कम्पनी ने इस आबादी के चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया था। दो साल बाद उसने मुगल अफसरों को रिश्वत देकर तीन गांवों की जमींदारी भी खरीद ली। इनमें से एक गांव कालिकाता था जो बाद में कलकत्ता बना।  (५) कम्पनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि वह कम्पनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने का फरमान जारी कर दे। (६) कम्पनी ज्यादा से ज्यादा रियायतें हासिल करने और पहले से मौजूद अधिकारों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने में लगी हुई थी। (७) उदाहरण के तौर पर औरंगजेब के फरमान से केवल कम्पनी को ही शुल्क मुक्त व्यापार का अधिकार मिला था। कम्पनी ...

फ्रांसीसियों का भारत में आगमन

1667 में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित करने के लिए 2 वर्ष के अंदर ही फ्रांसीसियों ने " मसुलीपट्टनम " में भी फैक्ट्री स्थापित की। 1674 में फ्रांसीसी " मार्टिन " ने बीजापुर के सुल्तान से पांडिचेरी प्राप्त किया जो आगे चलकर भारत में उनकी राजधानी बनी।   डूप्ले   के फ्रांसीसी गवर्नर बनने से पहले फ्रांसीसी कंपनी ने माहे , कारिकल, कसीमबाजार और बालासोर  में अपनी फैक्ट्री स्थापित कर ली थी। 

कूका विद्रोह किस लिए हुआ ?

अंग्रेज़ों द्वारा गायों की बूचड़खाने में हत्या करने के विरोध में सन् 1871 - 72 में पंजाब में कूका विद्रोह हुआ था।

रामायण से जुड़े कुछ स्थान !

(1) लखनऊ   लखनऊ लक्ष्मनवती या लक्ष्मणपुर का अपभ्रंश है और इसके बारे में प्रसिद्ध है कि इसे लक्ष्मण जी ने बसाया था। 2) सुल्तानपुर इस प्राचीन नगर को राम जी के पुत्र कुश ने बसाया था। उसे कुसपुर या कुशभवन भी कहते थे। 3) नंदीग्राम जहां भरत जी 14 वर्ष तक तापस वेष में रहे थे। 4) सीतापुर   इसी स्थान पर रामचंद्र जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था। उनके पुत्र लव और कुश ने यही पर महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण की कथा सुनाई थी। यहां से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है जहां सीता जी पृथ्वी में प्रवेश कर गई थी।

ताजमहल से जुड़े कुछ सत्य तथ्य

1) पुरुषोत्तम नागेश ओक के अनुसार ताजमहल के नाम का उल्लेख औरंगजेब के किसी भी दस्तावेज या दरबारी दस्तावेजों में कहीं भी नहीं मिलता है। 2) ताजमहल में महल इस्लामी शब्द नहीं है क्योंकि अफगानिस्तान से लेकर अलजीरिया तक फैले विस्तृत इस्लामी प्रदेशों में महल नाम की एक भी इमारत नहीं है। 3) शाहजहां का दरबारी वृत्त शाहजहांनामा के खंड 1 के पेज 403 पर लिखा है कि अतुलनीय वैभवशाली गुंबदयुक्त एक  प्रासाद की इमारत - ए - आलीशान था। गुंबजे मुमताज को दफनाने के लिए जयपुर के महाराजा मानसिंह से लिया गया (राजा मानसिंह को प्रासाद के नाम से जाना जाता था।)। 4) अपने पिता शाहजहां को लिखा औरंगजेब का एक पत्र आदाबे आलमगीरी, यादगारनामा और मुरक्का - ई अकबराबादी (सईद अहमद आगरा संपादित, सन् 1931, पृष्ठ 43, फुटनोट 2) में है। (5) सन् 1652 के उस पत्र में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज की कब्र परिसर की इमारतें सात मंजिलों वाली थी और वे इतनी पुरानी हो गई थी कि उनमें से पानी टपकता था और गुंबद के दरार पड़ी थी।  (6) औरंगजेब ने खुद अपने खर्चे से उन भवनों को तत्काल मरम्मत करने की आज्ञा देकर शाहजहां को सूचित किया कि इन ...

घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कुछ खास बातें !

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1) शिव पुराण कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग शिवालय नामक स्थान पर होनी चाहिए। प्राचीनकाल में इस जगह का नाम शिवालय था जो अपभ्रंश होता हुआ, शिवाल फिर शिवाड़ हो गया। 2) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरि पर्वत है। शिवालय (शिवाड़) स्थित ज्योर्तिलिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषणों का प्राचीन पर्वत है जिसे देवगिरि नाम से जाना जाता हैं।  यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिए सुवर्णमय हो जाता हैं , जिसकी पुष्टि बणजारे की कथा में होती है।  जिसने देवगिरि से मिले स्वर्ण प्रसाद से ज्योर्तिलिंग की प्राचिरें और ऋणमुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में करवाया। 3) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के अनुसार सन् 1837 ई. (वि . स. 1895) में ग्राम शिवाड़ स्थित सरोवर की खुदाई करवाने पर 2000 शिवलिंग मिले जो इसके शिवलिंगों का आलय होने की पुष्टि करते हैं। मंदिर के परंपरागत पाराशर ब्राह्मण पुजारियों का गोत्र शिवाड़ियां है। 4) प...

इतिहास के कुछ गलत बदलाव

रघुनंदन प्रसाद शर्मा की पुस्तक " भारतीय इतिहास की विकृतियां " में दिए कुछ तथ्यों के अनुसार -  अक्षर परिवर्तन  ❇️विष्णु पुराण में मौर्य वंश का कार्यकाल 337 वर्ष दिया गया था। किंतु सबंधित श्लोक "त्र्यब्दशतंसप्तत्रिंशदुत्तरम् " में " त्र्य " को बदल कर "अ " अक्षर करके " त्र्यब्द" को "अब्द " बनाकर 300 के जगह 100 करके वह काल 137 वर्ष का करवा दिया गया। (पं. कोटावेंकटचलम , दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी, पृष्ठ 76)। ❇️अभी भी अधिकतर विद्वान 137 वर्ष को ही सही मानते है लेकिन कलिंग नरेश खरबेल के "हाथी गुफा" अभिलेख में मौर्य वंश के संदर्भ में " 165 वें वर्ष " का स्पष्ट उल्लेख होने से मौर्य वंश के राज्यकाल 137 वर्षों में समेटा नहीं जा सकता है।  विशेषकर उस स्थिति में जबकि "हाथी गुफा"अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित माना जा चुका है। ❇️मत्स्य पुराण , एइहोल अभिलेख आदि में भी ऐसा ही किया गया है।  2) शब्द परिवर्तन पंचसिद्धातिका - प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह मिहिर की पुस्तक में एक पद - सप्ताश्विवेद संख्यं शककालमपास्य...

घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कहानी क्या है ?

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दक्षिण दिशा में श्वेत धवल पाषाण का देवगिरि पर्वत है उसके पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्वाज गौत्रीय ब्राह्मण रहते थे उनके सुदेहा नामक पत्नी थी।  जिनकी कोई सन्तान नहीं थी ,लोगो के ताने से परेशान होकर सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति के साथ करा दिया। घुश्मा , भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। वह हर दिन 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा किया करती और फिर उनका विसर्जन पास के ही नदी में कर देती थी। विवाह के बाद घुश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया और युवा होने पर उसका विवाह भी हो गया। धीरे - धीरे घुश्मा की बड़ी बहन के अंदर ईर्ष्या की भावना आ गई और उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या करके , उसके शरीर को नदी में फेंक दिया। अगले दिन सुबह जब घुश्मा की बहु ने अपने पति को मृत पाया और रोने लगी , फिर अपनी दोनों सासों को यह सूचना दी। सुदेहा यह सुनकर ज़ोर - ज़ोर से रोने लगी जबकी , घुश्मा प्रतिदिन की तरह शिव जी की पूजा लीन थी और पूरे मन से आराधना कर रही थी।  जैसे ही घुश्मा ने पार्थिव शिवलिंग को नदी में विसर्जित किया , उसे पीछे से माँ की आवाज़ आई ,और शिव जी की कृपा से उनका पुत्र जीवित हो गया था। ...

भारत की आबादी 1947 में कितनी थी ?

 भारत की आबादी 1947 में लगभग 34.5 करोड़ थी।

समोसा एक विदेशी व्यंजन है भारतीय नहीं !

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 समोसा भारत में एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यंजन है पर भारतीय नहीं है ! (1) ईरानी इतिहासकार अबुल फजल बेहागी ने अपनी पुस्तक तारीक - ए - बेहागी में समोसे का जिक्र किया है। (2) उन्होंने गजनवी साम्राज्य में शाही दरबार में पेश की जाने वाली नमकीन चीज़ों का जिक्र किया है जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे। इसे तब तक पकाया जाता था , जब तक ये खस्ता ना हो जाए। (3) समोसा मध्य पूर्वी एशिया में पैदा हुआ था जहां इसका नाम संबोसा था। (4) 10 वीं सदी से 13 वीं सदी की अरबी पाक शास्त्र की किताबों में इसे संबोसक का नाम दिया गया है। जो की फारसी शब्द समोसा से काफ़ी मिलता - जुलता है। (5) 14 वीं सदी में कुछ व्यापारी दक्षिण एशिया आए थे और उन्हीं के साथ समोसा भी भारत आया। (6) ईरान से समोसा अफगानिस्तान , कजाकिस्तान और उसबेकिस्तान भी पहुंचा। (7) समोसे के कई नाम प्रचलित हैं - नेपाल में सिंघोड़ा , म्यांमार में समूसा , अरब में सम सास , पुर्तगाल में चमुकस ,  अफ्रीका में संबुसा , इजराइल में संबुसक कहा जाता है।

पहला भारत रत्न किसे और कब दिया गया ?

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1. भारत रत्न देने की शुरुआत 2 जनवरी,1954 को, उस समय के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी। 2. 1954 में भारत रत्न सी. राजगोपालाचारी ,सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सी. वी . रमन को दिया गया था। 3) 1955 में मरणोपरांत भी सम्मान देने का प्रावधान इसमें जोड़ दिया गया। 4.  सचिन तेंदुलकर पहले खिलाड़ी और सबसे कम उम्र के भारत रत्न विजेता थे। 2013 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 5. 2013 में ही सचिन तेंदुलकर के साथ वैज्ञानिक सी. एन.आर .राव को भी भारत रत्न दिया गया। 6. प्रधानमंत्री द्वारा भारत रत्न दिए जाने की सिफारिश राष्ट्रपति से की जाती है इसके लिए कोई औपचारिक सिफारिश आवश्यक नहीं। 7. भारत रत्न पाने वालों को महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता हैं। सरकार वॉरंट ऑफ प्रेसिडेंट में उन्हें जगह देती है। वॉरंट ऑफ प्रेसिडेंट का इस्तेमाल सरकारी कार्यक्रमों में वरीयता देने के लिए होता है।  8. भारत रत्न विजेताओं को प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति , प्रधानमंत्री ,उपप्रधानमंत्री , राज्यपाल , पूर्व राष्ट्रपति , पुर्व प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश , लोकसभा अध्य...

भारत में दूसरा परमाणु परीक्षण कब हुआ ?

11 व 13 मई 1998 को पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए थे।  11 मई को किए परमाणु परीक्षण के कारण ही इस दिन आधिकारिक तौर पर भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में घोषित किया गया।  इजराइल ही एक ऐसा देश था ,जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया था।

सुइयों का निर्माण पहली बार एक भारतीय ने किया !

 ब्रिटिश ज्ञान (incyclopaedia britannica) खंड 14 (पांचवा संस्करण ,सन् 1915) में लिखा है कि सन् 1545 में सुइयों का निर्माण पहली बार इंग्लैंड में एक भारतीय ने किया था। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद यह कला लुप्त हो गई। सन् 1560 बकिंग हैमशायर निवासी क्रिस्टोफर ग्रीनिग ने फिर सुइयों का निर्माण शुरू किया।

भारत में पहला परमाणु परीक्षण कब हुआ ?

18 मई ,1974 को सुबह 8.05 बजे पोखरण में पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था। जिसका कोडनेम "स्माइलिंग बुद्धा " था क्योंकि उस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी।