मयणल्ल देवी

सातवीं सदी में चालुक्यों की सत्ता सारे दक्षिण भारत पर स्थापित हो गई थी। पुलकेशी द्वितीय और महाराजा हर्षवर्धन में भारत का सम्राट पद पाने की होड़ मची हुई थी।

चालुक्य राजा भीम (प्रथम), गुजरात के राजा थे। वह अपनी पत्नी महारानी उदयमती को बहुत प्रेम करते थे। उदयमती और भीम (प्रथम) के पुत्र का नाम कर्ण था।

जिसका शासन काल 1065 से 1094 ई. तक था। कर्ण की मातृभक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि लोग महाभारत के कर्ण का स्मरण कर उसे अभिनव कर्ण कहा करते थे। र्ण सन् 1065 ई. में गद्दी पर बैठे।

मयणल्ल देवी चंद्रपुर के राजा की पुत्री थी। वह चालुक्य नरेश की वीरता पर मुग्ध थी। राजा बहुत सुंदर भी थे। राजकन्या ने प्रतिज्ञा कर ली,कि मैं कर्ण से ही विवाह करूंगी, नहीं तो आजीवन कुंवारी रहूंगी। 

मयणल्ल साधारण सी दिखती थी, उनके पिता इनके विवाह के लिए चिंतित रहा करते थे। 

एक बार कर्ण की राजसभा में एक चित्रकार ने कदम्बराज जयकेशी की पुत्री का चित्र दिखाया और कहा कि इसका नाम मयणल्ल है। उस चित्रकार ने कहा "यह आप के साथ विवाह करना चाहती है,इन्होंने आपके लिए एक हाथी भेजा है।"


राजा मंत्रियों के साथ हाथी देखने के लिए बाहर आया, लेकिन राजा ने देखा की मयणल्ल हाथी पर खुद बैठी हुई थी। राजा ने मयणल्ल से विवाह करने से इंकार कर दिया।

राजकुमारी ने कहा कि आर्यकन्या जिसे एक बार अपना पति चुन लेती है,वही उसके जीवन का सहारा हो जाता है। यौवन,सौंदर्य आदि तो संसार की मानी हुई वस्तुएं हैं। जब मानव सन्यास पथ पर यात्रा करता है तो वह सुंदर से सुंदर स्त्री को अपनी माता समान समझता है। अगर आप विवाह न करेंगे तो मैं जीवित नहीं रह सकूंगी।

मयणल्ल की बातें सुनकर राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तब अंत में हार मानकर अपनी आठ सहेलियों के साथ वह चिता में जलकर सती होने जा रही थी।

लेकिन राजा कर्ण की मां ने उन्हें समझाया और उनकी बात मानकर कर्ण ने, मयणल्ल से शादी करना स्वीकार कर लिया और दोनों का विवाह हो गया। 

मुञ्जल की सहायता से उसने राज्यप्रबंध में भी काफ़ी योगदान दिया।

कर्ण और मयणल्ल का एक पुत्र हुआ जिसका नाम जयसिंह सिद्धराज था।  

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