घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कुछ खास बातें !


1) शिव पुराण कोटि रुद्र संहिता के अध्याय 32 से 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग शिवालय नामक स्थान पर होनी चाहिए।

प्राचीनकाल में इस जगह का नाम शिवालय था जो अपभ्रंश होता हुआ, शिवाल फिर शिवाड़ हो गया।


2) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के दक्षिण में देवत्व गुणों वाला देवगिरि पर्वत है। शिवालय (शिवाड़) स्थित ज्योर्तिलिंग मंदिर के दक्षिण में भी तीन श्रृंगों वाला धवल पाषणों का प्राचीन पर्वत है जिसे देवगिरि नाम से जाना जाता हैं। 

यह महाशिवरात्रि पर एक पल के लिए सुवर्णमय हो जाता हैं , जिसकी पुष्टि बणजारे की कथा में होती है।

 जिसने देवगिरि से मिले स्वर्ण प्रसाद से ज्योर्तिलिंग की प्राचिरें और ऋणमुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में करवाया।


3) शिवपुराण कोटि रुद्र संहिता अध्याय 33 के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के अनुसार

सन् 1837 ई. (वि . स. 1895) में ग्राम शिवाड़ स्थित सरोवर की खुदाई करवाने पर 2000 शिवलिंग मिले जो इसके शिवलिंगों का आलय होने की पुष्टि करते हैं। मंदिर के परंपरागत पाराशर ब्राह्मण पुजारियों का गोत्र शिवाड़ियां है।


4) प्राचीन ग्रन्थ श्री घुश्मेश्वर महात्म के अनुसार प्राचीन काल में ज्योर्तिलिंग क्षेत्र में शिवालय में एक योजन विस्तार में चारों दिशाओं में चार द्वार थे जिनका नाम पूर्व में सर्वसर्प द्वार ,पश्चिम में नाट्यशाला द्वार ,उत्तर में वृषभ द्वार और दक्षिण में ईश्वर द्वार तथा पश्चिमोत्तर में सुरसर सरोवर था।


वर्तमान में ग्राम शिवाड़ में स्थित ज्योर्तिलिंग क्षेत्र में चारों द्वारों के प्रतीक चार गाँव हैं। जो सारसोप (सर्प द्वार ), नटवाड़ा (नाट्यशाला द्वार) , बहड़ (वृषभ / बैल द्वार) , ईसरदा (ईश्वर द्वार) और पश्चिमोत्तर में सिरस गांव सुरसर सरोवर के स्थान पर बसा हुआ है।


5) घुश्मेश्वर महात्म ग्रन्थ के अनुसार ज्योर्तिलिंग के शिवालय क्षेत्र के पास वाशिष्ठि नदी बहती थी। जिसके किनारे मंदार वन (आंकड़ों का वन) और बिल्व पत्रों के वन थे जिसने घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की रोज़ पूजा की जाती थीं।

शिवाड़ गाँव में स्थित ज्योर्तिलिंग क्षेत्र के पास बनास नदी बहती है जो पूर्वकाल की वाशिष्ठि नदी ही है और इसके किनारे बिल्व पत्रों के वन आज भी स्थित है। मंदार वन की जगह पर मंडावर गाँव हैं। जहां आंकड़े (मंदार) काफ़ी मात्रा में उगते हैं।

6) घुश्मेश्वर महात्म ग्रन्थ के अनुसार ज्योर्तिलिंग का शिवलिंग अदृश्य रहता है।

शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग अधिकतर पानी में डूबा रहने के कारण अदृश्य ही रहता हैं।


7) 1023 ई. ( विक्रम संवत् 1081 ) में महमूद गजनवी के सिपहसालार " मसूद " ने इस स्थान को तोड़ दिया। फिर 6 वीं शताब्दी के आस पास निर्मित मंदिरों की शैली के है।


8) पाणिनी के अष्टांगिक योग पर आधारित शिल्पकला का प्रयोग किया जाता था।

9) सन् 1121 (विक्रम संवत् 1179) में मंडावर के राजा शिववीर चौहान ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

सन् 1301 में रणथंभौर (विक्रम संवत् 1358) के युद्ध के पहले मंदिर का शिखर अलाउद्दीन खिलजी द्वारा तुड़वाया गया।

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