घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की कहानी क्या है ?



दक्षिण दिशा में श्वेत धवल पाषाण का देवगिरि पर्वत है उसके पास सुधर्मा नामक धर्मपरायण भारद्वाज गौत्रीय ब्राह्मण रहते थे उनके सुदेहा नामक पत्नी थी।  जिनकी कोई सन्तान नहीं थी ,लोगो के ताने से परेशान होकर सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति के साथ करा दिया।

घुश्मा , भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। वह हर दिन 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा किया करती और फिर उनका विसर्जन पास के ही नदी में कर देती थी।

विवाह के बाद घुश्मा ने एक पुत्र को जन्म दिया और युवा होने पर उसका विवाह भी हो गया। धीरे - धीरे घुश्मा की बड़ी बहन के अंदर ईर्ष्या की भावना आ गई और उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या करके , उसके शरीर को नदी में फेंक दिया।

अगले दिन सुबह जब घुश्मा की बहु ने अपने पति को मृत पाया और रोने लगी , फिर अपनी दोनों सासों को यह सूचना दी। सुदेहा यह सुनकर ज़ोर - ज़ोर से रोने लगी जबकी , घुश्मा प्रतिदिन की तरह शिव जी की पूजा लीन थी और पूरे मन से आराधना कर रही थी। 

जैसे ही घुश्मा ने पार्थिव शिवलिंग को नदी में विसर्जित किया , उसे पीछे से माँ की आवाज़ आई ,और शिव जी की कृपा से उनका पुत्र जीवित हो गया था।

इसके बाद एक आकाशवाणी हुई की , तुम्हारी बहन ने तुम्हारे पूत्र की हत्या की थी। अब उसे इसका दण्ड उसे मिलेगा। तब घुश्मा ने महादेव से कहा कि मेरी बहन की बुद्धि निर्मल कर दे। 

आपके दर्शन मात्र से सबका मन पवित्र हो जाता है। फिर शिव जी वहां प्रकट हुए और घुश्मा को आशीर्वाद दिया कि आज से मैं यहां तुम्हारे नाम से घुश्मेश्वर के रूप में इस जगह पर वास करूंगा और यह सरोवर शिवलिंगों का आलय हो जाए।


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