भगवती

औरंगजेब के सूबेदार मिर्जा से अपनी इज्जत बचाने के लिए, प्राण त्यागने वाली भगवती

औरंगजेब का शासन काल अपने अत्याचारों के लिए जाना जाता है। बिहार के एक जिले का शासक मिर्जा नाव पर बैठकर गंगा जी में घूम रहा था। उस समय मुस्लिम शासकों के घूमने का मतलब था, प्रजा को लूटना, सुन्दर औरतों का अपहरण करना और धार्मिक स्थानों को नष्ट करना।

मिर्जा एक वृद्ध आदमी था, उसकी कई बेगमें थी, वह बहुत कामी था। उस समय गंगा नदी में एक स्त्री स्नान करते देखा। जब मिर्जा के सेवकों ने वहां स्नान करने वालों से पूछकर कि तो पता चला कि "वह गांव के ठाकुर होरिलसिंह की बहन भगवती हैं।"

होरिलसिंह को बुलाया गया,मिर्जा ने कहा कि मैं आपको 5000 अशर्फियां दूंगा और आपकी जागीर भी बढ़ा दी जाएगी। इसके बदले आप अपनी बहन का विवाह मुझसे कर दे। 

होरिलसिंह ने इस विवाह से साफ इंकार कर दिया, जिसके कारण क्रोध में उसे बंदी बना लिया गया। जब यह समाचार होरिलसिंह के घर पर गया, तब भगवती मिर्जा के पास गई और कहा कि मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूं और उसके भाई को रिहा कर दिया गया।

भागवती ने कहा मैं नाव से सफर करने से डरती हूं, आप एक खूबसूरत पालकी, हीरे, जवाहरात और साड़ियां मंगवाये।आभूषण और कपड़े आ गए। मन मारकर भगवती ने सब को पहना लिया और पालकी में बैठ गई।

कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में बड़ा सुन्दर सरोवर पड़ता था, वहां पहुंचकर भगवती ने कहा कि मुझे प्यास लगी है।' पालकी रुकी और भगवती उसमें से उतर गई। जब तक कोई समझ पाता,वे ऊंचे घाट पर से पानी में कूद गई और अपनी जान दे दी।

मिर्जा ने नदी में जाल डलवाया लेकिन भगवती का कुछ नहीं मिला, पर जब उनके भाई ने जाल डलवाया तब भगवती का शव मिला। भगवती के भाई ने कहा कि तूने मेरे तीन पीढ़ियों कि लाज बचा ली।

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