अच्छनकुमारी
पृथ्वीराज चौहान की वीरांगना पत्नी
अच्छनकुमारी चंद्रावती के राजा जैतसिंह परमार की पुत्री थी। वे पृथ्वीराज चौहान से विवाह करना चाहती थी। अच्छनकुमारी बहुत सुंदर और वीरांगना थी। उनके पिता ने कहा कि यदि पृथ्वीराज चौहान ने विवाह से इंकार कर दिया ,तो मैं (अच्छनकुमारी) कभी विवाह नहीं करूंगी।
गुजरात के राजा भीमदेव बहुत शक्तिशाली था। भीमदेव ने अच्छनकुमारी के साथ विवाह का प्रस्ताव लेकर अपने मंत्री अमरसिंह को चंद्रावती भेजा लेकिन अच्छनकुमारी के पिता ने भीमदेव का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
विवाह प्रस्ताव को इंकार करने से भीमदेव ने क्रोध में चंद्रावती पर आक्रमण कर दिया। चंद्रावती एक छोटी सी रियासत थी,जैतसिंह ने अजमेर के राजा सोमेश्वरदेव चौहान से मदद मांगी।
उसी समय मुहम्मद गोरी ने पांचाल पर आक्रमण किया था। एक ही समय दो तरफ से आक्रमण होने के कारण पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर देव एक बड़ी सेना लेकर जैतसिंह की मदद के लिए गए और प्रधान सेनापति के साथ सेना को गोरी से लड़ने के लिए भेज दिया।
अभी सोमेश्वर देव चंद्रावती पहुंचे नहीं थे कि पृथ्वीराज को अच्छनकुमारी का पत्र मिला, जिसमें लिखा था की भीमदेव ने सारे देश को उजाड़ दिया है, अजमेर से भी अभी तक सहायता नहीं पहुंची। यदि आप शीघ्र न आयेंगे तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी। मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप मान की रक्षा के योग्य है। "
पृथ्वीराज सहायता के लिए अचलगढ़ किले की ओर चल पड़े। पांचाल देश में भी गोरी की सेना का सामना करने के लिए सेना भेज दी थी।
इस युद्ध में भीमदेव के हाथों सोमेश्वर देव की मृत्यु हो गई। अच्छन के साथ पृथ्वीराज का विवाह हो गया और वे अजमेर चली आयी।
सन् 1193 में गोरी ने फिर भारतवर्ष पर आक्रमण किया। तलवड़ी या तिरौरी नामक स्थान पर घोर युद्ध हुआ, तुर्को के पैर उखड़ गए।
बाद में कन्नौज के राजा जयचंद्र और पृथ्वीराज का एक विजयसिंह नाम का सरदार गोरी से मिल गये। इस विजयसिंह नामक विश्वासघाती सरदार की चालों के कारण ये युद्ध हार गये और पृथ्वीराज पकड़ कर बंदीगृह में डाल दिये गये।
जब उनके प्रधान सेनापति ने अच्छन कुमारी से महाराज की कैद होने की बात कही तो वह आपे से बाहर हो गयी। उन्होंने सेनापति को फटकारा और कहा कि "रण में राजपूत कभी हारकर वापस नहीं आते। तुमने क्षतृत्व की अवमानना की है।"
इतना कहकर अच्छन घोड़े पर चढ़कर राजा को छुड़ाने के लिए चल पड़ी। राजपूत सैनिक हजारों की संख्या में उनके पीछे चल दिये और यवनों से भयंकर युद्ध हुआ।
रानी अच्छन बहुत वीरता से लड़ी, लेकिन उन्हें वीरगति की प्राप्ति हुई। दुश्मनों ने रानी का शव हासिल करने की बहुत कोशिश की। लेकिन राजपूत सैनिकों ने रानी को चीता के हवाले कर दिया।

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