इतिहास के कुछ गलत बदलाव

रघुनंदन प्रसाद शर्मा की पुस्तक " भारतीय इतिहास की विकृतियां " में दिए कुछ तथ्यों के अनुसार - 


अक्षर परिवर्तन 

❇️विष्णु पुराण में मौर्य वंश का कार्यकाल 337 वर्ष दिया गया था। किंतु सबंधित श्लोक "त्र्यब्दशतंसप्तत्रिंशदुत्तरम् " में " त्र्य " को बदल कर "अ " अक्षर करके " त्र्यब्द" को "अब्द " बनाकर 300 के जगह 100 करके वह काल 137 वर्ष का करवा दिया गया।

(पं. कोटावेंकटचलम , दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी, पृष्ठ 76)।


❇️अभी भी अधिकतर विद्वान 137 वर्ष को ही सही मानते है लेकिन कलिंग नरेश खरबेल के "हाथी गुफा" अभिलेख में मौर्य वंश के संदर्भ में " 165 वें वर्ष " का स्पष्ट उल्लेख होने से मौर्य वंश के राज्यकाल 137 वर्षों में समेटा नहीं जा सकता है।

 विशेषकर उस स्थिति में जबकि "हाथी गुफा"अभिलेख ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमाणित माना जा चुका है।

❇️मत्स्य पुराण , एइहोल अभिलेख आदि में भी ऐसा ही किया गया है। 


2) शब्द परिवर्तन

पंचसिद्धातिका - प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह मिहिर की पुस्तक में एक पद -

सप्ताश्विवेद संख्यं शककालमपास्य चैत्रशुक्ललादौ ।

अर्धास्तमिते भानौ यवनपुरे सौम्यदिवसाद्य ।।


❇️इसका अर्थ यह है कि 427 शक काल के चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को सौम्य दिवस अर्थात सोम का पुत्र बुध - बुधवार जबकि यवनपुर में अर्ध सूर्यास्त हो रहा था।

❇️उक्त पद में साफ तौर पर सोम का पुत्र बुध है लेकिन जब गढ़ना करने पर यह पता चला कि इस दिन बुध नहीं मंगल था तो विद्वानों ने " सौम्य " को "भौम " बना कर काम चला लिया। भौम का अर्थ भूमि का पुत्र मंगल होता है।


❇️लेकिन ऐसा करने से शक काल वर्तमान में प्रचलित शालीवाहन शक का वाचन नहीं है परंतु विक्रम पूर्व आरंभ हुए शक संवत (शकनृपति काल) का वाचक है। इन दो शककालों में सही अन्तर न करने से बहुत सी घटनाओं में 500 साल अधिक वर्ष पिछे हो जाने का काल गढ़ना में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है।


❇️ऐसा ही परिवर्तन चान्द्र व्याकरण खरबेल के "हाथी गुफा" अभिलेख आदि में भी किए गए हैं।

3) अर्थ परिवर्तन

अलबेरूनी की भारत यात्रा 

अलबेरूनी की भारत यात्रा अपने यात्रा वृत्तांत में गुप्त सम्वत के शुरुआत होने के काल का उल्लेख करते हुए लिखा कि गुप्त शासकों के समाप्त हो जाने पर 241 शक में उनकी स्मृति में गुप्त सम्वत प्रचलित हुआ था। इसका अंग्रेजी अनुवाद ठीक यही अनुवाद प्रकट करता है लेकिन


4) पंडित कोटावेंकटचलम के अनुसार सुधाकर द्विवेदी आर्यभट्ट के ग्रन्थ " आर्यभट्टम " के पद में छापते समय टी. एस. नारायण स्वामी के मना करने के बाद भी पाठ में परिवर्तन कर दिया जिसकी कोई जरूरत नहीं थी (भारतीय इतिहास पर दासता कि कलिमा , पृष्ठ 38 ) 


 5) पोर्जिटर तो पुराणों में अपना लिखा हुआ पद रखना चाहते थे (दि प्लाट इन इंडियन क्रोनोलॉजी, पृष्ठ ,89 )।


6) वेबर ने 1885 में " शतपथ ब्राह्मण " का भाष्य , जिसके साथ हरिस्वामी का भाष्य , द्विवेदी का गंगा भाष्य भी था , बर्लिन से प्रकाशित कराया था। लेकिन उसमें वो श्लोक विलुप्त था जिसमें विक्रमादित्य की प्रशंसा की गई है, जबकि वेंकटेश्वर प्रेस बंबई, द्वारा 1940 में प्रकाशित इसी भाष्य में वे श्लोक है जिसमें विक्रमादित्य के बारे में बताया गया है। 


(पंडित कोटावेंकटचलम के क्रोनोलॉजीऑफ काश्मीर हिस्ट्री रिकंस्ट्रक्टेड , पृष्ठ 203 - 208 )


7) प्राचीन राजाओं और राजवंशों की संख्या और राज्यकाल 

भारत की प्राचीनता को कम करके आंकने की दृष्टि से पाश्चात्य इतिहासकारो ने भारतीय राजाओं की आयु , राज्यकाल और उनके राजाओं की संख्या और राज्यकालों की संख्याओं को बिना किसी ठोस सबूत के पिछे कर दिया गया। 


मगध राज्यवंशावाली 

मगध साम्राज्य के राज्यवंशों और राजाओं की संख्या और राज्यकालों के लिए विलियम जोन्स ने अलग अलग आधारों पर कुछ सूचियां तैयार की जिसमें पहली सूची में जोन्स द्वारा निर्धारित और भारतीय पुराणों के विभिन्न राजाओं की तुलनात्मक स्थिति - 


राजवंश राजाओं की संख्या   

  जोन्स के अनुसार   पुराण ग्रन्थ के अनुसार

बार्हद्रथ          20                          22

प्रद्योत             5                           5

शिशुनाग         10                        10  

नंद                 1                          9

मौर्य                10                        12

शुंग                 10                        10

कण्व               4                            4

आंध्र              30                          32


राज्यकाल 

जोन्स के अनुसार       पुराण ग्रन्थ के अनुसार

  1000                                  1006

  138                                      138

   360                                     360

  100                                       100

   137                                        316

   112                                       300

   345                                         85

   456                                        506


स्मिथ ने विभिन्न राजवंशों का राज्यकाल 

नंद                                     45(100)   

मौर्य                                   137 (316 )

शुंग                                    112 (300)

कण्व                                 45 (85)

आंध्र                                  289 (506)

गुप्त                                  149 (245)


राम साठे कृत " डेट्स ऑफ बुद्धा" के आधार पर। कोष्ठ में दी गई संख्याएं पुराणों के आधार पर है।

इन्होंने कश्मीर और नेपाल की राज्यवंशावली में भी उलट फेर किया है जिससे उसकी प्राचीनता सिद्ध न की जा सके।

१) प्राचीन सम्वतों में से युधिष्ठिर , कलि , सप्तर्षि और शुद्रक सम्वतों को अप्रमाणित बताया गया और इसका कही भी इस्तेमाल नहीं किया। 


(२) प्राचीन सम्वतों में मालवगण , शकनृपतिकाल , और श्रीहर्ष सम्वतों का भी वर्णन अपने ही तरीके से तोड़ मरोड़ कर पेश किया।


(३) गुप्त - वल्लभी तथा गुप्त , विक्रमी तथा मालवगण और शालीवाहन तथा शक संवत 

का नाम बदलकर एक को दूसरे संवतों में मिलाकर नई विकृतियां प्रदान की।


(४) इन संवतों के अलावा भी भारत में पारद संवत् , कल्चुरी संवत् , भोज संवत् , गांगेय संवत् आदि अनेक छोटे - छोटे संवत् रहे है।


(५) आचार्य रामदेव ने ऐसे कुल 43 संवतों की जनकारी दी है जिनका उपयोग क्षेत्रीयस्तरों पर किया जाता था। " भारत वर्ष का इतिहास " के तीसरे खण्ड के प्रथम भाग में मिलते है। 


भारत के संदर्भ में मिले प्राचीन अभिलेखों पर पुरातात्विक विद्वानों द्वारा निकाले गए कुछ निष्कर्ष 

❇️कई प्रमाणित अभिलेखों को तीन तरीकों से गलत साबित करने का प्रयास किया गया। 


❇️विदेशियों के हिसाब से न होने वाले अभिलेखों , सिक्कों आदि को सीधे तौर पर गलत बताया और महाराजा जनमेजय और राजा शतधन्वा के ताम्रपत्र।


❇️इन्होंने अभिलेखों की मन मुताबिक व्याख्याएं की है या करवायीं है , जैसे खारवेल की हाथी गुफा अभिलेख , तोरमाण और सिकंदर - पुरु के युद्ध से संबंधित सिक्के।


❇️अलबेरूनी के गुप्त संवत् संबंधी अंश के फ्लीट द्वारा कराए गए कई अनुवाद विदेशियों ने अपने हिसाब से कराया।

 

❇️कई अप्रमाणित अभिलेखों को सही सिद्ध करने की गई, जैसे मन्दसौर अभिलेख स. 164 और 165 जो यशोधर्मन नाम से संबंधित बताए गए है। 

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