चारुमति

औरंजेब की बुरी नजर से बचाने के लिए राजपूत स्त्री का संघर्ष 

रुपनगर (वर्तमान में किशनगढ़) के राजा रूपसिंह की एक पुत्री जिसका नाम चारुमति था। वह बहुत सुंदर और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। वह गीता पाठ करती थी और अपने हाथ का बनाया हुआ खाना खाती थी।

चारुमति की सुंदरता की ख़बर जब औरंगज़ेब तक पहुंची तो उसके मन में चारुमति से विवाह की इच्छा हुई। औरंगज़ेब ने चारुमति के भाई मानसिंह से कहा कि "मैं तुम्हारी बहन से शादी करना चाहता हूं।" 

चारुमति के भाई इस विवाह के लिए सहमत नहीं थे लेकिन औरंगजेब से युद्ध करने की उनकी क्षमता नहीं थी। कोई भी राजा औरंगजेब से युद्ध के लिए सहायता नहीं करेगा, यहीं बात सोचकर मजबूरी में चारुमति के भाई इस विवाह के लिए सहमत हो गए।

जब यह ख़बर चारुमति तक पहुंची तब उन्हें इतना सदमा लगा कि वे बेहोश हो गई। जब चारुमति को होश आया तो उन्होंने शादी करने से इन्कार कर दिया। तब उनके चाचा रामसिंह ने सलाह दी, कि तुम महाराणा राजसिंह को एक पत्र लिखो।

चारुमति ने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखा और मदद मांगी। चारुमति का पत्र मिलते ही महाराणा राजसिंह ने अपने सेनापति, मंत्री, पत्नी और वृद्ध राजकवि की सभा बुलायी और सभी की सहमती से चारुमति के साथ विवाह करने को तैयार हो गए।

सलूंबर के रावत रत्नसिंह ने औरंगज़ेब को रास्ते में तब तक रोकने की जिम्मेदारी ली,जब तक महाराणा राजसिंह,चारुमति से शादी करके उदयपुर लौट नहीं आते। 

रत्नसिंह ने ऐसा ही किया,राजसिंह ने चारुमति से विवाह कर लिया और उन्हें सुरक्षित उदयपुर ले आये। 

किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमति का महाराणा राजसिंह से विवाह 1660 ई. में हुआ था।

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