किरणदेवी
रानी किरणदेवी मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या थी। उनका विवाह बीकानेर के नरेश के भाई महाराजा पृथ्वीराज से हुआ था। जिनकी कविता ने राजा प्रताप में पुनः राजपुती का जोश ला दिया था और फ़िर उन्होंने किसी हाल में अकबर से संधि की बातचीत नहीं की।
जब किरणदेवी और पृथ्वीराज का विवाह हुआ, उसके बाद वे दिल्ली चले गए। दिल्ली में अकबर स्त्रियों को अपनी वासना का शिकार बनाने के लिए ही एक मेले का आयोजन करवाता था।
अपनी वासना की तृप्ति के लिए ही अकबर हर साल दिल्ली में नौसेरा का मेला लगवाता था। राजपूतों की और दिल्ली की अन्य स्त्रियां इस मेले में जाया करती थी। पुरुषों का इस मेले में जाना माना था।
अकबर स्त्री भेष में मेले में घुमा करता था और जिस स्त्री पर अकबर मुग्ध हो जाता था उसे अकबर के राजमहल में ले जाया जाता था।
अकबर की नज़रे बहुत दिनों से किरणदेवी पर लगी हुई थी। एक दिन किरणदेवी मेले में मिनाबाजार की सजावट देखने के लिए नौसेरा के मेले में गई थी।
उसी समय उन्हें धोखे से जनाने महल में पहुंचा दिया गया। वहां अकबर ने किरणदेवी को घेर लिया और अपनी वासना का शिकार बनाने की कोशिश की।
किरणदेवी ने अकबर को सामने देखकर अपनी कमर से कटार निकली और अकबर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। जमीन पर गिरे हुए अकबर की छाती पर किरण देवी बैठ गई।
अपनी मौत को सामने देखकर अकबर गिड़गिड़ाने लगा और क्षमा मांगने लगा। जिसके बाद किरणदेवी ने अकबर को छोड़ दिया और वहां से वापस चली आयी।
किरणदेवी को कहीं - कहीं जयावती या जोशीबाई के नाम से भी जाना जाता है।

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