ताराबाई

 जो मेरे राज्य को मुक्त कराएगा मैं उसी से विवाह करूंगी ,


टोंक एक रियासत थी। पहले वहां राव सुरतान (सुरनाथ) का आधिपत्य था। वे तोड़ातनक (तक्षशिला) राज्य के राजा थे। 16 वीं सदी में यवनों के अत्याचार के कारण उन्हें प्रदेश छोड़ देना पड़ा। लैला नामक एक सरदार ने धोखे से राव सुरतान का राज्य छीन लिया। इसके बाद राव सुरतान मेवाड़ के राजा की शरण में गए। 


ये अरावली पर्वत की तलहटी में बिदनौर नामक एक छोटा सा प्रदेश बसाकर रहने लगे। राव सुरतान की इकलौती संतान का नाम ताराबाई था।  इनकी मां का देहांत बहुत पहले हो चुका था। ताराबाई ने घुड़सवारी, तलवारबाजी, भाला मारना आदि सिख लिया था। 

ताराबाई का विवाह 

राव सुरतान ने राजपूतों की बड़ी सेना तैयार की और फ़िर अफगानों से मुठभेड़ हुई। ताराबाई ने बड़ी वीरता से अफगानों का सामना किया। लेकिन अफगानों की जीत हुई। 

इस समय चितौड़ के सिंहासन पर राणा रायमल बैठे थे। उनके दो पुत्र थे जयमल और पृथ्वीराज। जयमल ने राव सुरनाथ से कहलवाया कि मैं तारा से विवाह करना चाहता हूं। तारा ने जवाब दिया कि मैं उसी से विवाह करूंगी जो टोंक से अफगानों को निकालेगा।

जयमल ने सेना लेकर विदूर में दिखावे के लिए पड़ाव डाल दिया और महीनों वहीं पड़ा रहा। जयमल ,ताराबाई को धोखा देकर उससे शादी करना चाहता था। इस धोखे से गुस्सा होकर जयमल को राव सुरतान ने मरवा दिया। 


जयमल के भाई पृथ्वीराज ने राव सुरतान के प्रति पूरी सहानुभूति दिखायी, उन्होंने प्रतिज्ञा कि,की मैं टोंक से अफगानों को बाहर निकलूंगा। तारबाई और पृथ्वीराज ने युद्ध लड़ा और अफगानों की हार हुई। फिर तारबाई का विवाह पृथ्वीराज से हो गया। 

सूरजमल, पृथ्वीराज के चाचा थे। युद्ध जीतकर जब पृथ्वीराज चितौड़ वापस आये तो कुछ समय बाद सूरजमल ने यवनों, एक अन्य सरदार सारंगदेव और सुल्तान मुज्जफर से मिलकर मेवाड़ पर हमला कर दिया। तब पृथ्वीराज और ताराबाई एक बड़ी सेना लेकर मेवाड़ पहुंचे और सूरजमल को हरा दिया। 


पृथ्वीराज की मृत्यु 

फिर पृथ्वीराज और ताराबाई कुछ दिन चितौड़ में कमलपुर दुर्ग में रहने चलें गये। 

कुछ समय वहां रहने के बाद एक दिन, पृथ्वीराज को सिरोही से उनकी बहन ने पत्र लिखा और अपने पति के कुकर्मों के बारे में बताया। पत्र पढ़कर पृथ्वीराज सिरोही अपनी बहन के पास पहुंचे और उनके पति को दंड देना चाहा, लेकिन वह पृथ्वीराज के सामने गिड़गिड़ाने लगा। पृथ्वीराज ने उसे माफ कर दिया और 5 दिन वहाँ रहकर छठवें दिन वापस चलें आये।

पृथ्वीराज के बहन के पति ने रास्ते में खाने के लिए पृथ्वीराज को मिठाई दी ,जिसे पृथ्वीराज ने खा लिया। इस मिठाई में जहर मिला था। रास्ते में ही पृथ्वीराज की मृत्यु हो गई और ताराबाई अपने पति के शव के साथ सती हो गई।

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