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Showing posts from April, 2021

गेंदालाल दिक्षित भाग - 2

  गेंदालाल जी की गिरफ़्तारी दलपत रॉय नामक एक साथी की गद्दारी की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद गेंदालाल जी को कैद करके ग्वालियर किले में, फिर आगरा के किले में सैनिक निगरानी में रखा गया। यहां गेंदालाल जी को बहुत यातनाएं दी गई। आगरा किले में ही इनकी भेंट राम प्रसाद बिस्मिल से हुई। इन दोनों ने मिलकर गेंदालाल जी की जेल से फरार होने की योजना बनायी। दोनों आपस में संस्कृत में बात करते थे ताकि अंग्रेज सिपाही उनकी बात को समझ ना सके। भागने की योजना गेंदालाल जी अंग्रेजों से कहते है कि वे क्रांतिकारियों के बारे में कुछ गुप्त बात जानते है और अंग्रेज सरकार को बताना चाहते है। बंगाल तथा बंम्बई के विद्रोहियों में से बहुतों को वे जानते हैं, पुलिस वालों को उन पर निश्चय हो गया था कि किले के कष्टों के कारण यह सारा हाल खोल देगा।  इसके बाद अंग्रेज इन्हें मैनपुरी ले आए और इनके गुप्त जानकारियां लेने के लालच में इन्हें सरकारी गवाह के साथ जेल में रखा गया। सिपाही ने गेंदालाल का एक हाथ और सरकारी गवाह का एक हाथ आपस में एक ही हथकड़ी में बांध दिया। ताकि वो भाग न सके। आधी रात को जब पहरा बदला गय...

गेंदालाल दीक्षित भाग - 1

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 पंडित गेंदालाल दिक्षित का जन्म 30 नवंबर ,1888 में बटेश्वर के निकट " मई " गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम पं॰ भोलानाथ दीक्षित था। 3 वर्ष आयु में ही इनकी माता का निधन हो गया था।  इन्होंने 10 वीं कक्षा की पढ़ाई अंग्रेज़ी में ,आगरा से पूरी की।   गेंदालाल जी औरैया जिला ,  इटावा में डी. ए. वी. स्कूल के अध्यापक थे।  मातृवेदी संस्था  पण्डित गेंदालाल दीक्षित ने मातृवेदी संस्था की स्थापना की। जब इस संस्था में पंचम सिंह शामिल हुए, उनके पास 500 सहस्त्र घुड़सवार , 200 सैनिक और लाखों रूपए मातृवेदी की संस्था को मिले।  शिवाजी समिति उन्होंने शिवाजी समिति की स्थापना की। इस संगठन में उन्होंने डाकुओं को संगठित किया। शिवाजी के छापा मार युद्ध नीति के माध्यम से हमला करते थे और धन एकत्र करके , उससे हथियार खरीदना , दल में बांटना यही इस संगठन का काम था। 

सुखदेव भाग - 12

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सुखदेव से जुड़ी कुछ बातें  1) सुखदेव की रुचि पढ़ने लिखने में थी और उनकी माता उन्हें देश प्रेम की कहानियां सुनाया करती थी। जिससे उन्हें देश भक्ति की प्रेरणा मिलती थी। 2) सुखदेव बेहद सुलझे हुए और बेझिझक अपनी बात कहने वालों में से थे। 3) सुखदेव रानी लक्ष्मीबाई से बहुत प्रभावित थे।  4) सुखदेव क्रांतिकारी पार्टी की पंजाब शाखा के प्रमुख थे।  5) 15 अप्रैल 1919 को पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया और स्कूलों में अंग्रेज़ी अफसर तैनात कर दिए गये और सलामी का हुक्म हुआ। सुखदेव ने अफसर को सलामी नहीं दी और जब तक ये कानून रहा सुखदेव स्कूल भी नहीं गये। 6) सुखदेव के भाई मथुरादास ने 1980 में " अमर शहीद सुखदेव " नामक एक किताब लिखी थी।

सुखदेव भाग - 11

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  गांधी जी का जवाब गांधी जी का पत्र ,सुखदेव के नाम - 

सुखदेव भाग - 10

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गांधी जी के नाम सुखदेव की " एक खुली चिट्ठी " और  उसके उत्तर में गांधी जी का पत्र जो कि "हिन्दी नवजीवन" में 30 अप्रैल , 1931 के अंक में पृष्ठ 109 से 112 पर प्रकाशित हुए थे -

सुखदेव भाग - 9

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फांसी 7 अक्टूबर, 1930 को सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को फांसी की सजा का फैसला सुनाया और 23 मार्च 1931 को तीनों को फांसी पर लटका दिया गया।  फांसी पर लटकने से पहले सुखदेव के आखिरी शब्द थे -  दिल से निकलेगी न मर के  भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू - ए - वतन आयेगी।

सुखदेव भाग - 8

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सुखदेव और किशोरी लाल के अतिरिक्त एक और व्यक्ति था जो जानता था कि गुलाम रसूल की दुकान पर बमों से संबंधित कुछ पुर्जे बनाएं जाते है।                    किशोरी लाल हेड कांस्टेबल नूर शाह ने अपने दोस्त जलालुद्दीन की सहायता से बम फैक्ट्री का पता लगा लिया और काश्मीर बिल्डिंग की बम फैक्ट्री से सुखदेव, जयगोपाल और किशोरी लाल को गिरफ्तार कर लिया। बाकी लोगों को 15 अप्रैल ,1929 को सुबह अंधेरे में ही गिरफ्तार कर लिया। सुखदेव की गिरफ़्तारी के समय उन्होंने कोई कागज मुंह में डालकर निगल लिया था। जिसमें पार्टी के कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां थी। इसके बावजूद भी बम फैक्ट्री से पुलिस को बहुत कुछ हाथ लगा। महारनपुर बम फैक्ट्री 13 मई, 1929 को पकड़ी गई और शिव वर्मा, गया प्रसाद निगम , जयदेव कपूर गिरफ्तार कर लिए गए।  भूख हड़ताल 9 फरवरी 1930 को सुखदेव ने भारतीय जेलों के सुधार के लिए जेल में दूसरी भूख हड़ताल की जिसके फलस्वरूप सरकार को जेल के सुधार के लिए कदम उठाने पड़े। 

सुखदेव भाग - 6

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स्कॉट का वध लाहौर में साइमन कमीशन के विद्रोह में प्रदर्शन हुआ। जिसमें लाला लाजपतराय राय लाठियों के शिकार हुए और 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।  लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए एक योजना बनायी गई। जिसके सूत्रधार थे सुखदेव। सुखदेव ने भगत सिंह और राजगुरु के साथ मिलकर सुप्रीटेंडेंट स्कॉट के वध की योजना बनायी। क्योंकि जो दिन निश्चित किया गया था, उस दिन "स्कॉट" की जगह "जे. पी. सांडर्स " पुलिस पार्टी का नेतृत्व कर रहा था। इसी कारण उसका वध हो गया।                  James Powers Saunders  

सुखदेव भाग - 7

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असेंबली में बम फेंकना  दल के केंद्रीय समिति में निश्चय किया गया कि दिल्ली असेंबली में बम फेंका जाय। यह बैठक 1929 के मार्च महिने में हुई।  दिल्ली की असेंबली में सरकार दो कानून पास करवाना चाह रही थी। ये कानून थे - ट्रेड डिस्पुट एक्ट (औद्योगिक विवाद कानून) और पब्लिक सेफ्टी बिल (सार्वजनिक सुरक्षा कानून) । वास्तव में इन कानूनों को बनाने का उद्देश्य था, भारत की जनता को अपनी नागरिक स्वतंत्रता के लिए सिर उठाने से रोकना। औद्योगिक विवाद कानून के अनुसार सरकार मजदूरों से हड़ताल के अधिकार को छीनना चाहती थी। जबकि सार्वजनिक सुरक्षा कानून की आड़ में सरकार राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलना चाहती थी। इसी सिलसिले में केंद्रीय समिती की बैठक बुलायी गई और तय हुआ कि जिस दिन असेंबली में बिलों पर वायसराय की स्वीकृति की घोषणा की जाने वाली हो उसी दिन, बॉम विस्फोट करके बहरी सरकार के कान खोल दिये जाये और जनता के प्रतिरोध की सच्ची आवाज उन तक पहुंचायी जाये।  अप्रैल 1929 का दिन था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम विस्फोट किया और "इंकलाब ज़िंदाबाद " और "साम्राज्यवाद का नाश हो" जैसे नारे लगाए।...

सुखदेव भाग - 4

  नौजवान भारत सभा सन् 1926 में सुखदेव, भगत सिंह, भगवतीचरण वोहरा आदि ने लाहौर में "नौजवान भारत सभा " का गठन किया। इसका वास्तविक उद्देश्य इश्तहारों, वक्तव्यों और सभाओं के द्वारा अपने विचारों को जनसामान्य तक पहुंचाना था। 

सुखदेव भाग - 5

  हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन आर्मी सन् 1914 के प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस में 18 वर्षिय करतार सिंह सराभा को फांसी हुई। 2 सितंबर ,1928 को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला किले के खंडहरों में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों की गुप्त बैठक हुई। सुखदेव ने इस संगठन का नाम "हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन आर्मी " रखने का प्रस्ताव दिया। भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता। इसका उद्देश्य था देश को आज़ाद कराना न कि आतंक फैलाना। 

सुखदेव भाग - 3

  कॉलोनी एक्ट साल 1907 में सरकार ने नया कॉलोनी एक्ट पास किया। सारे पंजाब में , खासकर लायलपुर में हलचल मच गई। इस एक्ट के अनुसार किसान अपने जमीन पर सिर्फ खेती कर सकते थे। उन्हें यह भी अधिकार नहीं था, कि अपनी जमीन पर किसी किस्म की तामिर करें। पंजाब में इसका जमकर विरोध हुआ और इसी में भगत सिंह और सुखदेव भी शामिल हो गए। सुखदेव के ताया जी लाला चिंताराम थापर ने 1918 में लायलपुर में कांग्रेस कमेटी की स्थापना की। रोलट एक्ट के खिलाफ़ गांधी जी ने 16 अप्रैल ,1919 को देशभर में कारोबार बंद कर देने का ऐलान किया।  लाला चिंताराम थापर और उनके साथियों के प्रयास से सारा लायलपुर ही बंद रहा। 

सुखदेव भाग - 2

  शिक्षा सुखदेव ने सनातन धर्म स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा पास की और नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। इस कॉलेज के मुख्य संस्थापकों में से लाला लाजपत राय थे।  भाई परमानंद जो कि एक विद्रोह के सिलसिले में सजा काट चुके थे , कॉलेज की व्यवस्था भी देखते थे। वे अपने अंडमान के बंदी जीवन की कथा सुनाते थे और छात्रों में अंग्रजी शासन क्रूरता की कहानियाँ बताते। दूसरे थे प्रोफ़ेसर जयचंद विद्यालकार जिनसे युवकों को आज़ादी के संघर्ष में कूदने की प्रेरणा मिली , उनमें भगत सिंह सुखदेव प्रमुख थे। इनके पास बंगाल के क्रांतिकारी भी आया करते थे। सुखदेव उन्ही के माध्यम से क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आए।  सन् 1925 में सुखदेव बी. ए. फाइनल ईयर के छात्र थे और भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहते थे इसी दौरान उन्होंने रूस, फ्रांस और इटली की राज्यक्रांतियो का अध्ययन किया। भगत सिंह के बाद अगर समाजवाद पर किसी ने पढ़ा और मनन किया था तो वो सुखदेव थे। लाला चिंताराम के देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना से भरे जीवन ने हुई सुखदेव का चरित्र निर्माण किया और वे स्वतंत्रता के आंदोलन में शामिल हो गए।...

सुखदेव भाग - 1

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प्रारंभिक जीवन  सुखदेव थापर का जन्म 15 मई, 1907 को लुधियाना, पंजाब में उनके पैतृक गांव में हुआ था। सुखदेव के पिता का नाम रामलाल थापर था, वे लायलपुर के थे और माता का नाम रल्ली देवी थी,वे नौधरा ,लुधियाना की रहने वाली थी। जन्म के केवल 3 वर्ष बाद ही उनके पिता का देहान्त हो गया।  लाला चिंताराम (सुखदेव के तायाजी ) जी ने सुखदेव का पालन पोषण किया। 

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भाग - 4

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  दक्षिणेश्वर केस में कुछ अन्य लोगों को भी सजा सुनायी गई। कलकत्ते की स्पेशल ब्रांच सी. आई. डी. के एक उच्च पदाधिकारी रायबहादुर भूपेंद्रनाथ बार - बार जेल में जाते थे और सभी अभियुक्तों को परेशान करते थे।  भूपेंद्रनाथ की मंशा सभी क्रांतिकारियों में आपसी अविश्वास पैदा करना था , जिससे वे सरकार के पक्ष में हो जाएं।  रोज की इस मानसिक प्रताड़ना से परेशान होकर एक दिन जब भूपेंद्रनाथ उनके दर्जे में आए तो फ़िर इनका शव ही बाहर आया।  इस मामले में प्रमोद रंजन चौधरी और अनंत हरी मित्र फांसी पर चढ़ा दिए गए।

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भाग - 5

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राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का अंतिम पत्र   राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का अंतिम पत्र जो उन्होंने 14 दिसम्बर, 1927 को गोण्डा जेल से अपने एक साथी को लिखा था।

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भाग - 2

राजेन्द्रनाथ का दक्षिणेश्वर केस मेरठ की प्रांतीय काउंसल में कुछ खास बातें निश्चित हुई थी। उन्हीं के लिए राजेंद्रनाथ बंगाल चले गए। काकोरी काण्ड के मामले में जब पुलीस 26 सितम्बर को वारेंट लेकर उनके घर, उन्हें गिरफ्तार करने गई। तब वे वहां नहीं मिले। कुछ दिनों बाद वे कलकत्ते के दक्षिणेश्वर के एक मकान में पकड़े गए। वहां कुछ अन्य सामान के साथ एक बम भी पाया गया। राजेंद्रनाथ को इस केस में 10 साल को सजा दी गई, जो बाद में घटा कर 5 वर्ष कर दि गई।

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भाग - 3

लाहिड़ी का मजिस्ट्रेट को जवाब   लाहिड़ी जी ने फांसी पर जाने से पहले स्नान किया, गीता पढ़ी और व्यायाम किया। यह देखकर मजिस्ट्रेट ने उनसे कहा - " आपने अपने आगे वाली घटना के लिए अपना धर्म ग्रंथ पढ़ा ,वह तो ठीक है। लेकिन आपने व्यायाम क्यों किया ? " तब लाहिड़ी ने कहा - " मैं हिंदू हूं और मेरा दृढ़ विश्वास है कि मेरा दूसरा जन्म अवश्य होगा। व्यायाम इसलिए किया कि मैं दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ बनूं और देश को स्वतंत्र कराऊं। " 

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन  राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बांग्लादेश के सुदूरपुर  के पबना नामक स्थान पर 29 जून 1901 में हुआ था। राजेंद्रनाथ लाहिड़ी के पिता का नाम क्षिति मोहन लाहिड़ी और माता का नाम बसंत कुमारी था। लाहिड़ी के जन्म के समय उनके पिता और उनके बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास में थे। लाहिड़ी पढ़ने - लिखने के साथ तरह - तरह के खेल - कूद, तैरना , हॉकी और फुटबॉल में भी निपूर्ण थे।  काकोरी काण्ड के समय राजेंद्रनाथ लाहिड़ी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एम. ए की पढ़ाई कर रहे थे। वही पर उनकी भेंट शचींद्रनाथ सान्याल से हुई।  लाहिड़ी लगभग 18 साल बनारस में रहे। लाहिड़ी दशाश्वमेध घाट के पास मकान नंबर डी 17 /142 में रहते थे। उनके लेख अक्सर बंगला पत्र " बंगवाणी " ," शंख " आदि मे प्रकाशित होते थे। बनारस के क्रान्तिकारियों के पत्र " अग्रदूत " (हस्तलिपि) के वे एक प्रकार के प्रवर्तक थे। गिरफ्तारी के समय वे हिंदू बनारस विश्वविद्यालय के " बंगला साहित्य  परिषद् " के मंत्री थे। राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को 17 द...

अशफ़ाक उल्ला खान भाग - 3

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 असफाकउल्ला खान के कुछ गजलें और गीत 

अशफ़ाक उल्ला खान भाग - 2

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असफाकउल्ला खान का आखरी पत्र    9 अक्टूबर ,1927 को अशफ़ाक उल्ला खान ने अपनी मां को आखिरी खत लिखा था।

अशफ़ाक उल्ला खान भाग - 1

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अशफ़ाक उल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांनपुर में हुआ था।   उनके पिता का नाम शफीकुल्ला खान और माता का नाम  मजहरुनिसा बेगम था। उनके पिता पुलीस विभाग में काम करते थे। सितम्‍बर 1920 को असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ और चौरी - चौरा काण्ड के बाद गांधी जी ने इसे फरवरी 1922 को वापस ले लिया। जिससे युवाओं को बहुत निराशा हुई। इसके बाद अशफ़ाक उल्ला खान क्रांतिकारी गुट में जुड़ गए। राम प्रसाद बिस्मिल इस क्रान्तिकारियों के गुट के नेता थे। राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान दोनों ही बहुत घनिष्ठ मित्र बन गए थे। वे हमेशा साथ रहा करते थे। अशफ़ाक उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आजाद और अन्य कई क्रान्तिकारियों ने मिलकर बंदूकें खरीदने के लिए ट्रेन से जा रहें खजाने को 9 अगस्त 1925 को लिया था। जिसे काकोरी काण्ड का नाम दिया गया। काकोरी काण्ड के लिए ही अशफ़ाक उल्ला खान को अन्य चार क्रान्तिकारियों के साथ फांसी की सजा सुनाई गई और बाकी लोगों को उम्र कैद की। अशफ़ाक उल्ला खान को 19 दिसंबर ,1927 को फैजाबाद जेल में, सुबह 6 बजे फांसी दी गई थी। अशफ़ाक उल्ला खान को उर्...

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 14

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राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 13

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राम प्रसाद बिस्मिल जी की कुछ रचनाएं  -

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 12

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5) राम प्रसाद जी के पहले उनकी माता का एक पुत्र जन्म लेते ही मर गया था। बिस्मिल जी का स्वास्थ भी जन्म के कुछ समय बाद बिगड़ने लगा।  तब एक फकीर ने कहा कि" एक सफेद खरगोश को उनके ऊपर से घुमाकर जमीन पर छोड़ दें ,अगर कोई बीमारी होगी तो खरगोश मर जायेगा। ऐसा ही किया गया और खरगोश ने तीन चार चक्कर काटे और मर गया और बिस्मिल जी धीरे - धीरे स्वस्थ होने लगे। 6) राम प्रसाद बिस्मिल के परिवार में लड़कियों को पैदा होने के बाद मार डालने की प्रथा थी। उनकी माता ने इसका विरोध किया और अपनी बेटियों को बहुत प्यार से पाला। 7) बिस्मिल जी ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम "अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली"। पुस्तक की बिक्री से 600 रुपए की आमदनी हुई। इन पैसों का इस्तेमाल गुप्त समिति के लिए किया गया। 8) राम प्रसाद बिस्मिल को बचपन के बहुत सी बुरी आदतें लग गई थी। जैसे - गंदे नॉवेल पढ़ना, चोरी करना, सिगरेट पीना,आदि। आर्य समाज के सम्पर्क में आने पर उनकी ये सभी बुरी आदतें छूट गई और उनके सहपाठी सुशील चंद्र सेन की सहायता से बिस्मिल जी की सिगरेट की लत भी छूट गई। 9) फांसी के तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी आत्मकथ...

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 11

  बिस्मिल जी से जुड़ी कुछ बातें 1) राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म एकादशी के दिन हुआ था और एकादशी के दिन ही उनको फांसी दी गई थी। 2) बिस्मिल जी की अंत्येष्टि के बाद बाबा राघव दास ने देवरिया के बरहज में, ताम्रपात्र में उनकी अस्थियों को रख कर एक चबूतरा जैसा स्मृति स्थल बनवा दिया। 3) ए. वी. रिच स्कूल में बिस्मिल की भेंट शाहजहांपुर जनपद की तहसील पुवांयां के गाँव देवकली निवासी राजाराम भारतीय से हुई। वे मिशन स्कूल के छात्र थे। उनके पास एकनाली का एक छोटा सा पिस्तौल था। 4) फांसी के दिन के तीन दिन पहले 16 दिसम्बर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल ने आखरी पत्र अपनी मां मूलमति देवी को लिखा था। 

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 10

 फांसी के तख्ते पर चढ़कर राम प्रसाद बिस्मिल जी ने " वन्दे मातरम् " कहा और वेद मंत्र "ॐ विश्वानिदेव सवितर्दुरितानि परासुव, यदभद्रम‌् तन्नसुव " का जाप करते - करते फांसी पर चढ़ गए।

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 9

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  पहला हमला 22 जनवरी को जब बिस्मिल जी प्रयाग (इलाहाबाद) में थे। उसी दिन अपने नित्य कर्म से निवृत्त होकर बिस्मिल जी यमुना नदी के निकट बैठे आंखे बंद करके ध्यान कर रहे थे। तभी अचानक गोली चली। गोली बिस्मिल जी के कान के पास से निकल गई। कुछ दिन पहले बिस्मिल जी और गोली चलाने वाले व्यक्ति से लड़ाई हुई थी। एक के बाद एक तीन गोलियां बिस्मिल जी पर चलायी गई। जिससे बिस्मिल जी बाल बाल बच गए। दुसरी बार हमला एक गुप्त समिति के नियमों में फेर बदल को लेकर समिति के सदस्यों और बिस्मिल जी के विचारों में मतभेद हो गए। जिसके कारण समिति के तीन चार सदस्यों ने बिस्मिल जी को जान से मारने की योजना बनायी , लेकिन उनमें से ही एक सदस्य ने बिस्मिल जी को सारी बात बता दी। जिससे बिस्मिल जी की जान बच गई।

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 8

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बिस्मिल जी की मृत्यु के बाद  19 दिसम्बर 1927 ई. सोमवार (पौष कृष्ण 11 संवत् 1984 वि.) को 6.30 बजे प्रात: काल फांसी पर लटका दिया गया। फांसी के बाद बिस्मिल जी का पार्थिव शरीर उनके पिता ने गोरखपुर कारागार के अधीक्षक को एक प्रार्थना पत्र लिखकर निवेदन किया कि बिस्मिल जी का शव उनके परिवारजनों को सौंप दिया जाए। वे अपने बेटे का शव गृह जनपद शाहजहांपुर ले जाकर पूरे विधि विधान से उनका अंतिम संस्कार करना चाहते है।  जेल अधिकारी ने बिस्मिल जी के पिता से कहा कि यदि वे वादा करे कि बिस्मिल जी के शव का जुलूस नहीं निकाला जाएगा , तो ही उन्हें उनके पुत्र का शव दिया जाएगा। बिस्मिल जी के पिता ने कहा कि यदि शव का जुलूस निकालने की उनकी कोई इच्छा नहीं है लेकिन अगर श्रद्धालु जनता जुलूस निकालने की जिद्द करें तो वह जनता के उत्साह को रोक नहीं सकते हैं। काफ़ी बहस के बाद बिस्मिल जी का शव उनके पिता को सौंपा गया। जैसे ही शव जेल द्वार पर पहुंचा जनता ने " ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश हो " " भारत माता की जय " नारे गूंज उठे।  जनता ने राम प्रसाद जी के शव का जुलुस निकाला। एक टिकटी बनाई गई और उसी पर शव को लि...

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 7

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राम प्रसाद बिस्मिल की अन्तिम कविता  राम प्रसाद बिस्मिल के फांसी के एक दिन पहले 18 दिसम्बर 1927 को उनकी माता - पिता और श्री शिव वर्मा बिस्मिल जी से गोरखपुर जेल में मिलने गए थे।                    श्री शिव वर्मा  बिस्मिल ने वर्मा जी काे अपनी अंतिम कविता दी। जो इस प्रकार है - 

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 6

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मुकदमें के फैसले का दिन 6 अप्रैल 1927 का दिन , सभी क्रांतिकारियों ने एक दुसरे को फूल मालाएं पहनायी और इत्र लगाया। बिस्मिल जी ने " वन्दे मातरम् " का नारा लगाया और बाकी ने " भारत माता की जय "। सभी के हाथ में हथकड़ी और पांव में बेड़ियां थी। चलते - चलते बिस्मिल जी ने कहा - " अपना खून अपने ही हाथों से बहाना है हमें।  मादरे हिंद को सर भेंट चढ़ाना है हमें । " गाना गाते - गाते वे सभी लॉरी तक पहुंचे। लखनऊ जेल से रिंग थियेटर तक सभी गीत गाते रहे।  लॉरी से उतरने के बाद उन्होंने फिर गाना शुरू किया - " सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है। देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है। रहबरे राहें मुहबत रह न जाना राह में। लज्जते ' सहरानेवर्दी दूर - ए - मंजिल में है। आज मकतब में यह कातिल कह रहा है बार बार क्या तमन्ना - ए - शहादत भी किसी के दिल में है। अब न अगले बलबले हैं और न अरमानों की भीड़। सिर्फ मिट जाने की हशरत अब दिले - बिस्मिल में है। वक्त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां। हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है। ऐ शहीदे - मुल्कों - मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार। अ...

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 5

  मातृवेदी की शपथ  भारतीय जी ने पूरी तरह से जांच परख कर राम प्रसाद को गंगा सिंह चंदेल से मिलवाया। गंगा सिंह उस समय इलाहाबाद में पढ़ते थे, उन्हें भारतीय जी ने शाहजहांपुर बुलाया। उनकी सहमति से राम प्रसाद जी को सन् 1916 में " मातृवेदी " का सक्रिय सदस्य बना लिया। उस समय जो " मातृवेदी " सदस्यता ग्रहण करते थे। उन्हें संस्था की एक शपथ लेनी पड़ती थी। बिस्मिल जी ने भी संस्था के नियम का पालन किया।  शपथ   है देश को स्वाधीन करना जन्म मम संसार में। तत्पर रहूंगा मैं सदा अंग्रेज दल संहार में ।। अन्याय का बदला चुकाना मुख्य मेरा धर्म है। मददलन अत्याचारियों का मेरा प्रथम शुचि कर्म है।। मेरी अनेकों भावनाएं उठ रहीं हृद धाम में।। स्वाधीनता का मूल्य बढ़कर है सभी संसार से। बदला चुकेगा हरणकर्ता के रुधिर की धार से।। अंग्रेज रुधिर की धार से निज पितृगण तर्पण करूं। अंग्रेज सिर, सहित भक्ति मैं, जननी को अर्पण करूं।। हो दुष्ट दुशासन - रुधिर स्नान से यह द्रौपदी। हो सहस्त्रबाहु विनाश से यह रेणुका सुख में पगी।। है कठिन अत्याचार का ऋण का हमने कठिन प्रण है किया।। मैं अमर हूं मेरा कभी नाश हो सकता नही...

राम प्रसाद "बिस्मिल"भाग - 3

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  " मातृवेदी " की सदस्यता राजाराम भारतीय जी " मातृवेदी " नामक क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य थे। इस दल का गठन गेंदा लाल दीक्षित ने किया था। इस संस्था के कामों को चार भागों में बांटा गया था -  1) साहित्य प्रचार -  इस विभाग का काम था। अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ पुस्तकों, कविताओं और पर्चों के कार्य का प्रकाशन करना। 2) मिलिटरी विभाग - इस विभाग का काम हथियार संग्रह करना और उनको चलाना सीखना, इस काम के लिए धन संग्रह करना। दल की अपनी सेना तैयार करना और लोगों को देशभक्ति के नाम पर अपनी सेना में सम्मानित करना।  3) गुप्त कार्य - इस विभाग का काम अंग्रजों की विभिन्न रक्षा सेनाओं, ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की संख्या, सरकारी खजाने आदि की जानकारी रखना।  4) शिल्पकारी - इस संस्था का काम भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहित करना और देश में विदेशी माल की बिक्री रोकना।