रावण का नाम रावण क्यों और कैसे पड़ा?

एक बार रावण अपने बड़े भाई कुबेर से छीने हुए पुष्पक विमान में कैलाश पर्वत के शिखर के पास से गुजर रहा था। तभी पुष्पक विमान रूक गया आगे नहीं बढ़ पा रहा था।


तब नंदी जी ने कहा कि यह कैलाश पर्वत महादेव का निवास स्थान है। तुम अपना मार्ग बदल लो। यह सुनकर रावण ने नंदी जी का मजाक उड़ाया।

तब रावण कैलाश पर्वत पर गया और उसने कहा कि मैं अपना मार्ग नहीं बदलूंगा बल्कि इस पर्वत को ही जड़ से उखाड़ कर फेंक दूंगा।



अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत को जड़ से अपने हाथों से उठाने के लिए अपने हाथ कैलाश पर्वत के नीचे डाल कर उठाने लगा, तो सारा पर्वत हिलने लगा।


 शिव जी ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया।

जिससे रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गया और दशानन चिल्लाने लगा।

तब दशानन के मंत्रियों ने दशानन से कहा कि शिव जी से क्षमा मांग लो।

मंत्रियों की बात मान कर दशानन ने शिव जी को प्रणाम किया और सामवेद के विविध मंत्रो से वह शिव जी की पूजा करने लगा।

जब इस प्रकार दशानन को रोते और गिड़गिड़ाते 1000 वर्ष बीत गए तब महादेव रावण से संतुष्ट हुए।

महादेव बोले - हे रावण मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हुं। तुमने अपने भुजाओं के पर्वत के नीचे दब जाने से, जो चीत्कार कि उससे तीनों लोक थर्रा गये।

 इसलिए आज से तुम्हारा नाम " रावण " होगा।
रावण , दशानन और दसग्रीव ये सभी नाम रावण के है।

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