सूर्यपुत्री - तपती,जिनकी वजह से कुरूवंश की शुरुआत हुई !
तपती
महाभारत के अनुसार तपती भगवान सूर्य की पुत्री थी जो अपनी तपस्या के कारण तीनों लोको में तपती के नाम से विख्यात थी।
वैसी सुंदर कन्या देवता,असुर, अप्सरा, यक्ष आदि किसी की भी नहीं थी। उस समय उनके सामने कोई भी योग्य पुरुष नहीं था जिससे भगवान सूर्य उनका विवाह कर सके। इसके लिए वे सर्वदा चिंतित रहा करते थे।
उन्हीं दिनों पुरुवंश के राजा ऋक्ष के पुत्र संवरण बड़े ही बलवान और भगवान सूर्य के सच्चे भक्त थे। वे प्रतिदिन सूर्योदय के समय अर्घ,पाध, पुष्प,उपहार,सुगंध आदि से पवित्रता के साथ उनकी पूजा करते थे।
नियम,उपवास, तपस्या से उन्हें संतुष्ट करते और अहंकार के बिना भक्ति भाव से उनकी पूजा करते थे।
सूर्य के मन में धीरे - धीरे यह बात आने लगी कि वे मेरे पुत्री के लिए योग्य पति है।
संवरण और तपती का विवाह
एक दिन की बात है संवरण घोड़े पर सवार होकर पर्वत की तराइयों और जंगल में शिकार खेल रहे थे।भूख प्यास से व्याकुल होकर उनका घोड़ा मर गया।
वो पैदल ही चलने लगे, उस समय उनकी दृष्टि एक सुंदर कन्या पर पड़ी। एकांत में अकेली कन्या को देखकर उसे एक टक निहारने लगे।
फिर उन्होंने उस कन्या से पूछा -
तुम्हारा नाम क्या है ?
तुम किसकी पुत्री हो ?
तुम इस निर्जन वन में किस उद्देश्य से हो ?
राजा की बात सुनकर वो कन्या अंतर्ध्यान हो गई।
राजा ने उसे खोजने की बहुत कोशिश की और उसके न मिलने पर वो विलाप करने लगे और बेहोश हो गए।
राजा ने उसे खोजने की बहुत कोशिश की और उसके न मिलने पर वो विलाप करने लगे और बेहोश हो गए।
राजा संवरण को बेहोश और धरती पर पड़ा देखकर तपती वहां आई और बोली राजन उठिए। राजा उठ गए और तपती से गंधर्व विवाह करने के लिए कहा।
तपती ने राजा से कहा - कि मुझे आप से विवाह करने में कोई आपत्ती नहीं है परंतु इसके लिए आपको मेरे पिता की आज्ञा लेेनी पड़ेगी।
मैं सूर्य देव की पुत्री और विस्वावंधा सावित्री कि छोटी बहन हूं। यह कहकर तपती आकाश मार्ग से चली गई और राजा संवरण बेहोश हो गए।
उसी समय उनके मंत्री, अनुयायी और सैनिक उनको ढूंढते हुए वहां आ गए।उन्होंने राजा को होश में लाया और होश में आने पर उन्होंने सबको वापस भेज दिया, बस एक मंत्री को अपने साथ रख लिया।
अब वो ऊपर की ओर मुंह कर के भगवान सूर्य की आराधना करने लगे। उन्होंने मन ही मन अपने पुरोहित महर्षि वशिष्ट का ध्यान किया।
ठीक 12 वे दिन महर्षि वशिष्ट आए।उन्होंने राजा संवरण के मन का सारा हाल जानकर ,उन्हें आश्वासन दिया और उसके सामने ही सूर्य से मिलने के लिए चल पड़े।
सूर्य के सामने जाकर उन्होंने अपना परिचय दिया और राजा संवरण से उनकी पुत्री के विवाह की बात कही।
सूर्य देव ने तुरंत हां कह दिया और महर्षि वशिष्ट जी के साथ ही तपती को संवरण के पास भेज दिया। इसके बाद उनका विवाह हो गया।
संवरण और तपती उसी पर्वत पर विहार करने लगे। इस प्रकार संवरण और तपती 12 वर्ष तक वहीं रहें। राज्य काज मंत्रियों के ऊपर रहा।
इससे इन्द्र देव ने इनके राज्य में वर्षा ही बंद कर दी। अनावृष्टि के कारण प्रजा का नाश होने लगा। ओस तक ना पड़ने के कारण अन्न की पैदावार बंद हो गई।
प्रजा मर्यादा तोड़कर एक दूसरे को लूटने लगे। तब महर्षि वशिष्ट जी ने वहां अपने तपस्या के प्रभाव से वर्षा करवाई।
संवरण तपती को अपनी राजधानी में लेे आए फिर इन्द्र पहले की तरह ही वर्षा करने लगे और पैदावार भी शुरू हो गई।


Oh now I understand
ReplyDeleteOk,
DeleteDhanyawad 🌷