श्री कृष्ण का वह शत्रु जो, दो माताओं से दो भागों में पैदा हुआ था
जरासंध की जन्म कथा
मगध देश के वृहद्रथ (बृहद्रथ) नाम के राजा राज करते थे। राजा वृहद्रथ ने काशी नरेश की दो कन्याओं से विवाह किया था और प्रतिज्ञा ली थी कि मैं तुम दोनों से समान प्रेम करूंगा।
काफी समय और हर तरह के यज्ञ होम आदि के बाद भी राजा वृहद्रथ को संतान प्राप्ति नहीं हुई। एक दिन उन्होंने सुना कि गौतम कक्षिवान के पुत्र महात्मा चण्डकौशिक तपस्या से इधर आए हैं और एक वृक्ष के नीचे ठहरें है।
यह सुनकर राजा वृहद्रथ अपनी दोनों रानियों को लेकर वहां पर गए। महर्षि के पूछने पर राजा ने बताया कि उनकी कोई संतान नहीं है।
यह सुनकर महर्षि, जिस आम के पेड़ के नीचे बैठे थे। उसी पेड़ से एक आम को अभिमंत्रित करके उन्होंने राजा को दिया।
इसके बाद राजा वृहद्रथ अपनी रानियों के साथ वापस लौट आए। वापस लौट कर रानियों ने उस आम को आधा - आधा बांटकर खा लिया।
फिर समय आने पर दोनों के शरीर का एक - एक टुकड़ा पैदा हुआ।
प्रत्येक टुकड़े में एक आंख,एक कान,एक हाथ,एक पैर आधा पेट,आधा मुंह और आधी कमर थी।
यह देखकर रानियां भयभीत हो गई और अपनी दासियों से ,कपड़े में लपेट कर दोनों टुकड़ों को फेक देने को कहा।
जहाँ पर दासियों ने उस बच्चे को फेंका था। वहाँ पर एक जरा नाम की राक्षसी रहती थी। उसने इन दोनों टुकड़ों को उठा लिया और सुविधा से ले जाने के लिए जोड़ दिया।
टुकड़ों को आपस में जोड़ते ही बालक जोर जोर से रोने लगा जिससे जरा राक्षसी को उस पर दया आ गई।
उसने अपना एक सुंदर रूप धारण किया और बालक को उठा कर राजा के पास गई और उन्हें सबकुछ बताया।
राजा वृहद्रथ ने सब जानकर उसका आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे पुत्र को जरा ने संधित (जोड़ा है) किया है इसलिए इसका नाम जरासंध होगा।
जरासंध की मृत्यु
श्री कृष्ण,अर्जुन और भीम जरासंध से मिलने भेस बदलकर गए। श्री कृष्ण से भीम और अर्जुन से कहा - कि जरासंध को युद्ध में हराना असंभव है। इसलिए जरासंध को दद्वयुद्ध ( कुश्ती ) में ही हाराना चाहिए।
फिर जरासंध और भीम का दद्वयुद्ध (कुश्ती) आरंभ हुआ। 13 दिन और रात बिना कुछ खाएं पिएं युद्ध चलता रहा।14 वे दिन, रात के समय जरासंध थककर कुछ ढ़ीला पड़ा। तब भीम ने जरासंध का वध कर दिया।



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