अकबर की फारसी रामायण !

मुगल बादशाह अकबर द्वारा रामायण का फारसी में अनुवाद करवाया गया था।
उसके बाद हमिदबानू बेगम,रहीम और जहांगीर ने भी अपने लिए रामायण का अनुवाद करवाया था। 


मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी

हिन्दुओं के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ रामायण और महाभारत का फारसी अनुवाद भी है।


बादशाह अकबर के दरबार में मूल्ला अब्दुल कादिर बदायूंनी, भी एक ऐसी शक्सियत रहे,जिनका अरबी,फारसी  के साथ ही संस्कृत पर भी अच्छी पकड़ थी।

मूल्ला अब्दुल कादिर का जन्म राजस्थान में हुआ था। लेकिन बाद में तालिम के सिलसिले में वो , बदायूं आये और यही रह गए।

1573 ईसवी में जमाल ख़ान और हकीम एनुल मुतक इन्हें अकबर के दरबार में ले गए और इन्हे दरबारी विद्धवानों में शामिल कर लिया गया।



मूल्ला अब्दुल कादिर ने मुंतखिबुत तवारीख नाम से दो जिल्दो 
 में किताब लिखी, जो विद्वानों के बीच बहुचर्चित हुई।

इसकी पहली जिल्द में " हिंदुस्तान के इतिहास पर प्रकाश डाला गया था "।

इसकी दूसरी भाग में " अकबर के दरबार के हालात का वर्णन है " ।

इसी किताब में लिखा है कि अकबर को संस्कृत नहीं आती थी इसलिए वो इच्छा के बावजूद रामायण और महाभारत नहीं पढ़ पा रहे थे।

अकबर ने खुद भी इस कार्य में समय देने का फ़ैसला किया। मूल्ला अब्दुल कादिर लिखते है कि बादशाह ने मुुुुझे बुलाकर कहा कि नकीब खां के साथ मिलकर इसका अनुवाद करें। 


कई  महीनों की मेहनत के बाद 1591 ईसवी में रामायण का फारसी में अनुवाद पूरा करके बादशाह अकबर को पेश किया। यह अनुवाद 4 साल में पूरा हुआ।

फारसी रामायण के चित्र किसने बनाए ?

अकबर की रामायण में 176 चित्र है। इसमें एक चित्र पर दो चित्रकारों के नाम अंकित है।

एक " तरह " अर्थात " रेखांकन" और " अमल " अर्थात " चित्रांकन " है।



इसके मुख्य चित्रकार बासवान, केशव लाल और मिस्कीन है।

कहां है फारसी रामायण ?

अकबर की सचित्र रामायण वर्तमान समय में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय, जयपुर में है। 


यह रामायण सन् 1584 से 1588 के बीच तैयार हुई थी। इस रामायण की पांडुलिपि दौलताबाद कागज़ पर लिखी गई है। जिसके 365 पृष्ठ है।



फारसी रामायण के बारे में जहांगीर ने कहा था कि यह पुस्तक  सन् 1605 ईसवी में मेरे (जहांगीर) किताब खाने में लायी गई थी। यह पुस्तक हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण पुस्तक है।

जिसका भाषान्तरण मेरे पिता ने करवाया था। इसमें अजीब और न मरने वाली कथाएं हैं विशेषकर तृतिय और पंचम कांड में है।

रामायण की इस प्रति में सन् 1654 ईसवी की शाहजहां और सन् 1658 ईसवी की सन् 1661 ईसवी की औरंगजेब की मुहर लगी हुई है।

इस पांडुलिपि को 1516 रुपये को देकर तैयार करवाया गया था।

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