अदालत में गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों खाते है ? मुगलों ने की थी इसकी शुरुआत।

मुगल काल में गीता या अन्य धार्मिक ग्रंथों की कसम खाने की परंपरा

भारत में मुगल काल में धार्मिक किताबों पर हाथ रख कर कसम खाने की प्रथा थी। मुगल शासक जानते थे कि भारत के नागरिक अपने धार्मिक ग्रंथों पर हाथ रखकर झूठ नहीं बोलेंगे।



मुगलों के शासन काल तक धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रथा केवल एक दरबारी प्रथा थी। लेकिन यह कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं थी।

अंग्रेजो ने इस प्रथा को कानून बनाया

इंडियन ओथ्स एक्ट,1873 को पास किया गया और इसे सभी अदालतों में लागू कर दिया गया।

इस एक्ट के तहत हिन्दू धर्म के लोग गीता पर, मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग कुरान पर और ईसाइयों के लिए बाइबल सुनिश्चित की गई थी।

जो लोग अलग धर्मो के मानने वाले थे उनके लिए भी उसके हिसाब से ग्रंथ या पवित्र किताबें निर्धारित की गई।

1969 में यह प्रथा समाप्त हो गई। 1969 में नया इंडियन ओथ्स एक्ट पास किया गया। लॉ कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर ये पास किया गया।
लॉ कमिशन ने अपनी 28 रिपोर्ट में 1873 ओथ्स एक्ट में संशोधन का सुझाव दिया था। अब सभी के लिए इस प्रकार के शपथ का कानून है -

“I do swear in the name of God/solemnly affirm that what I shall state shall be the truth, the whole truth and nothing but the truth”.

"मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा".


12 साल से कम उम्र और अपराधियों को शपथ नहीं दिलाई जाती

इंडियन ओथ्स एक्ट 1969 के आधार पर यदि 12 साल से कम उम्र का गवाह है तो उसे शपथ नहीं दिलाई जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बच्चे भगवान का रूप होते है।

भारतीय संविधान में नियम 20 के अनुसार अपराधी को अपने खिलाफ गवाही के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इसलिए अपराधियों को शपथ नहीं दिला जाती है।

अगर शपथ लेने के बाद भी कोई झूठ बोले तो

अगर कोई शपथ लेकर भी झूठ बोले तो उसे इंडियन पैनल कोड सेक्शन 193 के अन्तर्गत 7 साल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है।

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