भास्कराचार्य ने, न्यूटन से 800 साल पहले ही कर ली थी गुरुत्वाकर्षण की खोज !

भास्कराचार्य द्वितीय

कुछ विद्वानों के दो मत माने जाते है। प्रथम मत के अनुसार भास्कराचार्य द्वितीय का जन्म सन् 1114 ईसवी में मध्य प्रदेश के  बिदुर या बिदार नामक स्थान पर हुआ था। 



जबकि कुछ विद्वान मानते थे कि उनका जन्म बीजापुर  नामक स्थान पर हुआ था जो आजकल कर्नाटक राज्य में स्थित है।

उनके पिता का नाम महेश्वराचार्य था। जो खुद भी एक गणितज्ञ और खगोलविद थे।

हालांकि भास्कराचार्य द्वितीय का कर्म क्षेत्र उज्जैन (अवंतिका)
 था। 

गोलाध्याय के प्रश्नाध्याय, श्लोक 58 में भास्कराचार्य लिखते हैं कि -

"रसगुणपूर्णमही समशकनृपसमयेऽभवन्मोत्पत्तिः।
रसगुणवर्षेण मया सिद्धान्तशिरोमणि रचितः॥"

 श्लोक का अर्थ - " शक संवत १०३६ (1036)  ,अर्थात ईसवी संख्या १११४ (1114)  में हुआ था और 36 वर्ष की आयु में उन्होंने शक संवत ११७२ (1172) अर्थात ईसवी संख्या ११५० ( 1150) में " लीलावती " कि रचना की थी।

                                 लीलावती

भास्कराचार्य द्वितीय की मृत्यु 

भास्कराचार्य द्वितीय की मृत्यु के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है।  उन्होंने अपने ग्रंथ करण-कुतूहल की रचना 69  में  थी। इससे स्पष्ट है कि भास्कराचार्य द्वितीय की काफी लंबी आयु थी।


भास्कराचार्य द्वितीय के कार्य और उपलब्धियां

सन् 1150 ईसवी में इन्होंने सिद्धांत शिरोमणी में नामक किताब संस्कृत श्लोकों में, चार दिन में लिखी इस प्रकार है -

1) पाटीगणिताध्याय या लीलावती

2) बीजगणिताध्याय

3) ग्रहगणिताध्याय और

4) गोलाध्याय




 ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं।



1) आधुनिक काल में गुरुत्वाकर्षण का नियम के खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि गुरुत्वाकर्षण का नियम न्यूटन से भी कई सदी पहले भास्कराचार्य द्वितीय ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में लिखा गया है कि 

" पृथ्वी आकाशीय पदार्थो को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिंड पृथ्वी पर गिरते हैं। "

2) भास्कराचार्य द्वितीय ने " करणकुतूहल " की रचना की है इसमें  मुख्यतः " खगोल विज्ञान " संबंधी विषयों के बारे में जानकारी दी गई है।



इसमें बताया गया है कि " चन्द्रमा सूर्य को ढ़क लेता है तो सूर्यग्रहण और जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढ़क लेती है तो चंद्रग्रहण होता है। "

3) करणकुतूहल और वासनाभाष्य( सिद्धांत शिरोमणि का भाष्य ) तथा भास्कर व्यवहार और भास्कर विवाह पटल नामक दो छोटे ज्योतिष ग्रंथ भास्कराचार्य द्वितीय के लिखे हुए है।                     

4) भास्कराचार्य को अनंत तथा कलन के कुछ सूत्रों का भी ज्ञान था। इनके अतिरिक्त इन्होंने किसी फलन के अवकल को "तात्कालिक गति" का नाम दिया और सिद्ध किया कि

d (ज्या q) = (कोटिज्या q) . dq (शब्दों में, बिम्बार्धस्य कोटिज्या गुणस्त्रिज्याहारः फलं दोर्ज्यायोरान्तरम् )।

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