रेबीज़ के टीके का आविष्कार किसने किया ?और पहली बार ये टीका किसे लगाया गया ।

रेबीज़ के सिद्धांतों का आविष्कार

लुई पाश्चर की सबसे महत्वपूर्ण खोज थी कि जानवरों के काटने से उनके विष से मानव जीवन की रक्षा की जा सकती है। बचपन में लुई पाश्चर ने अपने गांव में 8 लोगों की पागल भेड़ियों ने काटकर मार डाला था।



एक बार लुई पाश्चर से मिलने फ्रांस में मदीरा तैयार करने वालों का एक दल आया। उन्होंने लुई से पूछा -
" हर साल हमारी शराब खट्टी हो जाती है इसका क्या कारण है ?


घंटो की जांच के बाद लुई ने पाया कि जीवाणु नामक बहुत ही सूक्ष्म जीव है जो मदीरा को खट्टी कर देते थे।


 उन्होंने बताया कि यदि मदिरा को "60 सेंटीग्रेट तापमान पर 20 से 30 मिनट"   तक उड़ा दिया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाता है। यह दसप्रचुर बढ़ने के दसप्रचुर से कम है इसलिए मदीरा के स्वाद पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।


बाद में लुई ने दूध को मीठा और शुद्ध बनाए रखने के लिए भी यही तरीका इस्तेमाल किया और यही दूध पाश्चरित दूध  कहा जाता।

एक दिन लुई ने सोचा कि यदि यह जीवित जीवाणु भोजन और द्रव्य में होता है तो जीवित जंतु और मनुष्य के रक्त में भी होते होंगे। ये बीमारी पैदा कर सकता है।

उसी समय फ्रांस की रचनाओं में चूजों का हैजा नामक बीमारी फैल गई थी।  

इस बीमारी से लाखों लोग मर रहे थे। इससे मुर्गी पालने वाले लोग लुई के पास गए और उनको मदद करने के लिए कहा।

इसके बाद लुई ने उस जीवाणु की खोज शुरू की, जो चुजो में हैजा फैला रहा था।

लुई को यह जीवाणु मरे हुए चूजों के रक्त में इधर - उधर तैरते मिले। उन्होंने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और उसे स्वस्थ चूजों के देह में पहुंचाया।
इससे टीका (टीका या सुई) लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ। 


फिर उन्होंने पेड़ों के वायरस पर काम किया। उन्होंने थोड़े से विषैले वायरस को भयानक रूप से बनाया और इसके लिए उसका टीका तैयार किया। 

इस गाइड को उन्होंने एक स्वस्थ कुत्ते के देह में जीवित रखा और गाइड की 14 सुइयों को रखने के बाद वह कुत्ता रेबीज से मुक्त हो गया। 

रेबीज़ के पौधे का मानव पर प्रयोग

लुई पाश्चर ने मनुष्य पर अभी तक इसका प्रयोग नहीं किया था। सन् 1884 में बैठे हुए थे जब एक फ्रांसीसी महिला अपने 9 साल के बेटे जोशफ को अपने पास लेकर आई। जिसे एक पागल कुत्ते ने काट लिया था।  

कुत्ते के लार में रेबीज के नन्हे जीवाणु होते है यदि कुछ नहीं किया जाता है तो व्यक्ति जोशहाइड्रोफोबिक से तड़प कर मर जाता है। 

लुई ने मिथक में कहा था, क्योंकि इस मिथक का इस्तेमाल अभी तक किसी व्यक्ति पर नहीं किया गया था। यदि यह प्रयोग असफल होता तो उस बच्चे की जान भी जा सकती थी और नहीं लगाया जाता तो भी बच्चे की जान जाती।



लूई ने लगातार दस दिन तक जोशफ को बढ़ती मात्रा की सुईयां लगाईं। 

इस उपचार से जोशफ " हाइड्रोफोबिक"  से नहीं हुआ।

लुई पाश्चर 

लुई पाश्चर का जन्म 27 दिसंबर 1822 को फ्रांस के डोल नामक जगह पर,नेपोलियन बोनापार्ट के एक व्यावसायिक सैनिक के घर हुआ था।



उनके पिता चाहते थे कि लुई पाश्चर पढ़ लिख कर आगे बढ़े। इसके लिए उनके पिता कर्ज तक लेने के लिए तैयार थे इसलिए लुई ने अर्बोई की एक पाठशाला में प्रवेश लिया,परंतु अध्यापकों के द्वारा सिखाई गई विद्या उनकी समझ से बाहर थी।

इसलिए उन्हें मन्दबुद्धि कह कर चिढ़ाया जाता था। फिर लुई ने अपनी स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वे कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे सब उन्हें बेवकूफ ना समझे।

पिता के जोर देने पर वो पेरिस के बेसाको में अध्ययन करने लगे। उनकी विशेष रुचि रसायन शास्त्र में थी और वो रसायन शास्त्र के विद्वान डॉक्टर डयूमा से विशेष प्रभावित थे।



लुई ने इकॉल नॉर्मल कॉलेज से उपाधि ग्रहण कर, 26 वर्ष की आयु में रसायन के बजाय भौतिक विज्ञान पढ़ना शुरू किया और वो विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बन गए। इसके बाद उन्होंने अनुसंधान कार्य आरंभ कर दिया।


लुई ने अपनी पढ़ाई समाप्त कर एक रसायनशाला में काम करना शुरू कर दिया। यहाँ पर उन्होंने कुछ क्रिस्टलों का अध्ययन किया और कुछ महत्वपूर्ण अनुसंधान भी किए।

लुई पाश्चर की मृत्यु 1895 में निद्रा की अवस्था में ही हो गई थी।

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