24 भारतीय सैनिको ने 1000 चीनी सैनिकों को हराया ?


 फरवरी 1963  की है चीन से लड़ाई के तीन महीने बाद एक लड़की गड़ेरिया अपनी भेड़ों को चराते - चराते चुशूल से रेशंगला की एकदम से उसकी निगाह तबाह हुए बंकरो और इस्तेमाल किए हुए गोलियों के खोलो पर पड़ी।

वो और पास गये तो उसने देखा कि वहां चारों तरफ़ सैनिकों की लाशें ही लाशें पड़ी हुई थी।


जानी मानी सैनिक विशेषज्ञ  और भारतीय सेना के परमवीर चक्र विजेताओं पर किताब " The Brave " लिखने वाली रचना बिस्ट के बताती है कि-

" सिपाहियों के लाशों के हाथों में हथियार ऐसे पड़े हुए थे, डॉक्टर के हाथों में सिरिंज , किसी की हाथों में हथियार वैसे ही पड़े हुए थे ,इं सब से पता चलता है कि वे बहुत बहादुरी से लड़े थे। जो कुछ सैनिक बच कर आए थे।"

वे सारे सिपाही अहीर चार्ली कंपनी से थे।  वे सारे सैनिक राजस्थान के रेवाड़ी से  थे।



लड़ाई से बच गए सैनिक जब अपने गांव रेवाड़ी पहुंचे तो उन्हें और उनके परिवारों को पूरी तरह से बहिष्कृत कर दिया गया था।

गांव के लोगों का कहना था कि  वे सारे कायर थे और युद्ध से भाग कर आए थे।( रेवाड़ी में ज्यादातर पुरुष सेना की तैनाती में है इसलिए)

तब एक एनजीओ ने बहुत बड़ा एक अभियान चलाया ताकि गांव वाले ये जान जाए  की वे सभी ‌सैनिक बहादुर सिपाही थे, कायर नहीं थे।

13 कुमाऊं को चुशूल हवाई पट्टी कि रक्षा के लिए भेजा गया। जिसमें अधिकतर जवान हरियाणा से थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी बर्फ गिरते हुए नहीं देखी थी। उन्हें दो दिन के नोटिस पर कश्मीर के बारामूला कि से वहां लाया गया था और सर्दी में ढालने का मौका ही नहीं मिला था।

                                रामचंद्र यादव
रामचंद्र यादव सात पल्टाओ के  ने खबर दी कि चीन के करीब 400 सैनिक उनकी पोस्ट की तरफ बढ़ रहे है
‌तभी 8 पलटन से रिपोर्ट किया कि इस तरफ़ भी 800 चीनी सैनिक हमारी ओर आ रहे है।

जैसे ही चीनी सैनिक उनकी फायरिंग रेंज में आए
भारतीय सैनिकों ने फायरिंग शुरू कर दी।फिर चीनियों ने 1 घंटे बाद सभी हिन्दुस्तानी चौकियों पर एक साथ फायरिंग शुरू कर दी।

फिर चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर मोर्टर से हमला किया।



इसके बाद चीनि सैनिक याक के ऊपर बैठ कर, और अपना सामान लाद कर भारतीय सैनिकों के पास आ रहे थे और फिर उन्होंने एक- एक सैनिक को मारना शरू किया।

ये भारतीय सैनिकों पर तीसरा हमला था। इस लड़ाई में 120 में से 113 सैनिक मारे गए।




रामचंद्र यादव बहुत ही काम जख्मी होने के कारण बच गए, मेजर शैतान सिंह की लाश को  लेकर वहां से भाग गए।



रिशंगला की लड़ाई को भारत की सैन्य लड़ाइयों में इसे
कुछ सबसे बढ़ी लड़ाइयों में से एक माना जाता है।

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