रावण श्री राम के अलावा कितने लोगों से हारा था ?
रावण एक लगभग अजेय राजा था लेकिन रावण के जीवन काल में कई ऐसे योद्धा थे जिन्होंने रावण को भी हराया था।
अर्जुन माहिष्मती पुरी का राजा था।सहस्त्रबाहु अर्जुन के 1000 हाथ थे जिसकी वजह से उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन के नाम से जाना जाता था।
सहस्त्रबाहु अर्जुन और रावण
अर्जुन ने अपनी हजार भुजाओं का बल आजमाने के लिए नर्मदा के धार के जल को अपनी सहस्त्र भुजाओं से रोका।
जब अर्जुन ने इस तरह से जल की धार को रोका,तब जल उमड़ कर तटों तक जा पहुंचा और जल की धारा भी उल्टी बहने लगी।
जल प्रवाह के कारण नदी के अंदर के सभी मछलियां और मगरमच्छ और पूजा के फूल भी तटों पर बहने लगे।
जल के इस प्रवाह के कारण रावण की पूजा पूरी नहीं हो पाई और उसे अपनी पूजा अधूरे में ही छोड़नी पड़ी।
फिर क्रोध में आकर रावण ने अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। 1000 हजार हाथों वाले अर्जुन रावण और रावण में भयंकर युद्ध हुआ।
इस युद्ध में रावण की हार हुई और अर्जुन ने रावण को बंदी बना कर माहिष्मती पुरी में लेे गए।
फिर पुलस्त्य मुनि माहिष्मती पुरी में गये और अर्जुन से आग्रह किया कि वो रावण को छोड़ दें। अर्जुन ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
कपिलदेव रावण की बात का कोई जवाब दिए बिना एक गुफा के अंदर चले गए।रावण भी उनके पीछे अंदर चला गया और बार - बार युद्ध के लिए कहा।
कपिलदेव ने रावण को किसी पेड़ की भांति उठाकर इतनी जोर से धरती पर पटका जिसके कारण रावण मूर्छित हो गया और जब उसे होश आया तो, कपिलदेव ने रावण को कहा कि तुम यहां से चले जाओ।
क्योंकि तुम्हे मारकर मैं ब्रह्मा जी के वरदान को गलत नहीं करना चाहता हूं और रावण वहां से लज्जित होकर चला गया।
1) सहस्त्रबाहु अर्जुन
रावण नर्मदा नदी के तट पर फूलों से शिव जी की पूजा कर रहा था। उस स्थान से कुछ दूर हट कर अर्जुन (सहस्त्रबाहु अर्जुन) अपनी बहुत सी रानियों के साथ जल विहार कर रहा था।
अर्जुन माहिष्मती पुरी का राजा था।सहस्त्रबाहु अर्जुन के 1000 हाथ थे जिसकी वजह से उन्हें सहस्त्रबाहु अर्जुन के नाम से जाना जाता था।
सहस्त्रबाहु अर्जुन और रावण
अर्जुन ने अपनी हजार भुजाओं का बल आजमाने के लिए नर्मदा के धार के जल को अपनी सहस्त्र भुजाओं से रोका।
जब अर्जुन ने इस तरह से जल की धार को रोका,तब जल उमड़ कर तटों तक जा पहुंचा और जल की धारा भी उल्टी बहने लगी।
जल प्रवाह के कारण नदी के अंदर के सभी मछलियां और मगरमच्छ और पूजा के फूल भी तटों पर बहने लगे।
जल के इस प्रवाह के कारण रावण की पूजा पूरी नहीं हो पाई और उसे अपनी पूजा अधूरे में ही छोड़नी पड़ी।
फिर क्रोध में आकर रावण ने अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। 1000 हजार हाथों वाले अर्जुन रावण और रावण में भयंकर युद्ध हुआ।
इस युद्ध में रावण की हार हुई और अर्जुन ने रावण को बंदी बना कर माहिष्मती पुरी में लेे गए।
फिर पुलस्त्य मुनि माहिष्मती पुरी में गये और अर्जुन से आग्रह किया कि वो रावण को छोड़ दें। अर्जुन ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
2) कपिलदेव
एक बार रावण अपने मंत्रियों के साथ पश्चिम सागर के एक द्वीप (टापू) पुरी पर गया।
वहां रावण की भेट एक पुरूष से हुई जो बहुत बलवान और सुंदर था। उनका नाम कपिलदेव था। रावण ने अपने बल के अहम में चूर कपिलदेव को युद्ध के लिए ललकारा।
कपिलदेव ने रावण को किसी पेड़ की भांति उठाकर इतनी जोर से धरती पर पटका जिसके कारण रावण मूर्छित हो गया और जब उसे होश आया तो, कपिलदेव ने रावण को कहा कि तुम यहां से चले जाओ।
क्योंकि तुम्हे मारकर मैं ब्रह्मा जी के वरदान को गलत नहीं करना चाहता हूं और रावण वहां से लज्जित होकर चला गया।
3) महाराज बलि
महाराज बलि पाताल लोक के रहते थे। एक बार रावण उनसे युद्ध करने की कामना से उनके पास गया और उनसे युद्ध के लिए कहा।
तब बलि रावण को देखकर जोर - जोर से हंसने लगे और फिर राजा बलि ने रावण को अपनी गोद में उठा लिया। फिर बलि
ने कहा कि अच्छा यदि तुम मुझसे युद्ध करना चाहते हो तो
" जमीन पर गिरे उस कान के एक कुंडल को उठा कर मेरे पास लेे आओ जो की मेरे साथ युद्ध करने वाले पूर्व पुरुष का है। तब मैं तुमसे युद्ध करूंगा। "
रावण उस कुंडल को उठाने के लिए गया,लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी रावण उसे नहीं उठा पाया। प्रयास करते - करते रावण मूर्छित हो गया। कुछ समय पश्चात जब उसे होश आया,तब वह बहुत लज्जित हुआ।
फिर रावण ने महाराज बलि की आज्ञा से वापस लंकापुरी की ओर प्रस्थान किया।
" जमीन पर गिरे उस कान के एक कुंडल को उठा कर मेरे पास लेे आओ जो की मेरे साथ युद्ध करने वाले पूर्व पुरुष का है। तब मैं तुमसे युद्ध करूंगा। "
रावण उस कुंडल को उठाने के लिए गया,लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी रावण उसे नहीं उठा पाया। प्रयास करते - करते रावण मूर्छित हो गया। कुछ समय पश्चात जब उसे होश आया,तब वह बहुत लज्जित हुआ।
फिर रावण ने महाराज बलि की आज्ञा से वापस लंकापुरी की ओर प्रस्थान किया।
4) महाराज वालि
वालि किष्किन्धा का राजा था। जिसको ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि वो जिससे भी युद्ध करेगा उसकी आधी शक्ति वालि के पास चली जाएगी।
एक दिन रावण किष्किन्धा नगरी में गया और वालि को युद्ध के लिए ललकारने लगा। तब वालि की पत्नि तारा के पिता और वालि के मंत्री " तार " ने रावण से कहा कि वालि समुद्र पर संध्या पूजन करने के लिए गया है।
इसके बाद रावण पुष्पक विमान से दक्षिण के समुद्र तट पर गया और वहां जाकर चुपचाप वालि को पकड़ने की कोशिश की,पर वालि ने रावण को अचानक ही अपनी कांख (बगल) में दबाकर उत्तर, पूर्व और पश्चिम के समुद्र तट पर अपनी पूजा को पूर्ण किया।
उसके बाद रावण को कांख (बगल) में दबाकर वालि किष्किन्धा नगरी में लौट गया। वहां जाकर वालि ने रावण को छोड़ दिया और फिर रावण ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली।
रावण एक माह तक किष्किन्धा में रहा। फिर वालि और रावण में मित्रता हो गई।


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