प्लास्टिक सर्जरी की शुरुआत भारत में हुई थी ना कि विदेशों में !

महर्षि सुश्रुत

महर्षि सुश्रुत को भारतीय चिकित्सा विज्ञान का जनक माना जाता है। 




महर्षि सुश्रुत के जन्म और काल की बहुत अधिक जानकारी नहीं है लेकिन उनके द्वारा रचित सुश्रुत संहिता के 1200 से 600 ईसा पूर्व की है। जिससे यह पता चलता है कि भारत में शल्य चिकित्सा 3200 ईसा पूर्व भी थी।

प्राचीन मिस्र के लेखों में धन्वंतरी जैसे ही एक देवता का जिक्र मिलता है जिनका नाम थोथ था।

                             थोथ

बहुत से इतिहासकार इन दोनों को एक ही मानते है क्योंकि इन दोनों के समय,कार्य और इनसे जुड़ी कहानियों में बहुत अधिक समानता है। यह प्राचीन भारतीय लिपि ब्राम्ही में लिखी गई थी।

वाग्भट्ट अष्टांगहृदय में भी महर्षि सुश्रुत का काफी वर्णन है।

बोवर मेनुस्क्रिप्ट में 5 वीं शताब्दी में चीन में लिखी गई थी। बोवर मेनुस्क्रिप्ट चीन के टाकला - माकन रेगिस्तान में ब्रिटिश आर्मी के एक ऑफिसर बोवर हैमिल्टन को 1890 में मिली थी।

बोवर मेनुस्क्रिप्ट में महर्षि सुश्रुत को 10 प्राचीन वैदिक ऋषियों में से एक बताया गया है और इनमें भी इन्हें भगवान धन्वंतरी का शिष्य बताया गया है। उन 10 शिष्यों के नाम है - 

1) अत्रि   2) हर   3) परासर   4) भेल   5) गर्ग          6) सम्भाव्य   7) सुश्रुत   8) वशीष्ठ  9) कार्ला        10) कप्य ऋषि ।

यहां इस बात का भी वर्णन किया गया है कि सुश्रुत को चिकित्सा का ज्ञान धन्वंतरि से काशी के गंगा नदी के किनारे मिला था।


सुश्रुत संहिता की 152 ताड़ पत्रो के एक अति प्राचीन लिपि नेपाल में भी मिली है।

जिसे नेपाल के जर्मन स्क्रिप्ट प्रिजरवेशन प्रोजेक्ट के अंतर्गत इसे डिजिटल फॉम में संरक्षित करके रखा गया है। इसकी मूल प्रति आज भी नेपाल के केसर लाइब्रेरी में देखी का सकती है।


12 वीं शताब्दी की मानी जाने वाली यह प्रति लिपि अमेरिका के लॉस एंजेलिस के स्कांउटी म्यूजियम ऑफ आर्ट में संरक्षित करके रखी गई है।



महर्षि सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के 120 से भी अधिक चिकित्सकीय औजार और यंत्रों का आविष्कार किया था,जो आज भी मॉर्डन सर्जरी में प्रयोग किया जाता है।


सुश्रुत संहिता, जिसमें है हर तरह की सर्जरी की जानकारी 

सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी का भी जनक कहा जाता है।



1) पाश्चात्य सभ्यता में इसका श्रेय हेरोल्ड गिलियस को दिया जाता है। हेरोल्ड गिलियस ने पहली सफल प्लास्टिक सर्जरी 1917 में की थी पर महर्षि सुश्रुत  ने यह विधि हेरोल्ड गिलियस से कम से कम 2800 वर्ष पहले ही विकसित कर ली थी।

2) सुश्रुत संहिता में चेहरे की सुंदरता बढ़ाने के लिए की जाने वाली कई शल्य चिकित्सकीय विधियों का उल्लेख है।



3) सुश्रुत संहिता  में 110 से अधिक बीमारियों और 700 से अधिक औषधियों के बारे में बताया गया है।



4) सुश्रुत संहिता का आधुनिक रूप रसायानवेत्ता नागार्जुन  ने पुनः विक्रम संवत् 57  में संपादित किया था।

1) सुत्रस्थान 
2) निदानस्थान
3)शरीरस्थान
4) चिकित्सास्थान
5) कल्पस्थान
6) उत्तरस्थान 

5) अस्थिभंग, कृत्रिम अंगरोपण, प्लास्टिक सर्जरी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, मोतियाबिंद का शस्त्रकर्म, पथरी निकालना, माता का उदर चीरकर बच्चा पैदा करना आदि की विस्तृत विधियाँ सुश्रुतसंहिता में वर्णित हैं।


6) सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग (कैंसर) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं (टिश्युओं) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है।

7) शल्यक्रिया द्वारा शिशु-जन्म (सीजेरियन) की विधियों का वर्णन किया गया है।

8) ‘न्यूरो-सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग-मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य-क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है।

शल्यप्रधान रोगों (आपरेशन से ठीक होने वाले)


जैसे अर्श (बवासिर), भगन्दर (गुदा के पास होने वाला घाव), अश्मरी (मूत्राशय, एवं पित्ताशय की पथरी), मुढ़गर्भ (माँ के गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु), गुल्म (ट्यूमर) आदि रोगों का निदान लक्षण एवं सम्पूर्ण चिकित्सा का वर्णन है।

जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है।


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