भारतीय वैज्ञानिक बीरबल साहनी जिन्होंने जीवाश्म विज्ञान की नीव रखी !
बीरबल साहनी ( 1891 - 1949 )
एक नए जीवाश्म ( फॉसिल ) की खोज जीवन - विकासक्रम के इतिहास की दिशा बदल सकती है। प्रोफेसर बीरबल साहनी को जीवाश्म विज्ञान की नीव रखने का श्रेय जाता है।
प्रारंभिक जीवन
1) बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर ,1891 को भेड़ा में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उनके पिता का नाम रूचि राम साहनी था जो बहुत बड़े वैज्ञानिक थे।
2) बीरबल अपने पिता के साथ अक्सर हिमालय की दूर दराज की पहाड़ियों पर घूमने जाते थे और अपने साथ वनस्पतिशास्त्र की किताब " हुकर्स फ्लोरा " ले जाते थे।
3) बीरबल एक बार जो - जिल्ला दर्रा पार करते हुए उन्होंने कुछ " लाल - स्नो " इकठ्ठी की, बाद में वो एक दुर्लभ किस्म की बर्फ में उगने वाली शैवाल ( एल्जी ) निकली।
शिक्षा
1) बीरबल की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के मिशन और सेंट्रल स्कूल में हुई।
2)1911 में बीरबल ने गवरमेंट कॉलेज , लाहौर से स्नातक की डिग्री हासिल की। उनके पिता रूचि राम साहनी उसी कॉलेज में केमिस्ट्री के प्रोफेसर थे।
3) उसी वर्ष बीरबल ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के इमैन्युअल में दाखिला लिया। 1914 में उन्हें कैंब्रिज से स्नातक की डिग्री मिली।
4) जवाहर लाल नेहरु कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में बीरबल की कक्षा में थे।
किताब
बीरबल के शोध कार्य की परिणित जे. सी. विलिस के साथ मिलकर लिखी एक किताब का " लाॅसन्स टेक्सबुक ऑफ बॉटनी " के प्रकाशन के रूप में हुई।
सम्मान
1) बीरबल की कई क्षेत्रों में रूचि थी। उन्होंने प्राचीन भारतीय सिक्के बनाने की विधि पर शोध किया और इसके लिए उन्हें 1945 में न्यूमिस्मैटिक सोसायटी ऑफ इंडिया ने नेल्सन राइट मेडल से सम्मानित किया।
2) सिक्को पर शोधकार्य करते हुए, उन्हें भू - शास्त्र का भी गहरा ज्ञान हो गया। उनके शोध ने " डेक्कन ट्रैप " और हिमालय के उठान पर भी प्रकाश डाला।
3) पैलो - बॉटनिकल सोसायटी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के एक छोटे से कमरे में ही अपना काम आरंभ किया।
4) 1948 में राज्य सरकार ने इस नई संस्था के लिए एक जमीन आवंटित की। संस्था की नीव 3 अप्रैल, 1949 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रखी।
मृत्यु
बीरबल साहनी ने इस अवसर पर संस्था का पहला भाषण दिया,जो दुर्भाग्य से उनका अंतिम भाषण भी था।
एक सप्ताह बाद 9 अप्रैल ,1949 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।



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