सलीम अली की कार्य और उनकी लिखी किताबें !

कार्य

1) 1930 में अच्छी नौकरी न मिलने की वजह से वो बंबई के निकट एक तटवर्ती गांव किहिम में बस गए। वहां उन्होंने मचान से " बया पक्षियों " का सूक्ष्म अवलोकन और अध्ययन किया।


" बया पक्षियों " के प्रजनन संबंधी जीवशास्त्र ने उन्हें एक विश्व - स्तरीय पक्षी निरीक्षक के रुप में स्थापित किया।


उन्होंने पाया कि नर " बया " ही घोंसला बनाता है। फिर एक दिन मादा " बया " आकर आधे बने घोंसले और अपने पति का भार संभालती है। " बया " के हजारों शिशु सिर्फ छोटे कीड़े खाते है क्योंकि वे सख्त अनाज को हजम नही कर सकते।


इसलिए व्यस्क " बया " पक्षी हानिकारक कीड़े मकौड़ों की आबादी को काबू रखने में एक अहम भूमिका निभाते है।


2) सलीम अली ने आर्थिक वनस्पतिशास्त्र के विषय को हरेक कृषि विश्वविद्यालय में पढाएं जाने की सिफारिश की।


3) सलीम अली पक्षियों का निरीक्षण बाॅयनाॅक्यूलर से ही किया , कभी - कभी वो पक्षी पहचानने के लिए पकड़ते। उनके पैर में एक निशानी - छल्ला (रिंग) फंसा कर उन्हें छोड़ देते।


पैर में एक ' रिंग ' से पक्षियों की यात्राओं के बारे में ठोस जानकारी मिलती।


4) उनके अध्ययनों से फ्लावर - पेकर और सनबर्डस द्वारा मिसलटो (बांधा) के परागण और बीज प्रसार के बारे में प्रमाणित जानकारी मिली।


5) उन्होंने कच्छ खाड़ी में फ्लेमिंगो पक्षियों का गहन अध्ययन किया।


6) उन्होंने हैदराबाद , ट्रैवेंकोर, कोचीन, अफगानिस्तान , कैलाश मानसरोवर , कच्छ , मैसूर, गोवा, सिक्किम , भूटान और अरुणाचल प्रदेश के पक्षियों का प्रांतीय सर्वेक्षण भी किया।


7) उन्होंने दिखाया की जल - पक्षियों की कई प्रजातयां पलायन कर साइबेरिया तक जाती है। 


8) 200 साल पुरानी संस्था बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के जीवित रहने के लिए खुद पंडित नेहरू को पत्र लिखकर आर्थिक अनुदान की अपील की।


किताबें 

1) 1941 में उन्होंने बुक्स ऑफ इंडियन बर्ड्स , द बर्ड्स ऑफ कच्छ , इंडियन हिल बर्ड्स , बर्ड्स ऑफ केरला , बर्ड्स ऑफ सिक्किम लिखी।




2) उन्होंने दस खंडो की " फील्ड गाइड टू द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान " लिखी।


3) पक्षियों पर उनकी अंतिम किताब " गाइड टू द बर्ड्स ऑफ ईस्टर्न हिमालयास " 1977 में छपी।




4) 1985 में सलीम अली ने अपनी जीवनी " द फॉल ऑफ द स्पैरो " लिखी।


5) सलीम अली की सिफारिशों और प्रयासों की वजह से केरल में साइलेंट वैली और भरतपुर पक्षी अभयारण्य सुरक्षित रह पाए।


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