जी. एन. रामचंद्रन के महत्वपूर्ण कार्य !
1) सी. वी. रमन ने रामचंद्रन को लॉर्ड रैले द्वारा सुझाई एक कठिन समस्या का हल खोजने को कहा। एक ही दिन में रामचंद्रन ने इस समस्या की समीकरणे लिखीं और उनका हल ढूंढ निकाला। इससे सी. वी. रमन बहुत प्रभावित हुए।
2) सी. वी. रमन के मार्गद्शन में ऑप्टिक्स और एक्स - रे टोमिग्राफी के क्षेत्र में शोधकार्य किया।
3) 1947 में रामचंद्रन इंग्लैंड की कैविंडिश लैबोरेट्री में शोधकार्य करने गए। इस प्रयोगशाला के प्रमुख सर लौरेंस ब्रैग थे।
4) कैंब्रिज में उन्होंने डब्लू. ए. वुस्टर और एच. लैंग के साथ क्रिस्टलोग्राफी पर काम किया। यहां उन्होंने क्रिस्टलस इलास्टिक कंटस्टेंट मापने के लिए एक गणितीय थ्योरी भी विकसित की।
5) 1949 में रामचंद्रन को कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने पीएचडी प्रदान की। कैंब्रिज के ही दौरान रामचंद्रन की भेंट प्रसिद्ध वैज्ञानिक लॉइनस पॉलिंग से हुई। वे पॉलिंग के भाषणों और पेप्टाइड चेंस के मॉडल्स से अत्यंत प्रभावित हुए।
6) 1949 में इंग्लैंड से लौटने के बाद रामचंद्रन ने 1952 तक फिसिक्स का अध्यापन किया। उसी समय मद्रास यूनिवर्सिटी के उपकुलपति और दूरदर्शी सर सी. वी. रमन को आमंत्रित किया गया।
रमन ने उस पद के लिए रामचंद्रन की सिफारिश की। इसलिए 1952 में मात्र 29 साल की आयु में रामचंद्रन मद्रास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर का पद मिला।
7) सर मुदलियार की उदार सहायता से रामचंद्रन मद्रास यूनिवर्सिटी में एक विश्व स्तरीय एक्स - रे क्रिस्टलोग्राफी की प्रयोगशाला स्थपित करने में सफल हुए।
कोलेजन बहुमात्रा में पाया जाने वाला एक प्रोटीन टिशु (उत्तक) होता है।
इसके लिए उन्होंने कंगारू की पूंछ के टेंडन से कोलेजन के नमूने उपयोग किए। इस कार्य में उनके पोस्ट ग्रेजुएट छात्र गोपीनाथ कर्था ने उनकी सहायता की।
बहुत मेहनत के बाद वे कोलेजन के तंतुओं के एक्स - रे डिफ्रैक्शन पैटर्नस पाने में सफल हुए।
अपने प्रयोगों के आधार पर गेंदों और सींकों से कोलेजन के मॉडल का ढांचा तैयार किया।
1954 में उनका ये शोध नेचर नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका में छपा। बाद में उन्होंने इस मॉडल को संशोधित कर एक नए और मशहूर " काइल्ड स्ट्रक्चर " का ढांचा बनाया।
इसके द्वारा सभी पॉली - पेप्टाइड ढांचों को समझा जा सकता है। इन खोजों का स्टीरयो केमिस्ट्री और जीवविज्ञान जैसे विषय पर प्रभाव पड़ा।
10) 1970 में मद्रास यूनिवर्सिटी से इस्तीफा देने के बाद रामचंद्रन ने दो साल यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के बायो - फिजिक्स विभाग में बिताए।
इन दो सालों में उन्होंने दो - आयामों आंकड़ों से तीन - आयामी चित्र रचने की नई विधि का आविष्कार किया। जो बाद में कंप्यूटर टोमोग्राफी का आधार बनी।
11) शिकागो से लौटने के बाद रामचंद्रन ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस में मॉलक्यूलर बायो - फिजिक्स यूनिट (एमबीयू) स्थपित किया।
12) 1977 में उन्होंने फोर्गटी प्रोफेसर की हैसियत से नैशनल इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ , बेथेस्डा, मेरीलैंड अमेरिका में काम किया।
13) 1978 में वो एमबीयू से रिटायर हुए। इसके बाद भी वो आईआईएससी में 1989 तक मैथमैटिकल फिलोसॉफी के प्रोफेसर जैसे काम करते रहे।



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