भारतीय वैज्ञानिक औतार सिंह पेंटर के किए कुछ कार्य !
1) औतार सिंह ने मानवीय विद्युतीय संवेदना मापने की एक नई इंडेक्स बनाई। शुरुआती दौर में शोध कर्ताओं ने इस "पेंटर इंडेक्स " का खूब उपयोग किया।
औतार सिंह " किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज " में ही रहे और बाद में वहीं पर शरीर - विज्ञान पढ़ाने लगे।
2) बाद में उन्हें एडिनब्रा मेडिकल स्कूल में पीएचडी करने के लिए रॉकेफेलर स्कॉलरशिप मिला। यहां पर उन्होंने जे - रिसेप्टर्स को खोजा।
उस समय किसी तंत्रिका के एक रेशे को उसकी सक्रियता खत्म किए बिना विच्छेदित करना बहुत मुश्किल काम था।
उन्होंने एक नया तरीका खोजा जिसमें उन्होंने पुरी तंत्रिका को तरल पैराफिन में डुबोया और फिर बिना सक्रियता खोए एक - एक रेशे को अलग किया।
3) 1953 में औतार सिंह भारत लौटे और उन्होंने कानपुर की डिफेंस लैबोरेट्री में कार्य शुरू किया। वहां 5 वर्ष काम करने के बाद उन्होंने शरीर - विज्ञान के शोधकर्ता के रूप में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) में काम शुरू किया।
4) 6 वर्ष बाद वो बल्लव भाई पटेल चेस्ट हॉस्पिटल के निदेशक बने और इस पद पर वो 1990 तक बने रहे।
5) वे इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के डायरेक्टर - जेनरल के पद पर रहते हुए भी उन्होंने पटेल हॉस्पिटल स्थित अपने दो कमरों की प्रयोगशाला में शोधकार्य जारी रखा।
6) औतार सिंह जे - रिसेप्टर्स के लिए प्रसिद्ध है। यह शब्द उन्होंने ही इजाद किया और उस पर उन्होंने गंभीर शोध भी किए।
हमारे हृदय और तंतुओं का एक विशाल जाल होता है जो स्थानीय परिवेश में रासायनिक अथवा यांत्रिक बदलाव होने पर तुरन्त सिग्नल भेजते है।
उन्होंने दिखाया की जे - रिसेप्टर्स ही अनैच्छिक क्रियाओं के जिम्मेदार होते है और उनसे ही मांशपेशियों की वर्जिश सीमा निर्धारित होती है।
इस तरह का वापसी फीडबैक वर्जिश के दौरान मांशपेशियों की सुरक्षा के लिए जरूरी होता है।
जे - रिसेप्टर्स की खोज को दुनिया भर में बहुत वाहवाही मिली।
औतार सिंह जे - रिसेप्टर्स के अलग अलग पक्षों पर शोध करते रहे , जिसमें ऊंचे पहाड़ों पर शरीर - विज्ञान एवं बहुत श्रम के बाद सांस फूलने जैसी स्थितियां शामिल थी।
इस शोध ने ऊंची पहाड़ियों पर कार्यरत भारतीय फौजी कैसे वहां की परिस्थितियों से अभ्यस्त होते है इस बात पर प्रकाश डाला।
ऊंची प्रशासकीय पदों की चमक धमक की ओर औतार सिंह कभी - कभी आकर्षित नहीं हुए।
7) औतार सिंह ने सोसायटी फॉर साइंटिफिक वैल्यूज (एसएमएस) नाम की संस्था स्थापित की थी। यहां टीम वैज्ञानिक धोखाधड़ी के केसों की अपने पैसों से जांच पड़ताल कर सच्चाई तक पहुंचने का भरसक प्रयास करती थी। आज बहुत से लोग और जानी मानी संस्थाएं इस टीम की सहायता लेते है।
8) अपने 50 साल के शोधकाल में उन्होंने 400 से अधिक शोधपत्र लिखे। उनके अनुसंधान का बायोमेडिकल साइंस पर काफी प्रभाव पड़ा और शरीर - विज्ञान (फिजियोलॉजी) के क्षेत्र में तो उनका योगदान अद्वितीय है।
9) 2004 तक उनके शोधपत्रों का 3672 बार उल्लेख हुआ।



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