भारतीय वैज्ञानिक वी. रामालिंगास्वामी ! - भाग 2

 कार्य

9) रामालिंगास्वामी गरीब देशों में बीमारियों के कारणों को समझना और शोध द्वारा उनके उपचार खोजना चाहते थे।

10) जिन भिन्न क्षेत्रों में उन्होंने मौलिक शोधकार्य किया वो है - प्रोटीन ऊर्जा और कुपोषण का सम्बन्ध , आयोडीन का अभाव , कुपोषण द्वारा खून की कमी और गर्म देशों में यकृत की बीमारी आदि।


11) देश के विकास के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य - सेवा , संक्रामक रोगों और स्वास्थ्य अनुसंधान में रामा की रूचि थी।


12) 1967 के बिहार अकाल और 1971 के बांग्लादेश युद्ध में हजारों - लाखों लोग कुपोषण से बच पाए।


13) घेघा रोग (थायराइड से गला फूलना ) के अत्यधिक प्रचलन के कारण रामा ने समुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्लासिक प्रयोग किया।

इसमें कांगड़ा पहाड़ियों में रहने वाले एक लाख से अधिक लोगों का सर्वेक्षण शामिल था। आयोडीन युक्त नमक खाने से इस बीमारी में भारी कमी आयी।

इसी शोधकार्य ने ही राष्ट्रीय आयोडीन अभाव नियंत्रण कार्यक्रम की नीव रखी, जिससे 30 करोड़ से ज्यादा लोगों को इस रोग से सुरक्षा मिली।


14) रामालिंगास्वामी ने गर्भवती माताओं में लोहे (आयरन) की कमी को पूरा करने के लिए सफलतापूर्वक लौह - पूरक शूरू किए।


15) रामालिंगास्वामी ने नई खोज की - यकृत की एक बीमारी जो की " इंडियन चाइल्डहुड सिरौसिस " के नाम से जानी जाती है।


16) विटामिन - ए की कमी से अंधापन होता है, यह तथ्य तो बहुत पहले ही मालूम था। रामालिंगास्वामी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस विषय पर गंभीर अध्ययन किया और उनकी पुष्टि की।

उन्होनें बंदर माताओं में विटामिन - ए की कमी से उनके बच्चों के रेटिना के रॉड्स और कोंस को हुए नुकसान का अध्ययन किया।


17) ऑल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (ऐम्स) की स्थापना के समय रामालिंगास्वामी पैथालॉजी विभाग में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए।




जल्द ही वे इस विभाग के प्रमुख बने और उन्होंने एक उच्च दर्जे का पैथालॉजी स्कूल स्थापित किया। बाद में रामालिंगास्वामी ऐम्स के निदेशक बने।


18) इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल  रिसर्च (आईसीएमआर) को स्थापित करने में रामालिंगास्वामी ने अहम भूमिका निभाई और 1979 को वो उनके डायरेक्टर - जनरल बने।


19) नई संस्थाए स्थापित करने के साथ - साथ उन्होनें रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर्स की नीव रखी। जिससे कि दूर दराज के स्थित क्षेत्रों की स्थानीय बीमारियों पर प्रांतीय स्तर पर शोध कार्य हो सके।


20) उन्होनें आईसीएमआर का पुनर्गठन किया। उन्होनें देश में रोग विज्ञान (एपीडिमियाॅलोजी) के शोध पर अधिक बल दिया और इंडियन रजिस्ट्री ऑफ डिजिजीस की स्थापना की , जिसमें आंकड़ों के विश्लेषण के लिए एक सांख्यिकीय विभाग का प्रावधान भी था। इसी से आईसीएमआर में एक स्वतंत्र सांख्यिकी विभाग स्थापित हुआ।





21) भोपाल गैस काण्ड से निपटने और गैस कांड पीड़ितों पर वैज्ञानिक जानकारी एकत्रित करने के लिए रामालिंगास्वामी ने तमाम संस्थागत और व्यक्तिगत साधन जुटाए। सूरत शहर में हैजे के दौरान भी उन्होनें सहायता की।


22) रिटायर होने के बाद रामालिंगास्वामी हारवर्ड विश्वविद्यालय ने पहले फोगर्टी प्रोफेसर और बाद में एक विशिष्ट विष - वैज्ञानिक (टॉक्सीकॉलजिस्ट) के रुप में आमंत्रित किया।

इसके बाद उन्होंने 5 वर्ष तक यूनिसेफ के साथ काम किया।


23) वो राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं जैसे - राजीव गांधी फाउंडेशन , कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट , सेंटर फॉर साइंस
एंड एन्वायरमेंट और रनबख्शी फाउंडेशन खास है।


24) अपने जीवन के अंतिम दिन तक वो नई दिल्ली स्थित ऐम्स में नैशनल प्रोफेसर की हैसियत से काम करते रहे।


सम्मान और पद

1) रामालिंगास्वामी को भटनागर और पद्म भूषण दोनों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।


2) रॉयल सोसायटी की फेलोशिप (एफआरएस) और तीनों भारतीय विज्ञान एकेडमीयों के वे सदस्य थे।


3) स्वीडन की कारोलिंसका यूनिवर्सिटी में उन्हें डॉक्ट्रेट की डिग्री दी।


4) 1979 - 80 में वो इन्सा के अध्यक्ष और वो नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज, अमेरिकी और रूसी सर्जन्स के फेलो भी थे।


5) रामालिंगास्वामी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ग्लोबल एडवाइजरी कमेटी ऑन मेडिकल रिसर्च  के चेयर मैन थे।

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