बी. पी. पाल द्वारा किए गए विशेष कार्य !
1) अपने शोध में पाल ने पहली बार गेहूं कि संकर प्रजातियों की संभावनाओं को उजागर किया।
2) 1933 में उन्होंने बिहार स्थित पुसा में इंडियन (इंपिरियल) एग्रीकल्चरल इंस्टीटयूट में काम करना शुरू किया।
3) 1937 में पदोन्नति के बाद वो वही इंपिरियल इकनॉमिक वाॅटानिस्ट बने।
4) 1936 के भूकंप में पूसा इंस्टीटयूट बुरी तरह ध्वस्त हो गई और उसे दिल्ली शिफ्ट किया गया, तब पाल भी दिल्ली आए।
5) 1960 में खाद्यान्यों की बेहद किल्लत के कारण सारी दुनिया भारत को भुखमरों का देश मानने लगी थी।
उस दौरान हजारों लाखों भारतीय अमेरिका द्वारा पीएल - 480 में दान दिए खाद्यान्यों की वजह से ही जिंदा बच पाए।
पाल के नेतृत्व में शुरू हुई हरित क्रांति देश में एक अभूतपूर्व परिवर्तन लाई और धीरे - धीरे करके भारत एक भूखे देश से एक खाद्यान बाहुल्य देश बना।
6) पाल ने कृषि के जिन पांच क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान थे - अनुसन्धान , शिक्षा , कृषि विस्तार , संस्था निर्माण और अंतराष्ट्रीय सहयोग।
7) अनुसन्धान के क्षेत्र में पाल का प्रमुख कार्य बहुरोगी कीट निरोधी गेहूं की संकर प्रजातियों का निर्माण करना था।
कृषि उत्पादन जैविक विविधता के संतुलित विकास द्वारा ही बढ़ेगा।
8) वैज्ञानिक पद्धति द्वारा नए जींस खोजने के लिए उन्होंने "प्लांट इंट्रोडक्शन डिविजन " की स्थापना की।
बाद में यही विभाग " नैशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज " बना।
9) उन्होंने उच्च तकनीकों का उपयोग कर आलू , टमाटर और तंबाकू की नई - नई प्रजातियां विकसित की।
इसके लिए उन्होंने विभिन्न संस्थाओं के बेहतर वैज्ञानिकों कि मदद की।
10) भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्था में उच्च शिक्षा के लिए पोस्ट - ग्रेजुएशन स्कूल स्थापित किया। जल्द ही उसे यूनिवर्सिटी ग्राॅन्टस कमिशन ने एक यूनिवर्सिटी का दर्जा प्रदान किया।
इस संस्था से निकले 4000 से भी अधिक एमएससी और पीएचडी के शोधकर्ताओं ने भारत की सैकड़ों करोड़ जनता का खाना उपलब्ध कराया और साथ - साथ देश को खाद्यान्यों में आत्म निर्भर बनाया।
11) पाल उपयोगी व्यावहारिक अनुसन्धान के लिए उत्तम गुणवत्ता के बुनियादी शोध को एकदम जरूरी मानते थे। इसके लिए उन्होंने इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटयूट (आईएसआरआई ) में स्कूल ऑफ फंडामेंटल जेनेटिक्स की स्थापना की।
12) उन्होंने किसानों की समस्याओं के निदान के लिए कई संस्थाओं के साथ बहुविषयी शोधकार्य की शुरुआत की। (आईएसआरआई ) के निदेशक की हैसियत से उन्होंने अनुसन्धान , शिक्षा और विस्तार के काम को बहुत आगे बढ़ाया।
13) पाल ने 1965 - 72 तक इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च के डायरेक्टर - जनरल के पद पर भी काम किया।
इसी काल में गेहूं , बाजरा और मक्का की उच्च पैदावार देने वाली संकर प्रजातियां बड़े पैमाने पर किसानों को बोने के लिए उपलब्ध हुई।
14) हरित क्रांति को और बढ़ावा देने के लिए पाल ने कृषि से जुड़े जानवरों और मछलियों के अनुसंधान पर बल दिया।
15) इस दौर में भारत ने विश्व की सर्वश्रेष्ठ अनुसन्धान संस्थाओं के साथ हाथ मिलाया और मिलकर शोधकार्य किया - मेक्सिको के साथ गेहूं पर और फिलीपींस के साथ धान पर।
16) शोधकार्य पर पाल का नारा था "खेत की समस्याओं को सुलझाओं"
'प्रयोगशाला से खेत तक ' उनका दूसरा नारा था जिसे क्रियान्वन करने के लिए पाल ने काफी मेहनत की।
17) आईसीएआर का यह संशोधित मॉडल इतना सफल हुआ कि उसे कई विकासशील देशों - पाकिस्तान , बांग्लादेश ,फिलीपींस और नाइजीरिया ने खुशी से अपनाया।
18) रिटायर होने के बाद भी पाल ने अपनी सारी ऊर्जा पर्यावरण संरक्षण के काम के लिए लगाई।
19) वी नेशनल कमेटी ऑन इन्वायरमेंटल प्रोटेक्शन एंड कोऑर्डिनेशन के पहले चेयरमैन बने।
20) पाल एक उच्च कोटि के प्लांट - ब्रीडर थे और उन्होंने गुलाब की कई नयी प्रजातियों का आविष्कार किया।
21) वो रोज और बोगनवेलिया सोसायटी के भी अध्यक्ष थे।
22) प्रसिद्ध वैज्ञानिक एम. एस. रंधावा के साथ मिलकर उन्होंने चंडीगढ़ का रोज - गार्डन स्थपित किया।
23) पाल ने इंडियन सोसायटी ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग की स्थापना की और जेनरल ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग को 25 वर्ष तक संपादित किया।



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