भारतीय वैज्ञानिक बीरबल साहनी के द्वारा किए गए खोज और कार्य !

कार्य

1) जीवाश्म संबंधी शोधकार्य के लिए बीरबल को 1919 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने डी एस सी की डिग्री प्राप्त की।


2) 1920 में उनकी " थीसिस फिलौसाफिकल ट्रांजैक्शन " नामक शोध पत्रिका में छपी। तब तक बीरबल का नाम वनस्पतिशास्त्र के एक मौलिक चिंतक के रूप में उभरा था।




3) कैंब्रिज प्रवास के दौरान बीरबल की अपने शिक्षक प्रोफेसर सीवर्ड से गहरी दोस्ती हो गई। 

प्रोफेसर सीवर्ड को जब कुछ भारतीय जीवाश्म के नमूने अध्ययन के लिए भेजे गए , तो उन्होंने उसे यह कहकर लौटा दिया कि उन पर शोध करने के लिए बीरबल साहनी भारत में मौजूद है।


4) 1921 में बीरबल नए खुले ,लखनऊ विश्वविद्यालय में वनस्पतिशास्त्र विभाग में पहले प्रोफेसर बने।



5) बीरबल बीएससी के छात्रों को पढ़ाते और उनकी प्रैक्टिकल में भी मदद करते थे।

6) बीरबल ने इस बात का भी अध्ययन किया कि

 " चावल एवं अन्य खाद्यानों की खेती सिंधु घाटी सभ्यता में कैसे की जाती थी ?"

 जिससे कि पुरातत्व और वनस्पतिविज्ञान पर प्रकाश पड़ा।


7) रोहतक के निकट स्थित खोपरा कोट के टीलों में उन्हें "चावल के भूसी की छाप मिट्टी में मिली "  जिससे उनकी इस धारणा को बल मिला , कि उस किस्म का चावल 2000 वर्ष पहले मौधी जनजाति द्वारा बोया जाता था।


8) रोहतक के निकट मिले कुछ " सिक्को के सांचोंं"  पर अनुसंधान करने के बाद उन्होंने रोहतक नाम की वितपत्ती ढूंढने का प्रयास किया और शोध करने पर पाया कि इस जगह का नाम एक पौधे पर रखा गया था।


9) बीरबल ने प्राचीन भारत में सिक्कों के ढालने की विधि का भी विस्तार पूर्वक अध्ययन किया। जिसके लिए उन्हें 1945 में मुद्रा शास्त्रीय सभा का नेल्सन राइट पदक मिला।


10) सिक्कों का शोध कार्य करते हुए उन्हें भू - शास्त्र की भी गहरा ज्ञान हो गया। उनके शोध ने " डेक्कन ट्रैप " और हिमालय के पठार पर भी प्रकाश डाला। 


11) बीरबल ने भारतीय पैलो - बॉटनी के लगभग सभी पक्षों पर काम किया। 


12) बिहार की राजमहल पहाड़ियों से बहुत से पौधों के जीवाश्म एकत्रित किए। यहां उन्होंने जीवाश्मों का एक नया समूह खोजा और उसे " पेंटोजायलेई "  नाम दिया।


13) उन्होंने ही इंडियन बॉटनिकल सोसायटी की स्थापना की।

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