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बेगम हजरत महल

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(1820 - 1879) नवाब वाजिद अली शाह की 36 वीं बेगम  प्रारंभिक जीवन इनका जन्म 1820 में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले के एक छोटे से गांव में बेहद गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में इन्हें मुहम्मद खातून (मुहम्मद खानम) या उमराव कहते थे। पिता मजरुद्दीन थे,जो फर्रुखाबाद के नवाब गुलाम हुसैन के सेनापति और इनकी मां महर अफसा नेपालशाही सेना के सेमापति की बेटी थी। इनके माता - पिता का देहांत चेचक के कारण हो गया था। इसके बाद इनकी बुआ ने इन्हें बेच दिया था।  विवाह   इनका विवाह वाजिद अली शाह से हुआ था।  शादी के बाद इन्हें नवाब ने महक परी बेगम की पदवी दी गई।  1846 में बेटे के जन्म के बाद इन्हें  इत्तेखार उल्लीसा बेगम  की पदवी और  बेगम हजरत महल  का नाम भी वाजिद अली ने दिया।  रमजान में पैदा होने के कारण इनके बेटे को रमजान कहा गया, लेकिन वाजिद अली ने अपने बेटे का नाम मिर्जा बिरजिसकद्र रखा।  बेगम की महिला सैनिक दल बेगम हजरत महल के सैनिक दल में कई महिलाएं भी शामिल थी जिसका नेतृत्व रहीमी बी करती थी। इनका साथ देने वाली अन्य विरांगाएं रनवीरी वाल्मीकि, सहेजा वाल्मीक...

सौ अश्वमेध यज्ञ

 ✳️मनु वंशी कृशाश्व के सोमदत्त नामक पुत्र हुआ, जिसने सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। उससे जनमेजय हुआ और जनमेजय से सुमति का जन्म हुआ। ये सभी विशालवंशीय राजा हुए।  ✳️राजा पृथु ने एक सौ अश्वमेध यज्ञ का आयोजन का निश्चय किया। ✳️राजा युवनाश्व ने 1000 अश्वमेध यज्ञ किये थे।  ✳️इक्ष्वाकु के पुत्र निमी ने एक सहस्त्र वर्ष में समाप्त होने वाले यज्ञ का आरंभ कि या ।

पार्वती गिरी (1926 - 1995)

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  जिन्हें उड़ीसा की मदर टेरेसा भी कहा जाता था।  प्रारंभिक जीवन  इनका जन्म 19 जनवरी,1926 को ओडिशा के संबलपुर जिले के " समवाईपदार गांव"  में हुआ था।  इनके पिता धनंजय गिरी गांव के प्रमुख और उनके चाचा कांग्रेस के नेता थे। इस कारण स्वतंत्रता सेनानी उनके घर अक्सर आते थे। इसी कारण उनके अंदर भारत को आजादी दिलाने की बात छोटी सी उम्र में ही, उनके मन में घर कर गई।  उनकी प्रारंभिक शिक्षा केवल तीसरी कक्षा तक हुई थी।  स्वतंत्रता आंदोलन उन्हें ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों और बरगढ़ की अदालत में सरकारी विरोधी नारे लगाने की वजह से दो साल की जेल हुई, लेकिन नाबालिक होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया। एक समाजसेविका भारत के आजाद होने के बाद 1950 में पार्वती ने अपनी बची हुई स्कूली शिक्षा  इलाहाबाद के प्रयाग महिला विद्यापीठ  से पूरी की। इसके बाद पार्वती 1954 में रमा देवी के साथ राहत कार्यों में भाग लेने लगी। 1955 में संबलपुर जिले में रहने वाले लोगों के स्वास्थ और स्वच्छता में सुधार करने के लिए अमेरिकी परियोजना से जुड़ी। इसके बाद पार्वती ने अनाथ बच्चों के लिए " ...

इंद्र देव ने घोड़े की चोरी क्यों की ?

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महाराज वेन देवताओं में विश्वास नहीं करते थे। इसलिए बहुत समझाने पर भी उन्होंने यज्ञ की अनुमति नहीं दी। जिसके बाद ऋषियों ने वेन की भुजाओं का मंथन किया जिससे उनके पुत्र पृथु की उत्पत्ति हुई। जहाँ पश्चिम वाहिनी गंगा प्रवाहित होती है वहाँ ब्रह्मा और मनु का ब्रह्मवैवर्त क्षेत्र है। वहाँ राजा पृथु ने एक सौ अश्वमेध यज्ञ का आयोजन का निश्चय किया।  देवराज इंद्र को भय हुआ कि यदि ये यज्ञ संपन्न हो गया तो मेरा सिंहासन पर रहना संभव नहीं हो पाएगा।  इंद्र ने यज्ञ को भंग करने की योजना बनायी और जब पृथु का 100 वां यज्ञ हो रहा था तब इंद्र ने वेश बदल कर दान के लिए रखे, एक अश्व को चुरा लिया। तब पृथु के पुत्र ने इंद्र का पीछा किया और अश्व को वापस ले आए, लेकिन इंद्र ने फिर से अश्व को चुराने की कोशिश की। इससे क्रोधित होकर पृथु ने इंद्र को मारने के लिए धनुष उठा लिया तब ऋषियों ने उनसे कहा कि यदि आप बाण चलाएंगे तब देवराज के साथ पूरा देवलोक भी नष्ट हो जाएगा।  हम यज्ञ द्वारा ही इंद्र को बुलाकर इसी अग्नि में भस्म कर सकते है और उन्होंने ऐसा ही किया। लेकिन जैसे ही इंद्र अग्नि कुंड में प्रवेश करता ब्रह्मा ...

विश्व के सभी साँपों को मारने के लिए यज्ञ किसने किया ?

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महाभारत के वन पर्व में जनमेजय सर्प यज्ञ की कथा का वर्णन है। श्रृंगी ऋषि ने परीक्षित को श्राप दिया कि तक्षक नाग क्रोध करके अपने विष से सात दिन के भीतर ही जला देगा। ऋषि पुत्र के श्राप के कारण तक्षक नाग ने परीक्षित को काटा और उनकी मृत्यु हो गई।  परीक्षित ने अपनी मृत्यु से पहले शुकदेव जी से सात दिन तक भागवत कथा सुनी। उन्हें तो ऋषि पुत्र या नाग जाती से कोई द्वेष न था, उन्होंने तो यह समझा कि जैसे कर्म मैंने किया है, उसी के अनुरुप फल मुझे मिल गया है।  इसमें किसी दूसरे का दोष नहीं है लेकिन परीक्षित के पुत्र जनमेजय इस विचार धारा से सहमत नहीं थे। उन्होंने समस्त नाग जाति का समूल नाश करने के लिए सर्प यज्ञ करवाया। ऋषियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि इस यज्ञ के मंत्रों से विश्व के हर कोने से सर्पो को आकर्षित करके हवन कुंड में भस्म किया का जा सकता है। जनमेजय का तांत्रिक सर्प यज्ञ आरंभ हो गया, अभिचारिक कर्म के नियमों का पालन करते हुए ऋत्विक काले वस्त्र ग्रहण किए हुए थे, धुएं से उनके नेत्र रक्त वर्ण से हो रहे थे। अग्नि में विधि विधान के अनुसार आहुतियाँ दी जाने लगी उससे प्रभावित होकर सर्पों के मन ...

पांडवों को हजारों को भोजन कराने वाला पात्र किसने दिया ?

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💠महाभारत वन पर्व के अनुसार जब पांडवों को वनवास हुआ और वे वन में जाकर रहने की तैयारी करने लगे तब प्रेम वश नगर वासी उनके साथ जाकर रहने को तैयार थे।  💠तब उन्होंने अधिकांश प्रजा को समझा बुझा कर वापस भेज दिया,परन्तु शौनक आदि ब्राह्मण किसी भी प्रकार लौटने के लिए तैयार न हुए। 💠पांडव उनके भोजन की व्यवस्था कैसे करें, ये समस्या लेकर युधिष्ठिर धौम्य ऋषि के पास गए और कहा कि इतने लंबे समय तक इन सभी के भोजन की व्यवस्था कैसे हो पाएगी।  💠तब धौम्य ऋषि ने कहा कि जब - जब भी प्रजा पर अन्न संबंधी कष्ट आए है, उसे सूर्य भगवान की आराधना से दूर किया जा सका है। 💠धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को मंत्र के साथ "सूर्याष्टोतरशतनाम स्त्रोत " का पाठ करने की प्रेरणा दी। ये स्त्रोत नृसिंह पुराण, अध्याय 20, स्कंद, कुमारि० ४२, ब्रह्मपुराण तथा महा०, वन० ३/१६ - २८ में वर्णित है।  💠युधिष्ठिर की उपासना से भगवान सूर्य प्रसन्न हुए और एक तांबें का परोसने वाला पात्र उन्हें दिया और कहा कि जब तक द्रौपदी स्वयं बिना खाए हुए इस पात्र से परोसती रहेगी, तब तक हजारों व्यक्तियों के लिए भी यह भोज्य पदार्थों का भंडार प्रस्तुत कर...

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या माँगा ?

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⚜️महाभारत वन पर्व के अनुसार पांडव कौरवों से जुए में हारकर वनवास का जीवन जी रहे थे।  ⚜️अतिथियों को भोजन कराने की सुविधा के लिए सूर्य भगवान ने युधिष्ठिर को ऐसा पात्र दिया था जिससे द्रौपदी भोजन से पूर्व अपने समस्त अतिथियों को भर पेट भोजन करा सकती थी।  ⚜️एकबार महर्षि दुर्वासा दुर्योधन के यहाँ पधारे और दुर्योधन ने उनकी खूब सेवा की। दुर्योधन के आतिथ्य ग्रहण से वे बहुत प्रसन्न हुए। ⚜️तब दुर्योधन ने महर्षि दुर्वासा से यह निवेदन किया कि वन में आप हमारे भाई पांडवों का भी आतिथ्य ग्रहण करें,परन्तु  आप वहाँ जाय उस समय जब द्रौपदी भोजन कर चुकी हो। ⚜️महर्षि प्रसन्न थे इसी कारण उन्होंने दुर्योधन का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।  दुर्योधन यह भली भांति जनता था कि जब तक द्रौपदी स्वयं भोजन न कर लेगी तब तक सूर्य देव द्वारा प्रदत्त पात्र से वे हजारों अतिथियों को भी भोजन कराने में समर्थ हैं। ⚜️जब वह भोजन कर चुकी होगी और महर्षि वहाँ पहुंचेंगे तो उनके लिए भोजन की व्यवस्था करना असम्भव हो जायेगा। जिसके कारण महर्षि निश्चय रुप से उन्हें श्राप दे देंगे।  ⚜️कुछ समय बाद महर्षि दुर्वासा अपने 10,0...

प्राचीन काल में यज्ञ द्वारा प्राप्त संताने कौन है ?

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प्राचीन काल में पुत्र या पुत्री के पुत्र द्वारा किया गया यज्ञ हमारे पुराणों और धार्मिक ग्रंथों के उदाहरणों में उपलब्ध है। 💠 राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न -  पुत्रेष्टि यज्ञ की सबसे प्रसिद्ध घटना भगवान राम सहित उनके चारो सैनिकों का जन्म है। ऋष्यश्रृंग नाम के ऋषि ने ही यहां दिया था दशहरा जी के पुत्रप्राप्ति के लिए यज्ञ, इस यज्ञ का विधान अथर्ववेद में है।  इस यज्ञ के बाद उस यज्ञ कुंड से चारु प्रकट हुए, जिस समय राजा दशरथ की तीरी रानियों ने खाय और समय आने पर कौशल्या ने राम जी को, कैक ने भरत जी को और सुमित्रा ने लक्ष्मण - शत्रुघ्न को जन्म दिया था।  ऋष्यश्रृंग राजा दशहरा की पुत्री शांता के पति थे। लक्ष्मण और भारत दोनों जुड़वाँ थे। 💠मनु के पुत्र सुद्युम्न भागवत में श्री शुकदेव जी ने बताया है कि मनु ने पुत्र की इच्छा से मित्रवरुण नामक दो देवताओं का यज्ञ अनुष्ठान किया। इस यज्ञ में मनु की पत्नी श्रद्धा ने केवल दूध का सेवन करके ही अनुष्ठान किया।  इसके बारे में कहा गया है कि "मृत्यु जैसा यज्ञ हुआ था, इसका अर्थ इस पृथ्वी पर और किसका हुआ था, सभी याज्ञिक वस्तुएं सुवर्णमय और अति सुं...

बनारस के राजा को क्या श्राप मिला

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💎काशी के राजा चेतसिंह (1770-1781) के समय एक अघोरी बाबा कीनाराम के काशी में निवास करते थे। राजा चेतसिंह के पिता बलवंतसिंह बाबा का बहुत आदर करते थे और बाबा को किसी भी पूजा - पाठ में बिना रोक टोक जाते थे। 💎 एक बार चेतसिंह ने शिवाला घाट के महल में एक शिव मंदिर की स्थापना की। जिस दिन शिव मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, महाराज ने चौकीदारों को सचेत कर दिया था कि आज अघोरी बाबा कीनाराम किसी प्रकार भी पूजा समारोह में सम्मिलित न हो पायें।  💎बाबा के आश्रम का फाटक महाराज के महल के सामने था। चेतसिंह के पिता ने बाबा को किसी भी पूजा में आने से नहीं रोका था इसी कारण आज भी बाबा पूजा समारोह को देखने के लिए स्वयं से ही आ गये। उन्हें रोकने का साहस किसी भी राज दरबारी का न था।  💎चेतसिंह ने जब बाबा को देखा तो वह पूजा के आसान पर बैठे हुए ही लाल पीले हो गए और तरह तरह की गाली देते हुए, सिपाहियों को उन्हें मारकर बाहर निकाल देने का आदेश दिया। सिपाहियों का इतना साहस नहीं था कि बाबा से इस प्रकार दुर्व्यवहार करें।  💎इससे पहले कि चेतसिंह अपने आदेश को दोहराएं बाबा ने उन्हें श्राप दिया कि तेरे वंश...

धृतराष्ट्र के अलावा और किन राजाओं के 100 पुत्र थे ?

  ⚜️कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन (सहस्त्रार्जुन) के  100 पुत्रों में शूर, शूरसेन,वृषसेन,मधु और जयध्वज प्रधान हैं। ⚜️जयध्वज के पुत्र तालजंघ के 100 पुत्र  थे इनमें सबसे बड़े वीतिहोत्र और दूसरा  भरत था।  ⚜️भरत के वंशज मधु के वृष्णि आदि  100 पुत्र थे। वृष्णि के कारण यह वंश  वृष्णि कहलाया।  ⚜️महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी के 100  पुत्र थे।

किन रानियों ने 7,12,4, 15 वर्षों में संतान को जन्म दिया ?

✳️वशिष्ठ जी के आशीर्वाद से  सौदास  की पत्नी  मदयंती  के गर्भ धारण के 7 वर्ष तक संतान न होने पर रानी ने पत्थर से अपने गर्भ पर प्रहार किया, जिससे उसी समय पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम अश्मक रखा गया। ⚜️ महाराज धृतराष्ट्र पत्नी  गांधारी  जब गर्भवती हुई तब 2 वर्ष तक उन्हें संतान प्राप्त नहीं हुई और गांधारी के गर्भ पर प्रहार करने से गर्भ गिर गया। फिर वेदव्यास जी के आशीर्वाद से और 2 वर्ष बाद गांधारी के 100 पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। 💠महाराज  बाहु  की पहली पत्नी का गर्भ रोकने के इच्छा से उसकी दूसरी पत्नी ने उसे विष खिला दिया। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ 7 वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा। फिर और्व मुनि के आशीर्वाद से उन्हें  सगर  नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। जो इक्ष्वाकु वंश के महान राजा थे। 🔱विष्णु पुराण के अनुसार जब काशी में सुखा पड़ा था,उस समय काशीराज की रानी गर्भवती थी, समय पूरा होने पर भी 12 वर्ष तक बच्चे का जन्म नहीं हुआ। तब राजा ने हर दिन एक गाय ब्राह्मण को दान दी। फिर 3 वर्ष बीतने पर  गांदिनी  नामक कन्या का जन्म हुआ, जो  अक्रू...

भगवती चरण वोहरा - 2

पुलिस से मिले होने का शक एक बार भगवती चरण के खिलाफ पंजाब के एक नेता जयचंद्र विलायलंकर ने पार्टी के सभी क्रान्तिकारियों के कान भरे और कहा कि ये पुलिस से मिले हुये है। पुलिस इन्हें इनके काम के पैसे भी देती है।  जिसका असर ये हुआ कि एक बार जब पार्टी को पैसों की जरूरत थी तब भगवती चरण ने 3 हजार रूपए देने की कोशिश कि तब आजाद ने यह कहकर मना कर दिया की मैं पुलिसवालों का पैसा नहीं लेता।  भगवतीचरण वोहरा की शहादत  भगवतीचरण ,यशपाल और धनवंतरी की सहायता से चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर जेल से निकालने की योजना बनायी।  आजाद की योजना के अनुसार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उस समय बचाना था, जब वे सेंट्रल से बोसर्टल जेल में ले जाए जाते थे।  28 मई को भगवती चरण, सुखदेव राज और वैशम्पायन के साथ एक बम लेकर लाहौर से कुछ दूरी पर रावी नदी के किनारे के जंगलों में बम टेस्ट करने के लिए गए।  शाम का समय था भगवती चरण के हाथ में बम था ,बम का पीन ढ़ीला था जिसके कारण बम उनके हाथ में ही फट गया। जिससे भगवती चरण का दायां हाथ , चेहरा, बाजू और पेट का कुछ अंश भी उड़ गया। आंखे...

भगवती चरण वोहरा - 1

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प्रारंभिक जीवन भगवती चरण वोहरा का जन्म 1904 लाहौर में हुआ था। (कुछ किताबों में इनका जन्म 1903 में,आगरा के उत्तर प्रदेश में हुआ बताया गया है) लाहौर में हुआ था।  भगवती चरण वोहरा एक गुजराती नागर ब्राह्मण थे। वह अपने नाम के आगे "बहुरा" लिखते थे। पंजाब में रहने के कारण वह वोहरा बन गया। भगवती चरण एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे। पिता शिवचरण वोहरा रेलवे में उच्च पदाधिकारी थे। उन्हें अंग्रेजों द्वारा राय बहादुर की उपाधि दी गई थी।  शिक्षा   भगवती चरण 1921 में गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़ कर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए और आन्दोलन समाप्त हो जाने पर उन्होंने लाहौर कॉलेज से बी. ए.की डिग्री हासिल की।  विवाह   उनका विवाह बचपन में ही दुर्गा देवी से हो गया था। तब वे हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। भगवती चरण और दुर्गा देवी का एक पुत्र भी था। जिसका नाम शचिंद्र था। उसका यह नाम शचिंद्रनाथ शान्याल के नाम पर रखा गया था। क्रांतिकारी जीवन  जब "नौजवान भारत सभा" नामक क्रांतिकारी संगठन का गठन किया गया तो उन्हें संगठन का प्रसार सचिव नियुक्त किया गया। 6 अगस्त,1928 को भगत सिंह और भगव...

जरासंध कौन था ?

💠मगध देश के राजा बृहद्रथ (वृहद्रथ) ने काशी नरेश की दो कन्याओं से विवाह किया था। इन्हीं के पुत्र का नाम जरासंध था। जरासंध की पुत्री अस्ति और प्राप्ति का विवाह मथुरा के राजा कंस से हुआ था। 💠महात्मा चण्डकौशिक ने एक आम को अभिमंत्रित करके राजा वृहद्रथ को दिया,जिसे उनकी दोनों रानियों ने आधा - आधा ग्रहण किया। इसी से जरासंध का जन्म हुआ।  💠जरासंध का जन्म दो मांओं से आधे आधे भाग में हुआ था। जिसे माताओं ने डर से फेंक दिया। तब जरा नाम की राक्षसी ने इन दोनों टुकड़ों को उठा लिया और जोड़ दिया। 💠राजा वृहद्रथ ने सब जानकर उसका आभार व्यक्त किया और कहा कि इस बालक को जरा ने संधित (जोड़ा है) किया है इसलिए इसका नाम जरासंध होगा।  💠जरासंध के पास 23 अक्षौरिणी सेना थी। जरासंध ने श्री कृष्ण पर 18 बार आक्रमण किया था। श्री कृष्ण ने 17 बार जरासंध को हराया और 1 बार जरासंध ने कृष्ण जी को हराया। 💠जरासंध ने 20,800 (बीस हजार आठ सौ) राजाओं को पहाड़ों की घाटी में ,एक किले के भीतर कैदी बनाकर रखा था। जरासंध की मृत्यु के बाद श्री कृष्ण ने सभी राजाओं को कारागार से मुक्त कर दिया।  💠जरासंध की मृत्यु के ...

श्री राम कैसे दिखते थे ?

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⚜️श्रीमदवाल्मीकि रामायण के अनुसार  श्री राम बुद्धिमान, नितिज्ञ, वक्ता,शोभायमान और शत्रुसंहारक है।  ⚜️उनके कंधे मोटे और भुजाएँ बड़ी - बड़ी है। ग्रीवा शड़्ख के समान और ठोड़ी मांसल (पुष्ट) है।  ⚜️उनकी छाती चौड़ी तथा धनुष बड़ा है। गले के नीचे की हड्डी मांस से छिपी हुई है।  ⚜️वे शत्रुओं का दमन करने वाले हैं।उनकी भुजाएं घुटनों तक लंबी ,मस्तक सुंदर, ललाट भव्य और चाल मनोहर है। ⚜️उनका शरीर (अधिक ऊँचा या अधिक नाटा न होकर) मध्यम और सुडौल है। देह का रंग चिकना है। वे बड़े प्रतापी है।  ⚜️उनका वक्ष स्थल भरा हुआ है, आँखें बड़ी - बड़ी है। वे शोभायमान और शुभ लक्षणों से संपन्न हैं।  ⚜️धर्म के ज्ञाता, सत्यप्रतिज्ञ तथा प्रजा के हित साधन में लगे रहने वाले हैं। वे यशस्वी, ज्ञानी,पवित्र ,जितेंद्रिय और मन को एकाग्र रखने वाले हैं। ⚜️ वे प्रजापति के समान पालक ,श्री संपन्न , वैरिविध्वंसक और जीवों रक्षक है। ⚜️स्वधर्म और स्वजनों के पालक, वेद वेदांगों के तत्त्ववेत्ता तथा धनुर्वेद में प्रवीण है।  ⚜️वे अखिल शास्त्रों के तत्वज्ञ, स्मरण शक्ति से युक्त और प्रतिभा संपन्न है।   ⚜️ वे ...

कौन थे क्रांतिकारी सत्येंद्र नाथ बोस ?

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🍁सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) में 30 मई,1882 में हुआ था।  🍁वे सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया। वे आनंद मठ के संस्थापकों में से एक थे, जो कि मिदनापुर की एक क्रांतिकारी गुप्त सभा थी।  🍁वे अरविंदो घोष की मदद से क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े और  छात्र भंडार नाम की संस्था बनायी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी का प्रचार करना और युवाओं को क्रांतिकारी दल से जोड़ने का था। 🍁गुप्त समिति की स्थापना सत्येंद्र बोस ने की। इन्होंने ही खुदीराम को एक पिस्तौल भेंट की और उसे चलाना भी सिखाया। 🍁खुदीराम को सरकार विरोधी पर्चा बांटने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। 🍁सरकार चाहती थी की सत्येंद्र नाथ खुदीराम के विरुद्ध गवाही दे,पर उन्होंने खुदीराम के पक्ष में गवाही दी। जिसके कारण खुदीराम को 13 अप्रैल ,1906 को रिहा कर दिया गया।  🍁इसके नाराज होकर मजिस्ट्रेट डी. वेस्टन ने सत्येंद्रनाथ को 1 अप्रैल ,1906 को सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। 🍁कलकत्ता में "डी. एच. किंग्जफोर्ट" चीफ प्रेजेंसी मजिस्ट्रेट था और बहुत ही क्...

माँ दुर्गा के 108 नाम

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1 🌺 सती  2 🌺 साध्वी  3 🌺 भवानी  4 🌺 आर्या  5 🌺 जया  6 🌺 दुर्गा 7 🌺 त्रिनेत्रा 8 🌺 भव्या  9 🌺 अनंता  10 🌺 अहंकारा 11 🌺 कृष्णा  12 🌺 काली  13 🌺 विंध्यवासिनी  14 🌺 विजया  15 🌺 प्रसन्ना  16 🌺 वरदा  17 🌺 सरन्या  18 🌺 ज्योत्सना  19 🌺 प्रभा  20 🌺 रात्री  21 🌺 संध्या 22 🌺 विद्या  23 🌺 सिद्धि  24 🌺 ध्रुति  25 🌺 श्री 26 🌺 संतति  27 🌺 कीर्ति 28 🌺 चतुर्भुजा  29 🌺 ब्रह्मचारिणी  30 🌺 त्रिभुवनेश्वरी  31 🌺 कुमारी 32 🌺 शिवा  33 🌺 मंगल्या 34 🌺 देवी  35 🌺 शिवदूती  36 🌺 विष्णुमाया 37 🌺 भद्रकाली 38 🌺 तपस्विनी 39 🌺 कालरात्रि  40 🌺 महबला  41 🌺 युवती  42 🌺 किशोरी  43 🌺 शांभवी 44 🌺 कात्यायनी  45 🌺 शैलपुत्री  46 🌺 वैष्णवी  47 🌺 चित्रा 48 🌺 भाविनी 49 🌺 सावित्री  50 🌺 परमेश्वरी 51 🌺 महेश्वरी  52 🌺 लक्ष्मी  53 🌺 वाराही 54 🌺 चामुण्डा 55 🌺 सुंदरी 56 🌺 मातंगी  57 🌺 बहुला 58 ?...

कमला देवी चटोपाध्याय - 3

इन्होंने कई किताबें भी लिखी जो इस प्रकार है -  (1) द अवेकिंग ऑफ़ इंडियन वूमेन (2) जापान इट्स वीकनेस एंड स्ट्रेंथ (3) इन वॉर टर्न चाइना (4) टुवाडर्स ए नेशन थेटर जैसी किताबें लिखी।  पुरस्कार और सम्मान  (1) 1955 में भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया  (2) साल 1987 में भारत सरकार ने इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया  (3) सामुदायिक नेतृत्व के लिए 1966 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से (4) संगीत नाटक अकादमी द्वारा 1974 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से  (5) यूनेस्को ने इन्हें 1977 में हैंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए (6) शांति निकेतन ने अपने सर्वोच्च सम्मान देसीकोट्टम से सम्मानित किया गया। अन्य बातें  कमला देवी ने इंडियन नेशनल थिएटर की स्थापना की वही बाद में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के तौर पर विकसित हुआ। संगीत नाटक अकादमी की स्थापना में भी उनका हाथ था। वे 1927 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की सदस्य बनी। कमला देवी ने ऑल इंडिया वूमेंस कांफ्रेंस की स्थापना की।  इनका निधन 1988 में 29 अक्तूबर को हुआ था।

कमला देवी चटोपाध्याय - 2

फ्रीडम साल्ट उन्होंने गांधी जी के नमक आन्दोलन 1930 में और असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लेने वाली महिलाओं में से थी। कमला देवी एक दिन अपने साथियों के साथ "बम्बई स्टॉक एक्सचेंज " में घुस गई और नमक की छोटी - छोटी पुड़िया बनाकर उसे बेचा और 48,000 रूपये इकठ्ठा किए जो अपना विद्रोह जताने और आन्दोलन के लिए खर्च के लिए थे। इस  नमक को " फ्रीडम साल्ट " का नाम दिया गया।  ब्रिटिश सरकार ने इन्हें इसके लिए 9 माह के कारावास की सजा सुनाई। नमक कानून तोड़ने पर बॉम्बे प्रेसीडेंसी में गिरफ्तार होने वाली वह पहली महिला थी। महिलाओं को आंदोलन में शामिल करना महिलाओं को आंदोलनों में भागीदारी दिलाने वाली कमला देवी ही थी। गांधी जी महिलाओं के आंदोलनों में भागीदारी के पक्ष में नहीं थे, पर कमला देवी के ही कोशिशों के फल स्वरूप गांधी की जी महिलाओं के आंदोलनों में शामिल किया।  नमक आन्दोलन , असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।   स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे चार बार जेल गई और पाँच साल तक सलाखों के पीछे रहीं। एक अभिनेत्री   कमला देवी ने...

कमला देवी चटोपाध्याय - 1

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पहली ऐसी भारतीय महिला थी जिन्होंने  चुनाव में खड़े होने का साहस दिखाया। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा  कमला देवी चटोपाध्याय का जन्म 3 अप्रैल,1903 को मंगलोर (कर्नाटक) के एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ये अपने माता पिता की चौथी और सबसे छोटी संतान थी।  इनके पिता अनंथाया धनेश्वर मंगलोर के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर थे और इनकी मां गिरिजाबाई भी पढ़ी लिखी महिला थी।  जब इनकी उम्र केवल 7 साल थी, तब इनके पिता का देहांत हो गया। इनका पहला विवाह 1917 में, 12 साल की उम्र में ही कृष्ण राव के साथ हुआ था लेकिन दो वर्ष के अंदर ही इनके पति का देहांत हो गया।  बाद में इन्होंने 1923 में अपनी मर्जी से सरोजिनी नायडू के छोटे भाई हरिंद्रनाथ चटोपाध्याय से दुसरा विवाह किया। हरिंद्रनाथ एक कवि और नाटककार थे। शादी के बाद वे अपने पति के साथ लंदन चली गई। वहां जाकर उन्होंने लंदन युनिवर्सिटी के बेडफोर्ट कॉलेज से समाजशास्त्र में डिप्लोमा की डिग्री हासिल की। इन्होंने भारतीय पारंपरिक संस्कृत ड्रामा कुटियाअट्टम (केरल ) का गहन अध्ययन भी किया था।  इनके पुत्र का नाम रामकृष्ण चटोपाध्याय था। इनके दूसरी शा...

रवींद्रनाथ टैगोर - 3

अन्य बातें   ✳️ये गुरुदेव उपनाम से मशहूर थे।  ✳️वे एक कथा और कहानीकार, कवि, नाट्य लेखक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, राष्ट्रवादी, व्यवसाय प्रबंधक, संगीत और चित्रकला के कलाकार थे।  ✳️वे साहित्य क्षेत्र में एशिया के पह ले नोबल पुरस्कार विजेता बने। ✳️उनकी काव्य रचना गीतांजलि पर वर्ष 1913 में उन्हें नोबल पुरस्कार मिला। ✳️1877 में उन्होंने पहली कहानी और ड्रामा लिखा। ✳️1921 में इन्होंने विश्व भारतीय विद्यालय की स्थापना की। ✳️रविंद्रनाथ टैगोर ने भारत के लिए " जन गण मन "और बांग्लादेश " आमार सोनार बांग्ला " राष्ट्रगान की रचना की। ✳️रविंद्रनाथ टैगोर ने ही गाँधी जी को महात्मा की उपाधि दी थी। ✳️1905 में वायसराय कर्जन ने बंगाल को दो भागों में विभाजित करने का निर्णय लिया, जिसका टैगोर ने विरोध किया। विभाजित बंगाल के एकता के प्रतीक के रूप में राखीबंधन समारोह की शुरुआत की।

रविंद्रनाथ टैगोर - 2

पहली कविता और लेखन   💠इन्होंने अपनी पहली कविता महज 8 वर्ष की आयु में लिखी ,फिर 1877 में इन्होंने एक लघु कथा लिखी। 💠 टैगोर ने काव्य, उपन्यास, नाटक लघु कथा, संगीत और चित्रकला में भी निपुण थे। 💠रविंद्रनाथ ने लगभग 2230 गीतों को भी रचना की थी।  💠16 वर्ष की आयु में उनका काव्य संग्रह " भानु सिंघो " प्रकाशित हुआ, जिसका शाब्दिक अर्थ सूर्य का सिंह है।   नोबल पुरस्कार एक बार जब टैगोर अपने बेटे के साथ भारत से इंग्लैंड जा रहे थे। तब समुद्री मार्ग के समय को काटने के लिए उन्होंने गीतांजलि का अंग्रेजी में अनुवाद एक नोटबुक पर किया और उस नोटबुक को सूटकेस में रख दिया, जिसे वो जहाज पर ही भूल गये। वह सूटकेस एक व्यक्ति को मिला जिसने उसे टैगोर तक पहुँचा दिया।   लन्दन के रिथेस्टिन नामक चित्रकार को को जब पता चला कि टैगोर ने गीतांजलि का अंग्रेजी में अनुवाद किया है तब उसने इसे पढ़ने की इच्छा जतायी।  फिर रिथेस्टिन ने डब्लू बी यिट्स को गीतांजलि पढ़ने की सलाह दी। यिट्स ने इसे पढ़ने के बाद इंडियन सोसाइटी के सहयोग में सितंबर 1912 इसे प्रकाशित किया।  1913 में इन्हें गीतांजलि के लिए इन्...

रविंद्रनाथ टैगोर - 1

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  प्रारम्भिक जीवन  रविंद्रनाथ टैगोर (ठाकुर) का जन्म 7 मई,1861 में कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी के,एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था।  इनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर था, जोकि ब्रह्म समाज के एक वरिष्ठ नेता थे। उनकी मां शारदा देवी एक घरेलू महिला थी। रविंद्रनाथ उनकी 13 वीं संतान थे। रविंद्रनाथ टैगोर जी का 7 अगस्त,1941 को निधन कलकत्ता में हुआ था। शिक्षा   इनकी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता के सेंट जेवियर्स स्कूल में हुई। इनके पिता इन्हें बैरेस्टर बनाना चाहते थे,परंतु इनकी रुचि साहित्य में थी।  इन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। विवाह   रविंद्रनाथ टैगोर और मृणालिनी देवी का विवाह 1 मार्च,1874 को हुआ था। इनके 5 संताने थी।  रवींद्रनाथ टैगोर और मृणालिनी देवी के पाँच बच्चे मधुरिलता देवी, रथींद्रनाथ टैगोर, रेणुका देवी, मीरा देवी, समींद्रनाथ टैगोर थे। 

महर्षि भृगु

✳️महर्षि भृगु और उनकी पत्नी ख्याति से लक्ष्मी जी और धाता ,विधाता नामक दो पुत्र थे। ✳️ महर्षि मेरु की आयति और नियति नाम की कन्याएं थी जिनका धाता और विधाता से विवाह हुआ था। उनसे उनके प्राण और मृकण्डु नामक दो पुत्र हुए।  ✳️मृकण्डु से मार्कण्डेय और उनसे वेदशिरा का जन्म हुआ।  ✳️प्राण का पुत्र द्युतिमान और उसका पुत्र राजवान हुआ।  ✳️ अंगिरा की पत्नी स्मृति थी, उसके सिनिवानी, कुहू, राका और अनुमति नाम की दो कन्याएं हुई।  ✳️अत्रि की पत्नी अनुसूया थी ,जिनके चन्द्रमा, दुर्वासा, योगी और दत्तात्रेय नामक पुत्र थे।  ✳️पुलस्य ऋषि की पत्नी प्रीति थी जिनसे दत्तोलिका का जन्म हुआ जो अपने पूर्व जन्म में स्वयंभू मन्वंतर में अगस्त्य कहे जाते थे। ✳️वशिष्ठ की ऊर्जा नामक पत्नी थी,जिनसे रज, गोत्र, ऊर्ध्वबाहु, सवन, अनघ, सुतपा और शुक्र ये साथ पुत्र हुए। ये सभी तीसरे मन्वंतर में सप्तऋषि हुए।  ✳️प्रजापति पुलह की पत्नी क्षमा थी ,जिनसे कर्दम, उर्वरीयान और सहिष्णु ये तीन पुत्र थे। ✳️कक्तु की संतति नामक भार्या ने अंगूठे के पोरुओं के समान शरीर वाले तथा प्रखर सूर्य के समान 60,000  मुनियों ...

कुबेर कौन है ?

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ब्रह्मा जी के मानस पुत्र पुलस्त्य जी थे जिनकी पत्नी का नाम गौ था। इनके पुत्र वैश्रवण (कुबेर) अपने पिता को छोड़कर अपने पितामह की सेवा में रहने लगे ,इसके कारण उनके पिता उन पर क्रोधित हो गये और पुलस्त्य जी ने अपने आपको ही दूसरे रूप में प्रकट कर लिया। पुलस्त्य जी के आधे शरीर से जो दूसरा द्विज प्रकट हुआ, उनका नाम विश्रवा था। विश्रवा ,वैश्रवण से बदला लेने के लिए सदैव कुपित रहते थे।  लेकिन पितामह ब्रह्मा जी वैश्रवण पर प्रसन्न थे। उन्होंने वैश्रवण को अमरत्व प्रदान किया और उन्हें धन का स्वामी तथा लोकपाल बना दिया। वैश्रवण का एक नलकुबर नामक पुत्र था और लंका को इनकी राजधानी बनाया। साथ ही उन्हें इच्छानुसार विचरने वाला पुष्पक विमान भी दिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें यक्षों का स्वामी भी बनाया और उन्हें राजराज की पदवी भी दी।

किस राजा ने वशिष्ठ जी को नरमांस खाने को दिया और क्यों ?

🍁इक्ष्वाकु वंश के सुदास के पुत्र सौदास मित्रसह थे, जिन्होंने एक दिन मृगया के लिए वन में घूमते - घूमते दो व्याघ्र देखे। इन्होंने संपूर्ण वन को मृगहीन कर दिया, ऐसा समझ उन्होंने उसमें से एक को बाण मार दिया। 🍁मरते समय वह बहुत ही क्रूर राक्षस में बदल गया और दूसरा भी " मैं इसका बदला लूँगा" ऐसा कहकर गायब हो गया। राक्षस का बदला और ऋषि का श्राप  🍁एक बार सौदास ने एक यज्ञ किया। यज्ञ हो जाने पर जब वशिष्ठ जी बाहर चले गये, तब वह राक्षस वशिष्ठ जी का रूप बनाकर बोला यज्ञ के पूर्ण होने पर मुझे नर मांस युक्त भोजन कराना चाहिए, इसलिए तुम ऐसा अन्न तैयार कराओ, मैं अभी आता हूं। 🍁ऐसा कहकर वो बाहर चले गए। फिर रसोइए का वेश बनाकर राजा की आज्ञा से उसने मनुष्य का मांस पकाकर उसे वशिष्ठ जी के लिए दे दिया। 🍁राजा भी उसे सुवर्ण पात्र में रखकर वशिष्ठ जी के आने की प्रतिक्षा करने लगा और उनके आते ही वह मांस निवेदन कर दिया। 🍁 जब वशिष्ठ जी को पता चला कि उन्हें नरमांस खाने के लिए दिया गया है तब क्रोध में उन्होंने राजा को श्राप दिया कि "तूने जानबूझ कर मुझे नर मांस खाने को दिया इसलिए तू नरभक्षी राक्षस हो जाय...

डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस - 4

पुरस्कार 1* सन् 1954 में इन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण एक उपाधि दी। 2*1960 में इन्हें मेघनाथ साहा पुरस्कार मिला। सत्येंद्र नाथ बोस की कृतियां - 1* क्विंटम थ्योरी पर ठोस शोध कार्य और उस पर किताब भी लिखी। 2* प्लैंक लॉ पर शोध कार्य 3* आइंस्टाइन बोस स्ट्रेटिस्टीकल के जनक 4* एफाइन कनेक्शन कॉफीशिंट्स 5* प्रोबेबिलिटी पर शोध कार्य Bosons और Fermious पार्टिकल थ्योरी पर इनका शोध आइंस्टाइन की टक्कर का था। उसी समय फर्मी नामक वैज्ञानिक का भी इसी विषय पर शोध जारी हुआ। इसके बाद के वैज्ञानिकों ने पार्टिकल थ्योरी के शोध को दो भागों में विभक्त कर दिया ,उनमें से एक भाग को सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर " Bosons " और दूसरे भाग को फर्मी के नाम पर " Fermious" कहा जानें लगा। बोसोन के विचार पर आधारित शोधों "बोस आइंस्टाइन स्ट्रेटिस्टीकल " और बोस आइंस्टाइन कांडेंसेट " पर नोबेल पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। 2001 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार "थ्योरी ऑफ  बोस आइंस्टाइन कंडेंसेट्स " प्रदान किया गया लेकिन बोस इससे वंचित ही रहे। पुस्तकालय और बोस  सत्येंद्र नाथ को शोध कार्...